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नैतिक दृष्टान्त Naitik Drishtant | कवि शिरोमणि #लेखनाथ_पौड्याल विरचित बडाले जे गर्यो काम हुन्छ त्यो सर्व-संमत। छैन शङ्करको नङ्गा, मगन्ते भेष निन्दित।। गरदैन ठुलो व्यक्ति मर्यादा-स्थिति-लङ्घन। बसेको छ महासिन्धु सीमाबद्ध बनीकन।। दबिन्छ गुणिको दोष गुणका राशिमा परी। रश्मिले चन्द्रको दाग दबाएकै छ बेसरी।। कसैको लोकमा छैन एकैनास समुन्नति। अरूको के कुरा हेर सन्ध्यामा सूर्यको गति।। छोटो बढ्यो भने ज्यादा फूर्ति ढाँचा बढाउँछ। उर्लंदो खहरे हेर कत्तिको गड्गडाउँछ।। ज्यादा सोझो हुनुभन्दा टेढिनु छ फला-धिक। गरदैन कुनै सोझो ग्रहको पूजना--दिक।। टपर्टुञ्या पनि हुन्छ मूर्खमध्ये प्रतिष्ठित। बोलने को अँध्यारोमा महात्मा जुन्किरीसित।। सानैदेखि छुचो हुन्छ दुष्ट मानिसको मति। घोचने जङ्गली काँढा पहिले नै तिखा कति।। मिलेर काम गर्नाले हुन्छ अत्यन्त फायदा। एकता हेर कस्तो छ मौरीको महमा सदा।। जो दिंदैन उही दिन्छु भनी गर्जन्छ सत्त्वर। जो हो नवर्षने मैघ उसैको हुन्छ घर्घर।। हुनुपर्दछ मौकामा शत्रुको पनि सेवक। कोइली कागकै बच्चा बन्छ सानू छँदा तक।। गुणग्राही जहाँ छैन वहाँ के गरला गुणी। कौडीमा तक मिल्किन्छ भिल्लका देशमा मणि।। योग्य स्थानविषे मान सानाले पनि पाउँछ। कृष्णाका तटको ढुङ्गा देवता कहलाउँछ।। उपकारी गुणी व्यक्ति निहुरन्छ निरन्तर। फलेको वृक्षको हाँगो नझुकेको कहाँ छ र।। मेटिंदैन कसैबाट आफनू कर्मपद्धति। बनवासी बने राम चौधै भुवनका पति।। धर्म हो धीरको धैर्य राखनू दु:खजालमा। मानू मौनव्रती हुन्छ कोइली शीतकालमा।। सारा सार लिई कन्था छोडी-दिन्छ गुणी जन। रस चुसेपछि भृङ्ग फूलमा भुल्दथ्यो किन ? सङ्गले पनि जाँदैन दुष्टको दुष्टा रिस। श्रीखण्डमा बसी सर्प कहाँ हुन्थ्यो र निर्विष।। मूर्खका मनमा अर्ती गालीतुल्य बिझाउँछ। दूधपान गरी सर्प खालि विष बहाउँछ।।