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एकाधिकशततमोऽध्यायः - वृत्रासुरका वध और असुरोंकी भयंकर मन्त्रणा 3 дня назад


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एकाधिकशततमोऽध्यायः - वृत्रासुरका वध और असुरोंकी भयंकर मन्त्रणा

एकाधिकशततमोऽध्यायः - वृत्रासुरका वध और असुरोंकी भयंकर मन्त्रणा लोमशजी कहते हैं—राजन्! तदनन्तर वज्रधारी इन्द्र बलवान् देवताओंसे सुरक्षित हो वृत्रासुरके पास गये। वह असुर भूलोक और आकाशको घेरकर खड़ा था ⁠।⁠।⁠ १ ⁠।⁠। कालकेय नामवाले विशालकाय दैत्य, जो हाथोंमें हथियार लिये होनेके कारण शृंगयुक्त पर्वतोंके समान जान पड़ते थे, चारों ओरसे उसकी रक्षा कर रहे थे ⁠।⁠। भरतश्रेष्ठ! इन्द्रके आते ही देवताओंका दानवोंके साथ दो घड़ीतक बड़ा भीषण युद्ध हुआ जो तीनों लोकोंको त्रसा करनेवाला था ⁠।⁠।⁠ ३ ⁠।⁠। वीरोंकी भुजाओंके साथ उठे हुए खड्‌ग शत्रुके शरीरोंपर पड़ते और विपक्षी योद्धओंके घातक प्रहारोंसे टूटकर चूर-चूर हो जाते थे, उस समय उनका अत्यन्त भयंकर शब्द सुन पड़ता था ⁠।⁠।⁠ ४ ⁠।⁠। महाराज! अपने मूल स्थानसे टूटकर गिरे हुए ताल-फलोंके समान आकाशसे गिरते हुए योद्धाओंके मस्तकों-द्वारा वहाँकी भूमि आच्छादित दिखायी देती थी ⁠।⁠।⁠ ५ ⁠।⁠। कालकेयोंने सोनेके कवच धारण करके हाथोंमें परिघ लिये देवताओंपर धावा किया। उस समय वे दानव दावानलसे दग्ध हुए पर्वतोंकी भाँति दिखायी देते थे ⁠।⁠। अभिमानपूर्वक आक्रमण करनेवाले उन वेगशाली दैत्योंका वेग देवताओंके लिये असह्य हो गया। वे अपने दलसे बिछुड़कर भयसे भागने लगे ⁠।⁠।⁠ ७ ⁠।⁠। देवताओंको डरकर भागते देख वृत्रासुरकी प्रगतिका अनुमान करके सहस्र नेत्रोंवाले इन्द्रपर महान् मोह छा गया ⁠।⁠।⁠ ८ ⁠।⁠। कालेयोंके भयसे त्रस्त हुए साक्षात् इन्द्रदेवने सर्व-शक्तिमान् भगवान् नारायणकी शीघ्रतापूर्वक शरण ली ⁠।⁠। इन्द्रको इस प्रकार मोहाच्छन्न होते देख सनातन भगवान् विष्णुने उनका बल बढ़ाते हुए उनमें अपना तेज स्थापित कर दिया ⁠।⁠।⁠ १० ⁠।⁠। देवताओंने देखा इन्द्र भगवान् विष्णुके द्वारा सुरक्षित हो गये हैं, तब उन सबने तथा शुद्ध अन्तःकरणवाले ब्रह्मर्षियोंने भी देवराज इन्द्रमें अपना-अपना तेज भर दिया ⁠।⁠।⁠ ११ ⁠।⁠। देवताओंसहित श्रीविष्णु तथा महाभाग महर्षियोंके तेजसे परिपूर्ण हो देवराज इन्द्र अत्यन्त बलशाली हो गये। देवेश्वर इन्द्रको बलसे सम्पन्न जान वृत्रासुरने बड़ी विकट गर्जना की। उसके सिंहनादसे भूलोक, सम्पूर्ण दिशाएँ, आकाश, स्वर्गलोक तथा पर्वत सब-के-सब काँप उठे ⁠।⁠।⁠ १२-१३ ⁠।⁠।

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