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ऊं नार भार बालाए नम:। श्री भानुवीर नारद फाउंडेशन और हिमालयीलोग की प्रस्तुति । परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा । गीत, संगीत व गायन- आचार्य ओम प्रकाश लखेड़ा । #मां, #बाला, #त्रिपुर, #सुंदरी, की आरती। उत्तराखंड के लखेड़ाओं की कुलदेवी है मां बाला त्रिपुर सुंदरी.। ऊं नार भार बालाय नम: । ऊं नार भार बालाय नम:। यह #उत्तराखंड, के #लखेड़ाओं, का प्रात: स्मरणीय मंत्र है। लखेड़ा परिवार केे हर सदस्य से आशा की जाती है कि वह प्रतिदिन प्रात:काल में आंख खुलते ही अपने ईष्टदेव के स्मरण के साथ इस मंत्र का भी जाप करेगा। जाप इसलिए कि इस मंत्र में लखेड़ाओं का संपूर्ण महान इतिहास समाहित है। उत्तराखंड के लखेड़ाओं के प्रथम पुरुख श्रद्धेय भानुवीर नारद जी गौड़ देश (अब पश्चिम बंगाल) के वीरभूम के निवासी थे। वे सागर (जगन्नाथ पुरी) से शिखर (हिमालय-बदरीनाथ धाम) तक की यात्रा पर निकले थे। नारद जी वीरभूम से श्री जगन्नाथ धाम गए और फिर वहां से श्री बद्रीनाथ धाम सहित हिमालय के तीर्थों की यात्रा पर हिमवंत देश (केदारखंड)आए थे। ये दोनों की आदि शंकराचार्य की कर्मस्थली रहे हैं। उन्होंने जगन्नाथपुरी और बदरीनाथ धाम के निकट जोशीमठ में मठ स्थापित किए थे। नारद जी अपने साथ अपनी कुलदेवी मां बाला सुंदरी की मूर्ति भी साथ लेकर चले थे। जो कि मां भगवती का ही एक रूप है। हिमवंत देश (अब उत्तराखंड) में उनका विवाह डिमरी परिवार की कन्या से हुआ। उनका नाम भारती था। घर में उनको प्यार से हंसा कह पर भी पुकारा जाता था। आद्यगौड़ ब्राह्मण नारद जी भारद्वाज गोत्र के थे। इस मंत्र में यही सार छुपा है। नार = नारद भानुवीर जी । भार = भारती जी व भारद्वाज गोत्र। बालाय = मां बाला सुंदरी। नम: = को नमन है। इसलिए ‘ऊं नार भार बालाय नम: लखेड़ाओं का प्रात: स्मरणीय मंत्र है।श्रद्धेय भानुवीर नारद उत्तराखंड के लखेड़ा परिवार के प्रथम पुरुष श्रद्धेय भानुवीर नारद जी गौड़ देश (अब पश्चिम बंगाल) के वीरभूम में जन्में, पले व बढ़े। युवा होते ही वे नारद नामक यात्री दल के साथ सागर (जगन्नाथ पुरी) से शिखर (हिमालय) तक की तीर्थयात्रा पर श्री बदरीनाथ धाम आए थे। वे एक तीर्थयात्री के तौर पर यहां आए थे लेकिन हिमवंत देश (केदारखंड) के हो कर रह गए। चांदपुर गढ़ी के पंवार राजवंश के आग्रह पर वे लखेड़ी गांव में बस गए थे। उनके वंशज लखेड़ा जाति नाम से जाने गए और केदारखंड में #सरोला ब्राह्मण माने गए।