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गुदुम्ब-बाजा || सुनिए देश का सबसे प्राचीन वाद्य || NARENDRA SINGH SIDHI 6 лет назад


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गुदुम्ब-बाजा || सुनिए देश का सबसे प्राचीन वाद्य || NARENDRA SINGH SIDHI

#वादक - इंद्रवती लोक कलाग्राम गजरा बहरा दल #नृत्य - गुदुम्ब-बाजा नृत्य #गुदुम्ब-बाजा के बारे में :गुदुम्ब-बाजा यह लोकनृत्य बघेलखंड में घसिया जनजाति द्वारा किया जाता है | घसिया बघेलखंड के अलावा उड़ीसा ,और छत्तीसगढ़ राज्य में भी अपने पारम्परिक गुदुम्ब बाजा नृत्य या सिंग्बाजा व निसान के साथ पाए जाते हैं | गुदुम्बाजा नृत्य के सम्बन्ध में तरह –तरह की किवंदांतिया सामान्य जनमानस और घसिया जनजाति से सुनने को मिलता है उसके आधार पर यह नृत्य शिव विवाह के समय शुरू हुआ था | शिव विवाह के दौरान संसार के प्रत्येक जीव ने अपनी –अपनी भागीदारी प्रकट की वहीं घसिया जाति के लोगो ने गुदुम्ब बाजा बजाकर अपनी भागीदारी प्रकट की | गुदुम्ब बाजा करतब प्रधान लोकनृत्य है | इस नृत्य में जो करतब दिखाए जाते हैं या जो भी संरचनाये बनती हैं दरअसल वो जानवरों और अन्य जीव जैसे बिच्छू, सर्प या दोमुहे कीड़ो की हैं | एक तरह से यह उत्तम अनुकरण है मानव समाज का अपने युगीन अन्य जैविक समाज का | अनुकरण की सहजता मानव मात्र ही नही जीवजगत के अन्य जीवो में भी पायी जाती है | पक्षियों में हम तोतें को ही ले वह कितना खूबसूरत अनुकरण करता है | मेरा मानना है की शिव विवाह के दौरान ही पस जाति ने वंहा आये नाना प्रकार के आये जीवो का अपने वाद्ययंत्र की थाप पर नकल करनी शुरू की होगी यह बिलकुल सहज है जो आज भी मानव प्रवित्ति में हम देख सकते हैं | नृत्य कि शैली देख कर ऐसा लगता है की यह अपने शैशव काल में पूर्णतः करतब प्रधान ही रहा होगा कालांतर में समय की आवश्यकतानुसार नाच शिली में रूपायित हुआ और इसका वर्तमान रूप इस तरह है | इस नृत्य को छतीसगढ़ में सिंग्बाजा.उडीसा में निशान ,और कंही –कंही करइली से भी संबोधित करते हैं | इस नृत्य को करने वाला केवल घसिया समाज ही न्ही वरन कुछ जगहों पर बसुहार ,डोम जाति के लोग भी इसे पारम्परिक व अपनी जातीय कला रूप मानकर करते हैं | एवं बघेलखंड के सोहर गीतों एवं छतीसगढ़ के भरथरी गाथा गायन परमरा में इसका उल्लेख इसकी पारम्परिकता और प्राचीनता की परिचायक है | गुदुम्ब बजा बघेलखंड सीधी जिले के बकवा गाँव में पाई जाने वाली नृत्य परंपरा है | यह परंपरा मध्यप्रदेश के कई अलग – अलग क्षेत्रो में पाई जाती है साथ ही साथ छत्तीसगढ़ में भी फलित – फूलित है - इसमे करतब के साथ अलग जानवरों का अनुकरण किया जाता है | यह लोकनृत्य बघेलखंड में घसिया जनजाति द्वारा किया जाता है | घसिया बघेलखंड के अलावा उड़ीसा ,और छत्तीसगढ़ राज्य में भी अपने पारम्परिक कलारूपो के साथ पाए जाते हैं | घसिया जाति और जातिगत कलारूप - घसिया जाति बघेलखंड में बहुत कम संख्या में निवासरत है यंहा इसे हरिजन की श्रेणी में रखा गया है जबकि बाकी जगहों पर इसे जनजाति के श्रेणी में | घसिया जाति के अन्य निम्न नृत्य भी किये जाते हैं साथ ही इस जानजाति की इस नृत्य के आलावा तामाम और मौखिक परम्पराए व अन्य कला रूप है भी हैं जो निम्न लिखित हैं – • करमा • ददरिया • संस्कार गीत • ऋतू गीत • कहावते • मुहावरे • लोक कथाये • गाथाये • केहरा गुदुम्ब-बाजा कला रूप की आधार भूत जातियां या समुदाय के तामाम प्रक्रति से सम्बंधित जानकारिया इनके मौखिक कला रूपों में सुनने को मिल जाते हैं साथ ही साथ इनके रहन -सहन व नित्य जीवन शैली को देख कर हम यह समझ सकते हैं की इनका प्रक्रति के प्रति कितना लगाव आस्था एवं ज्ञान की परिपाटी से जुड़ाव राहा है |उदाहरण के लिए हम चिन्हित कला रूपों के जातीय कहावतो ,मुहावरों व अन्य तामाम मौखिक परम्पराओं को समझते हैं जो जातीय शिल्पकारिता की बात करे तो हमें ऐसे तामाम शिल्प रूप गोंड ,बैगा ,घसिया, यादव ,कोल , पनिका ,कोंहार जातियों में देखने को मिलते हैं जिनकी चर्चा हम क्रमशः जातिगत रूप से मान सकते हैं | इस जाति के लोग मिट्टी के मांदर ,और गुदुम वाद्ययंत्र बनाने का कार्य करते हैं और साथ ही साथ यह इनका व्यवसायिक कार्य भी है | #नरेंद्र_सिंह_सीधी

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