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रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 44 - प्रहलाद की विष्णु भक्ति, भगवान नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप का वध 3 года назад


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रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 44 - प्रहलाद की विष्णु भक्ति, भगवान नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप का वध

Watch This New Song Bhaj Govindam By Adi Shankaracharya :    • श्री आदि शंकराचार्य कृत भज गोविन्दम् ...   तिलक की नवीन प्रस्तुति "श्री आदि शंकराचार्य कृत भज गोविन्दम्" अभी देखें :    • श्री आदि शंकराचार्य कृत भज गोविन्दम् ...   _________________________________________________________________________________________________ बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here -    • दर्शन दो भगवान | Darshan Do Bhagwaan ...   Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 44 - Vishnu Bhakti of Pralhad. Hiranyakashipu slaughtered by Lord Narasimha. हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के विरुद्ध विजय तथा इन्द्रलोक पर अधिकार प्राप्त के लिये दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के पास जाता है। शुक्राचार्य उसे ब्रह्मा की तपस्या करने का परामर्श देता है। हिरण्यकश्यप हर मौसम की मार सहते हुए ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या करता है। ब्रह्मा जी हिरण्यकश्यप को दर्शन देते हैं और वरदान माँगने को कहते हैं। हिरण्यकश्यप कहता है कि परमपिता आप मुझे यह वरदान दें कि उनके बनाये किसी भी प्राणी से मेरी मृत्यु न हो, न पशु से और न नर से। न दैत्य से और न देवताओं से। न भीतर मरुँ और न बाहर। न दिन में मरुँ और न रात में। न अस्त्र से मरुँ और न शस्त्र से। न पृथ्वी पर और न आकाश में। पृथ्वी पर कोई प्राणी मेरा सामना न कर सके। आपके बनाये प्राणियों का मेरा एकछत्र साम्राज्य हो। इन्द्रादि लोकपालों में जैसी प्रतिष्ठा आपकी है, वैसी मेरी भी हो जाये। ब्रह्मा जी उसे यह वरदान दे देते हैं। गुरु संदीपनि इस कथा को सुनाते हुए श्रीकृष्ण से कहते हैं कि ऐसा वरदान पाने वाला प्राणी यदि लोककल्याण के कार्य करता तो वह महान व्यक्ति बन जाता किन्तु हिरण्यकश्यप वरदान का दुरुपयोग करता है और इन्द्रलोक पर धावा बोल देता है। स्वर्ग पर अधिकार करने के बाद हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान घोषित कर देता है और सभी प्राणियों को अपनी पूजा करने पर विवश कर देता है। उस समय जब सभी देवता भी हिरण्यकश्यप के सामने नतमस्तक हो गये, तब पाँच वर्ष के एक बालक ने भगवान श्रीहरि की भक्ति की लौ जगायी। यह बालक कोई और नहीं, हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद था। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को काफी डराता और धमकाता है कि वह उसकी पूजा करे। किन्तु प्रहलाद ने श्रीहरि की भक्ति पथ नहीं छोड़ी। क्रोधित हिरण्यकश्यप अपने ही पुत्र की हत्या का आदेश सैनिकों को देता है किन्तु कोई अस्त्र शस्त्र प्रह्लाद के शरीर को खरोंच भी नहीं पहुँचा पाता। हिरण्यकश्यप के अगले आदेश पर प्रह्लाद को पहाड़ की चोटी से समुद्र में फेंका जाता है किन्तु प्रहलाद भगवान श्रीहरि का स्मरण करते रहते हैं। श्रीहरि उसे अपने हाथों में थामकर सुरक्षित बाहर ले आते हैं। प्रह्लाद के बच जाने पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका उससे कहती है कि ब्रह्माजी के एक वरदान के कारण अग्नि मुझे जला नहीं सकती है। मैं प्रहलाद को लेकर जलती लकड़ियों के ढेर पर बैठ जाऊँगी। इस अग्नि में प्रह्लाद जलकर भस्म हो जायेगा। किन्तु प्रह्लाद की हरिभक्ति होलिका के वरदान को निष्फल कर देती है। होलिका आग में जलकर भस्म हो जाती है और भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं होता। जलती हुई होलिका चीत्कार करते हुए ब्रह्माजी पर झूठा वरदान देने का आरोप लगाती है। इस पर ब्रह्मा जी कहते हैं कि तुम्हें यह वरदान अपनी सुरक्षा के लिये दिया गया था किन्तु तुमने इसके जरिये दूसरे के प्राण लेने का प्रयास किया इसलिये अग्नि ने स्वयं तुम्हारा विनाश कर दिया। यह घटना से थर्राया हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से उसकी शक्ति का कारण और उने भगवान विष्णु का पता ठिकाना पूछता है। प्रह्लाद कहते हैं कि श्रीहरि कण कण में व्याप्त हैं। हिरण्यकश्यप एक खम्बे की ओर संकेत कर पूछता है कि क्या तुम्हारा भगवान इस खम्बे में भी है। प्रह्लाद हाँ में उत्तर देते हैं। तब अपना आपा खो चुका हिरण्यकश्यप अपनी गदा से पर प्रहार करता हुआ कहता है कि मैं खम्बे को ध्वस्त कर तुम्हारे भगवान को खत्म कर दूगाँ। खम्बा टूट जाता है। उसके अन्दर से भगवान विष्णु नरसिंह का रूप धारण कर प्रकट होते हैं और वे हिरण्यकश्यप को घसीट कर महल की चौखट पर ले जाते हैं और अपनी जंघा पर लेटा देते हैं। तभी आकाशवाणी होती है कि ब्रह्मा के वरदान की रक्षा करते हुए आज तुम्हारा अन्त किया जा रहा है। नरसिंह भगवान ब्रह्मा की सृष्टि से नहीं हैं। वे न नर हैं, न पशु। तुम इस समय न धरती पर हो और न आकाश में। तुम भगवान नरसिंह की जंघा पर हो। तुम न घर में हो और न बाहर। बल्कि घर की चौखट पर हो। इस समय न दिन है और न रात। यह संध्याबेला है। तुम्हें न अस्त्र से मारा जा रहा है और न शस्त्र से। तुम्हें नरसिंह भगवान अपने नाखून से मार रहे हैं। इसके पश्चात भगवान नरसिंह हिरण्यकश्यप की छाती चीरकर उसका अन्त करते हैं। हिरण्यकश्यप वध के बाद भगवान नरसिंह प्रह्लाद को अपनी गोद में बैठाकर दुलारते हैं। In association with Divo - our YouTube Partner #SriKrishna #SriKrishnaonYouTube

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