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इनके बाद कोन सुनाएगा सारंगी की मधुर धुन।हरियाणवी लोक संगीतकार।सतबीर जोगी पार्टी। 1 год назад


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इनके बाद कोन सुनाएगा सारंगी की मधुर धुन।हरियाणवी लोक संगीतकार।सतबीर जोगी पार्टी।

- इनके बाद कौन सुनाएगा सारंगी की मधुर धुन.... -पांच पीढ़ियों से सांरगी की धुन को जीवंत कर रखे हुए है जोगी पार्टी के लोक कलाकार - मुख्यमंत्री से लगाई गुहार लोक कलाकारों के हित की और से ध्यान से सरकार संदीप रामायण हिसार। सारंगी एक गायकी प्रधान भारतीय शास्त्रीय संगीत का वाद्य यंत्र है। प्राचीन काल में सारंगी घुमक्कड़ जातियों का वाद्य यंत्र था। भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रो में सो प्रकार की धुनों को निकालने वाला यह एक वाद्ययंत्र है। हरियाणवी लोक संगीत में भी सारंगी प्रमुख वाद्य यंत्र है। इस लोक कला के वाद्ययंत्र को बजाने वाले व सारंगी की धुन सुनाने वाले हरियाणा प्रदेश में करीब 25 से 30 ही लोक कलाकार ही शेष बचे हैं।‌ पर्यटक विभाग द्वारा हिसार में आयोजित हिसार उत्सव कार्यक्रम में पहुंची सतबीर ‌सिंह जोगी सारंगी पार्टी ने सारंगी की धुन से सभी को अपनी ओर आकृ‌षित किया। इस सारंगी पार्टी में जींद के खरल गांव से 65 वर्षीय प्रेमचंद जोगी, कलोदा खुर्द गांव से 70 व‌र्षीय सतबीर सिंह, भिवानी के बजीना गांव से 54 वर्षीय हरिकेश व 67 वर्षीय राजेंद्र सिंह, रोहतक के खरक बैंसी गांव से 55 वर्षीय कृष्ण कुमार त‌था हांसी के 68 वर्षीय सतबीर सिंह शामिल हैं। इनका कहना है आज के समय के कलाकर सारंगी के महत्व नहीं समझ रहे हैं। युवा कलाकरों का सारंगी की ओर कम रूझान हैं। अगर ऐसा ही रहेगा सारंगी को बजाने वाला नहीं रहेगा। ------- ये बोले लोक कलाकार - सारंगी वादक सतबीर सिंह ने बताया कि जोगी सारंगी पार्टी के सभी लोक कलाकार पीढ़ी दर पीढ़ी हरियाणा की इस लोक कला जीवंत रखे हुए हैं। प्रेमचंद जोगी ने बताया कि उनसे पहले उनके बुजुर्ग सारंगी बजाते थे। एक जमाना ऐसा था जब सारंगी वादकों के बहुत सारे कार्यक्रम होते थे। सारंगीबजाना ही इनका प्रमुख रोजगार था। इसी से इन लोक कलाकारों का परिवार का लालन-पालन होता था। वर्तमान समय में इन सारंगी वादक लोक कलाकारों को आजी‌विका चलाना मुश्किल हो गया है। इन्होंने सरकार से मांग की है कि लोक कला को जीवंत रख रहे लोक कलाकारों के लिए सरकार द्वारा पेंशन स्किम या अन्य आर्थिक सहयोग की योजना शुरू करनी चाहिए। सारंगी वादक सतबीर जोगी ने बताया कि सारंगी के बगैर हरियाणवी लोक संगीत को बेजान सा माना जाता है। पुराने समय में हुए सांग व हरियाणवी लोक संगीत के सभी कार्यक्रमों में सारंगी प्रमुखता से बजती थी। ‌फिलहाल डीजे व तड़क-भड़क के गीतों में सांरगी की धुन सुनाई देनी कम हो गई है।

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