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Why Was Ganga Brought to Earth? | माँ गंगा की पृथ्वी पर आने की सम्पूर्ण कथा 2 недели назад


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Why Was Ganga Brought to Earth? | माँ गंगा की पृथ्वी पर आने की सम्पूर्ण कथा

Why Was Ganga Brought to Earth? | माँ गंगा की पृथ्वी पर आने की सम्पूर्ण कथा जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी लोक पर गंगा नदी को सबसे पवित्र नदी माना जाता है और देवी गंगा को मुक्ति दायिनी भी माना जाता है, जो अपने जल की पवित्रता से मनुष्यों को उनके पापों से मुक्ति प्रदान करती है। किन्तु क्या आपको यह बात पता है कि गंगा नदी वास्तव में पहले पृथ्वी लोक पर नहीं थी, बल्कि गंगा नदी पहले देवलोक में वास करती थी। तो चलिए आज के इस वीडियो में हम आपको गंगा देवी के पृथ्वी पर अवतरण के पीछे की कथा सुनाते हैं। यह बात उस समय की है जब प्रभु श्री राम के पूर्वज, जिनका नाम सागर था, वे अयोध्या पर राज करते थे। उन्हें माता सरस्वती के आशीर्वाद से साठ हज़ार पुत्र प्राप्त हुए थे। एक दिन उन्होंने अश्वमेध यज्ञ करने का सोचा। अश्वमेध यज्ञ में एक घोड़े को कई राज्यों से होकर गुजरना पड़ता है और अगर किसी राज्य ने भी उस घोड़े को रोकने की कोशिश की, तो उस राज्य को अश्वमेध यज्ञ करने वाले राज्य से युद्ध करना पड़ता था। इस यज्ञ का प्रारंभ हुआ और अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा कई राज्यों से होकर गुजरने लगा, लेकिन किसी भी राज्य ने उसे नहीं रोका। यह बात जब देवराज इंद्र को पता चली, तो उन्हें अपने सिंहासन के छिन जाने की चिंता सताने लगी, जिसके कारण उन्होंने उस घोड़े को लेकर रिषि कपिल के आश्रम में बंद कर दिया। तब महाराज सागर ने अपने साठ हज़ार पुत्रों को आदेश दिया कि वे यज्ञ के घोड़े को खोजकर लाएँ। इसके तुरंत बाद उनके सभी पुत्र तीनों लोकों में उस घोड़े को ढूंढने निकल गए और जब वे सभी रिषि कपिल के आश्रम पहुंचे, तो उन्होंने उस घोड़े को वहाँ देखा। वे सभी सोचने लगे कि रिषि कपिल ने उस घोड़े को बंदी बनाया है और वे सभी ध्यान की अवस्था में लीण रिषि कपिल से सवाल करने लगे, जिसके कारण रिषि कपिल का ध्यान भंग हो गया और वे क्रोधित हो गए। उन्होंने अपने तपोबल से महाराज सागर के साठ हज़ार पुत्रों को भस्म कर दिया, जिसके कारण वे सभी प्रेतात्मा बन गए और उन्हें मुक्ति की प्राप्ति नहीं हुई। कई समय बीत गया और महाराज सागर के वंशज जैसे राजा अंशुमान और राजा दिलीप ने उन सात हजार लोगों को मुक्ति दिलाने की कई कोशिश की, किंतु वे असफल हो गए। और जब राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ अयोध्या के राजा बने, तब उन्होंने इस कार्य को करने का सोचा और उन्होंने अपने राज्यपाट के कार्य को अपने मंत्रिमंडल को सौंप दिया और इस कार्य को करने के लिए निकल पड़े। सबसे पहले वे रिषि कपिल के आश्रम पहुँचे और उन्होंने रिषि कपिल से अपने परदादा के किए कार्य के लिए क्षमा मांगी और उनसे इसका उपाय पूछा। तब रिषि कपिल ने उन्हें कहा कि उनके परदादा की आत्मा तभी मुक्त होगी जब उनकी अस्थियों को गंगा नदी में प्रवाहित किया जाएगा। किन्तु अब समस्या यह थी कि उस समय देवी गंगा ब्रह्मा देव के कमंडल में वास करती थीं। इसी कारण से ब्रह्मा देव को प्रसन्न करने के लिए भागीरथ घोर तपस्या करने लगे। कई वर्षों की तपस्या के बाद ब्रह्मा देव उनके सामने प्रकट हुए और उन्होंने देवी गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिए अपनी अनुमति दी। किंतु अब समस्या यह थी कि यदि गंगा के जल को नियंत्रित किए बिना पृथ्वी पर भेजा जाता, तो उनके वेग से सम्पूर्ण सृष्टि का नाश हो सकता था। इसलिए ब्रह्मा देव ने भागीरथ को यह सुझाव दिया कि वे भगवान शिव को प्रसन्न कर के उनसे यह कार्य करने को कहें। तब भागीरथ, शिव जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या करने लगे और कई वर्षों की तपस्या के बाद शिव जी उनके सामने प्रकट हुए और उन्होंने यह कार्य करने के लिए अपनी सहमति दी। इसके बाद ब्रह्मा देव के कमंडल से महादेव ने देवी गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया और इस प्रकार उन्होंने गंगा जल को नियंत्रित माध्यम से पृथ्वी लोक पर प्रवाहित करने का कार्य किया। इस तरह देवी गंगा मनुष्यों की उद्धार हेतु पृथ्वी लोक पर अवतारित हुईं और इस प्रकार भागीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियों को गंगा जल में प्रवाहित किया, जिसके कारण उन सभी आत्माओं को मुक्ति मिली। #mahadev #mahakal #shiva #ganga

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