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रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 46 - समुद्र मंथन कथा, भगवान विष्णु की वामन अवतार कथा 3 года назад


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रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 46 - समुद्र मंथन कथा, भगवान विष्णु की वामन अवतार कथा

Watch This New Song Bhaj Govindam By Adi Shankaracharya :    • श्री आदि शंकराचार्य कृत भज गोविन्दम् ...   तिलक की नवीन प्रस्तुति "श्री आदि शंकराचार्य कृत भज गोविन्दम्" अभी देखें :    • श्री आदि शंकराचार्य कृत भज गोविन्दम् ...   _________________________________________________________________________________________________ बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here -    • दर्शन दो भगवान | Darshan Do Bhagwaan ...   Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 46 - Samudra Manthan Katha. Vamana avatar story of Lord Vishnu समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश पर एकाधिकार जमाने के लिये देवताओं और असुरों के बीच कलह होती है। भगवान विष्णु नहीं चाहते हैं कि अमृत की एक बूंद भी असुरों को मिले। इससे वे अमर हो जाते और पृथ्वी पर धर्म का नाश करते रहते। प्रभु ने मोहिनी रूप धारण किया और असुरों को अपने सौन्दर्य व लच्छेदार बातों में ऐसा उलझाया कि उन्होंने अमृत कलश मोहिनी को सौंप दिया ताकि वह अपनी इच्छानुसार इसे देवताओं और असुरों को पिला दे। मोहिनी अमृत कलश प्राप्त कर लेती है लेकिन वह अभी असुरों को और अधिक भ्रमित और अपने वश में रखना चाहती है इसलिये वह राजा बलि से कहती हैं कि शास्त्रों के अनुसार कुलीन पुरुषों को किसी स्वच्छन्द नारी पर अधिक भरोसा नहीं करना चाहिये। आप महर्षि कश्यप के कुल से हैं इसलिये एक बार पुनः विचार कर लें। राजा बलि मोहिनी पर अत्यधिक मोहित हो चुके हैं। वह कहते हैं कि बड़े से बड़ा कुलीन, शूरवीर महात्मा और योगी जब किसी सुन्दर स्त्री के नयन बाण से घायल होकर अपने घुटने टेक देता है तो वह अपना कुल, धर्म, वीरता और तपस्या उसकी ठोकरों में डाल देता है, तब उसे उचित अनुचित, पाप पुण्य का भान नहीं रहता। इस समय वही दशा असुरों की है। मोहिनी असुरों दानवों को माया रचित कलश से नकली अमृत पिलाती है। एक दानव उसे कलश बदलते देख लेता है। वह अमृत पीने के लिये अपना रूप बदल कर देवताओं के बीच बैठ जाता है और अमृत ग्रहण कर लेता है। किन्तु सूर्यदेव और चन्द्रदेव उसका यह छल देख लेते हैं और मोहिनी को उसके बारे में बता देते हैं। दानव वहाँ से भागने का प्रयास करता है। मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु अपने चतुर्भुज रूप में आते हैं और सुदर्शन चक्र से उसका शीश काट देते हैं। असुर राजा बलि इसे छल कहता है और देवताओं पर आक्रमण कर देता है। श्रीकृष्ण को यह कथा सुनाते हुए महर्षि सन्दीपनि कहते हैं कि पुराणों में इसी युद्ध का वर्णन देवासुर संग्राम के रूप में किया गया है। चूँकि देवता अमृत पीकर शक्तिशाली हो चुके थे इसलिये इस युद्ध में सभी असुर दानव मारे गये। स्वयं राजा बलि भी देवराज इन्द्र के हाथों मारा गया। महर्षि सन्दीपनि बताते हैं कि दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य संजीवनी विद्या जानते थे इसलिये उन्होंने जिन दैत्यों, असुरों और दानवों के सिर धड़ से अलग नहीं हुए थे, अपनी संजीवनी विद्या से पुनः जीवित कर दिया। राजा बलि को भी पुनर्जीवन मिला। राजा बलि महान विष्णुभक्त प्रहलाद के पौत्र और शूरवीर थे। शुक्राचार्य ने इन्द्र से प्रतिशोध लेने के लिये राजा बलि से सौ यज्ञों का अनुष्ठान कराया। निन्यानबे यज्ञ पूरे हो जाते हैं। दैत्य गुरु शुक्राचार्य कहते हैं कि सौ यज्ञ पूरे होते ही इन्द्रलोक पर राजा बलि का अधिकार हो जायेगा। देवता पुनः भगवान श्रीहरि की शरण में जाते हैं। जब राजा बलि का सौंवा यज्ञ आरम्भ होने वाला था, भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर वहाँ पहुँच जाते हैं और यज्ञशाला बनाने के लिये अपने तीन पग के बराबर भूमि का दान माँगते हैं। राजा बलि हाथ मे संकल्प का जल लेते हैं तभी शुक्राचार्य वहाँ आ जाते हैं और बलि को टोकते हुए कहते हैं कि जिसे वह सामान्य बटुक समझ रहे हैं वह कोई और देवताओं का काम बनाने के लिये अदिति के गर्भ से जन्म लेने वाले स्वयं अविनाशी भगवान विष्णु हैं। वह विश्वरूप धारण की अपने तीन पग में उनका समस्त राजवैभव लेकर इन्द्र को दे देंगे। तब राजा बलि कहता है कि यदि एक उदार और करुणाशील मनुष्य किसी अपात्र याचक की कामना पूर्ण करके दुर्गति भोगता है तो वह दुर्गति भी शोभा की बात होगी। जिन भगवान विष्णु के दर्शन के लिये तीनों लोकों में यज्ञ आयोजित होते हों और वही भगवान विष्णु स्वयं बटुक का रूप रखकर मेरी यज्ञशाला में पधारे हैं तो मेरे लिये यह गौरव की बात है। मैं प्रहलाद का पौत्र हूँ और अपने कुल की मर्यादा को कलंकित नहीं कर सकता। मैं अपना वचन अवश्य पूरा करूँगा। राजा बलि की बातों को शुक्राचार्य अपना तिरस्कार मानते हैं और उसे श्रीहीन होने का श्राप देते हैं। राजा बलि इस श्राप को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि हर मनुष्य की एक दिन मृत्यु होनी है किन्तु मैं मृत्योपरान्त भी अपनी वचनबद्धता के कारण इतिहास में जीवित रहूँगा। इसके बाद वह हाथ में जल लेकर वामन कुमार को तीन पग भूमि दान करने का संकल्प लेते हैं। In association with Divo - our YouTube Partner #SriKrishna #SriKrishnaonYouTube

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