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कैसे डूब गई श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका | Submerged City of Lord Krishna Dwarka 7 дней назад


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कैसे डूब गई श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका | Submerged City of Lord Krishna Dwarka

कैसे डूब गई श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका | Submerged City of Lord Krishna Dwarka आज के इस वीडियो में हम जानेंगे कि भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारका आखिर कैसे समुद्र में डूब गई। इस घटना के पीछे दो श्रापों का प्रभाव है, तो चलिए जानते हैं कि वो कौनसे दो श्राप थे, जिनके कारण यह घटना घटी। महाभारत के भीषण युद्ध के बाद कौरवों की माता गांधारी अपने सौ पुत्रों की मृत्यु के शोक से अत्यंत पीड़ित थीं और उन्होंने उनके इस दुख का दोष श्री कृष्ण जी को मानते हुए उन्हें श्राप दे दिया कि जिस प्रकार श्री कृष्ण के कारण उन्होंने अपने सौ पुत्रों को खोया है, उसी प्रकार आज से ठीक छत्तीस साल बाद श्री कृष्ण के वंशज यादववंशीय भी आपस में लड़कर मृत्यु को प्राप्त होंगे। गांधारी के इस श्राप को भगवान कृष्ण ने स्वीकार कर लिया। अब इस बात को हुए छत्तीस साल गुजर गए थे और अब वह समय आ गया था जब गांधारी के दिए हुए श्राप का सत्य होना था। इसका आरंभ हुआ उस दिन जब द्वारका में कुछ रिषि भगवान कृष्ण का दर्शन करने आए थे। तभी भगवान कृष्ण का पुत्र साम्भ और उसके मित्रों ने उन रिषियों के साथ उपहास करने का सोचा। साम्भ ने एक गर्भवती स्त्री का वेश धारण किया और उसके मित्रों के साथ उन रिषियों के सामने आए। उनके मित्रों ने उन रिषियों से पूछा कि आप इस स्त्री को देखकर बताइए कि इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा। तब उन रिषियों ने अपनी योग शक्ति से यह जान लिया कि वह स्त्री नहीं, बल्कि पुरुष है और वे इस उपहास से अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने क्रोध में आकर साम्भ को श्राप दे दिया कि उसके गर्भ से एक लोहे का मुसल पैदा होगा, जिसके इस्तेमाल से तुम लोग अपने समस्त कुल का संहार करोगे। और उनका यह श्राप सत्य साबित हुआ। अगले ही दिन साम्भ ने एक लोहे का मुसल पैदा किया और जब श्री कृष्ण को यह बात पता चली, तब उन्होंने राजा उग्रसेन से कहकर उस मुसल को समुद्र में फेंकवा दिया। श्री कृष्ण ने समस्त द्वारका में यह घोषणा करवा दी कि आज से कोई भी वहां मदिरा का उत्पादन या सेवन नहीं करेगा। इसके पश्चात उन्होंने अपने समस्त यादववांशियों को तीर्थ यात्रा करने का आदेश दिया, जिसके बाद समस्त यादववंशी तीर्थ यात्रा पर निकल गए। वे सभी सबसे पहले एक समुद्र के तट पर आकर प्रभास तीर्थ पर निवास करने लगे। एक दिन वहां सत्यकी ने कृथवर्मा का मजाक उड़ाया, जिसके कारण कृथवर्मा ने भी ऐसे शब्द कहे, जिससे सत्यकी को क्रोध आ गया और उसने कृथवर्मा का वध कर दिया। इसके कारण अंधकवांशियों ने सत्यकी को घेर लिया। सत्यकी को इस अवस्था में देखकर प्रद्युम्न उसकी मदद करने वहां आ गए और उसने जमीन से घास को उखाड़ा, जो लोहे का मुसल बन गया। जो कोई भी उस घास को उखाड़ रहा था, वह घास लोहे के मुसल में बदल रहा था। और ऐसे ही लोहे के मुसल से एक-दूसरे पर प्रहार करते हुए समस्त यादववंशी मृत्यु को प्राप्त हो गए। जब श्री कृष्ण और बलराम जी वहां आए, वे यह दृश्य देखकर अत्यंत दुखी हो गए। तब श्री कृष्ण ने बलराम जी से कहा कि वे द्वारका जा रहे हैं अपने पिता वासुदेव जी से मिलने। ऐसा कहकर वे द्वारका की ओर प्रस्थान कर दिए। द्वारका में वे अपने पिता वासुदेव जी से मिले और उन्होंने उनसे कहा कि वे तुरंत अर्जुन को यहां बुला लें और द्वारका के सभी वासियों को इन्द्रप्रस्थ ले जाएं। ऐसा कहकर वे वापस बलराम जी के पास गए, लेकिन उस समय बलराम जी ने अपना मनुष्य शरीर त्यागकर अपने शेषनाग अवतार में आ गए और उन्होंने श्री कृष्ण को प्रणाम किया और वे वैकुंट के लिए प्रस्थान कर गए। इसके बाद भगवान कृष्ण एक पेड़ के नीचे जाकर सो गए। उस समय एक शिकारी हिरण का शिकार कर रहा था। उसने दूर से भगवान कृष्ण के पैर को हिरण समझकर उस पर बाण से प्रहार कर दिया। जब उसने पास जाकर देखा, तब वह भगवान कृष्ण से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगने लगा। तब भगवान कृष्ण ने उसे दिलासा दिया कि उसकी इसमें कोई भी भूल नहीं है और उन्होंने उसे पाप मुक्त किया। वह भी अपने परम धाम वैकुंट की ओर प्रस्थान कर गया। जब यह बात द्वारका पहुंची और अर्जुन तथा समस्त द्वारका की प्रजा को पता चली, तब वे सभी अत्यंत दुखी हो गए। तब वासुदेव जी ने श्री कृष्ण का संदेश अर्जुन को दिया, जिसके पश्चात वे द्वारका के सभी वासियों को लेकर द्वारका से प्रस्थान करने के तुरंत बाद समस्त द्वारका नगरी समुद्र में समा गई। #krishna #bhagwatkatha #shrikrishna #shrikrishnabhakti #mathura #dwarka #dwarkadhish #mahabharat

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