Русские видео

Сейчас в тренде

Иностранные видео


Скачать с ютуб रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 57 - महाऋषि माण्डव्य का धर्मराज को श्राप в хорошем качестве

रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 57 - महाऋषि माण्डव्य का धर्मराज को श्राप 1 месяц назад


Если кнопки скачивания не загрузились НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу страницы.
Спасибо за использование сервиса savevideohd.ru



रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 57 - महाऋषि माण्डव्य का धर्मराज को श्राप

"Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 57 - Maharishi Mandavya's curse on Dharam Raj. मगध नरेश जरासंध अपने जमाई कंस के वध का प्रतिशोध लेने के लिये मथुरा पर आक्रमण करने निकलता है। अक्रूर मथुरा नरेश के राजदूत बनकर सैन्य सहायता पाने के लिये हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के पास जाते हैं। महारानी गांधारी का कुटिल भाई शकुनि धृतराष्ट्र को समझा देता है कि यदि जरासंध मथुरा को नष्ट कर देता है तो इसमें हमारी ही भलाई है क्योंकि मथुरावालों की कुन्ती से रिश्तेदारी है। यदि मथुरा ही नष्ट हो गया तो वह युधिष्ठिर को युवराज घोषित करवाने के लिये कुन्ती का साथ नहीं दे पायेंगे और इससे दुर्योधन को युवराज बनाने का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। शकुनि की बातों में आकर धृतराष्ट्र बहाना बनाकर अक्रूर को सैन्य सहायता देने से मना कर देते हैं। अक्रूर मथुर वापस आने के बाद वह श्रीकृष्ण को सारा वृतान्त सुनाते हैं। श्रीकृष्ण अक्रूर से हस्तिनापुर के महामंत्री विदुर के हालचाल पूछते हैं। अक्रूर श्रीकृष्ण को बताते हैं कि विदुर को केवल आपके दर्शन की अभिलाषा है। तब श्रीकृष्ण एक बड़े रहस्य का खुलासा करते हुए बताते हैं कि विदुर कोई और नहीं, धर्मराज का अवतार हैं जिन्हें महर्षि माण्डव्य के श्राप के कारण मानव योनि में जन्म लेना पड़ा है। श्रीकृष्ण विस्तार से बताते हैं कि पूर्वकाल में एक राजा के सैनिक उसी वन में चोरों का पीछा कर रहे थे जहाँ महर्षि माण्डव्य का आश्रम था। चोर उनके आश्रम में घुस गये और महर्षि से झूठ बोले कि कुछ डाकू हमारा पीछा कर रहे हैं और हमारा धन छीनकर हम सबको मार डालना चाहते हैं। चोरों ने महर्षि माण्डव्य से सहायता की गुहार लगायी तो उन्होंने चोरों को यात्री समझा और उनका चोरी किया हुआ धन अपनी कुटिया में छिपाकर उन्हें पीछे के मार्ग से भाग जाने को कहा। जब राजा के सैनिक महर्षि की कुटिया में पहुँचे तो उन्हें चोरी का सारा धन वहाँ से बरामद हो गया। सैनिकों ने समझा कि महर्षि माण्डव्य कोई पाखण्डी बाबा है और चोरों से मिला हुआ है। सैनिक ऋषिवर को पकड़ कर राजा के दरबार में ले गये। राजा की पृवत्ति अपराधियों को कठोर दण्ड देने की थी। राजा ने महर्षि माण्डव्य को अपनी सफाई में कुछ भी कहने का अवसर नहीं दिया और उन्हें बीच चौराहे पर सूली पर चढ़ाने का आदेश दे दिया। महर्षि की योगशक्ति के कारण वह सूली उनका छेदन नहीं कर सकी और वह सूली पर किसी आसन की भाँति बैठे-बैठे तपस्या करते रहे। यह बात राजा तक पहुँची और उसे यह भी पता चला कि ये महात्मा कोई और नहीं, महर्षि माण्डव्य हैं तो वह त्राहिमाम त्राहिमाम करता हुआ महर्षि के चरणों पर जा गिरा। माण्डव्य ऋषि पूरे संयम के साथ राजा को दोषहीन करार दिया और कहा कि उस समय तुम्हारे सैनिकों ने जो देखा, उस परिस्थिति के आधार पर मुझे चोर समझा और तुमने राजधर्म के अनुसार मुझे दण्ड दिया। