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उन दानवोंका संहार नहीं किया जा सकता; क्योंकि वे दुर्गम समुद्रके आश्रयमें रहते हैं। अतः तुम-...

Complete Video :    • द्व‍यधिकशततमोऽध्यायः - कालेयोंद्वारा ...   उन दानवोंका संहार नहीं किया जा सकता; क्योंकि वे दुर्गम समुद्रके आश्रयमें रहते हैं। अतः तुम-लोगोंको समुद्रको सुखानेका विचार करना चाहिये ⁠।⁠।⁠ १० ⁠।⁠। महर्षि अगस्त्यके सिवा दूसरा कौन है जो समुद्रका शोषण करनेमें समर्थ हो। समुद्रको सुखाये बिना वे दानव काबूमें नहीं आ सकते ⁠।⁠।⁠ ११ ⁠।⁠। भगवान् विष्णुकी कही हुई यह बात सुनकर देवता ब्रह्माजीकी आज्ञा ले अगस्त्यके आश्रमपर गये ⁠।⁠। १२ ⁠।⁠। वहाँ उन्होंने मित्रावरुणके पुत्र महात्मा अगस्त्यजीको देखा। उनका तेज उद्भासित हो रहा था। जैसे देवतालोग ब्रह्माजीके पास बैठते हैं, उसी प्रकार बहुत-से ऋषि-मुनि उनके निकट बैठे थे ⁠।⁠।⁠ १३ ⁠।⁠। अपनी महिमासे कभी च्युत न होनेवाले मित्रावरुण नन्दन तपोराशि महात्मा अगस्त्य आश्रममें ही विराजमान थे। देवताओंने समीप जाकर उनके अद्भुत कर्मोंका वर्णन करते हुए स्तुति प्रारम्भ की ⁠।⁠।⁠ १४ ⁠।⁠।

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