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। दोष धर्मराज का है जिनकी आज्ञा से उस समय काल ने ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी थी। ऐसा क्यों हुआ, इसका उत्तर अब मैं धर्मराज से माँगूँगा कि किस कारण मुझे इस दण्ड का भागी होना पड़ा। तत्पश्चात महर्षि सीधे धर्मराज के पास गये। धर्मराज ने बताया कि बाल्यकाल में माण्डव्य कुछ कीट पंतगों के पुंछभाग में सीकें घुसेड़ दिया करते थे, उसका प्रतिफल उन्हें सूली के रूप में प्राप्त हुआ है। इस पर महर्षि माण्डव ने धर्मराज से कहा कि धर्मशास्त्र के अनुसार बारह वर्ष की आयु तक बालक अज्ञानी होता है, इसलिये उसके किये को अपराध नहीं माना जा सकता है। बालपन में की गयी मेरी मूर्खता को पाप की संज्ञा देकर आपने अन्याय किया है। इसलिये मैं श्राप देता हूँ कि आपको शूद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में मृत्युलोक में जन्म लेना होगा। जहाँ आप न्याय-अन्याय की गुत्थियाँ सुलझाते-सुलझाते थक जायेंगे। उधर जरासंध और उसकी मित्र सेनाएं मथुरा से कुछ दूरी पर पड़ाव डालती हैं। जरासंध मद्र नरेश शल्य, चेदि के राजा शिशुपाल और बाणासुर के साथ रात्रि मंत्रणा में तय करता है कि मथुरा जीतने के बाद प्रजा पर करों का बोझ लाद दिया जायेगा और कंस की हत्या का प्रतिशोध कृष्ण और बलराम को सूली पर चढ़ा कर लिया जायेगा। अक्रूर व अन्य यादव सरदारों को राजा शूरसेन और राजा उग्रसेन के साथ बन्दी बनाकर राजगीर के कारागार भेज दिया जायेगा। किन्तु एक कूटनीति के तहत वह राजा शूरसेन को चेतावनी पत्र भेजता है कि यदि वह कृष्ण और बलराम को उसके सुपुर्द कर दें तो मथुरा का विनाश से नहीं किया जायेगा। इस पत्र को पाकर राजा शूरसेन परेशान होते हैं। Produced - Ramanand Sagar / Subhash Sagar / Pren Sagar निर्माता - रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर Directed - Ramanand Sagar / Aanand Sagar / Moti Sagar निर्देशक - रामानन्द सागर / आनंद सागर / मोती सागर Chief Asst. Director - Yogee Yogindar मुख्य सहायक निर्देशक - योगी योगिंदर Asst. Directors - Rajendra Shukla / Sridhar Jetty / Jyoti Sagar सहायक निर्देशक - राजेंद्र शुक्ला / सरिधर जेटी / ज्योति सागर Screenplay & Dialogues - Ramanand Sagar पटकथा और संवाद - संगीत - रामानन्द सागर Camera - Avinash Satoskar कैमरा - अविनाश सतोसकर Music - Ravindra Jain संगीत - रविंद्र जैन Lyrics - Ravindra Jain गीत - रविंद्र जैन Playback Singers - Suresh Wadkar / Hemlata / Ravindra Jain / Arvinder Singh / Sushil पार्श्व गायक - सुरेश वाडकर / हेमलता / रविंद्र जैन / अरविन्दर सिंह / सुशील Editor - Girish Daada / Moreshwar / R. Mishra / Sahdev संपादक - गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर॰ मिश्रा / सहदेव Cast / पात्र Sarvadaman D. Banerjee सर्वदमन डी. बनर्जी Swapnil Joshi स्वप्निल जोशी Ashok Kumar अशोक कुमार बालकृष्णन Deepak Deulkar दीपक डेओलकर Sanjeev Sharma संजीव शर्मा Pinky Parikh पिंकी पारिख Reshma Modi रेशमा मोदी Shweta Rastogi In association with Divo - our YouTube Partner #shreekrishna #shreekrishnakatha #krishna"

Comments