У нас вы можете посмотреть бесплатно Bhikhudan Gadhvi - Sakhubai Ki Bhakti - Bhakt Sakhubai - Story - सखुबाई की भक्ति или скачать в максимальном доступном качестве, которое было загружено на ютуб. Для скачивания выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса savevideohd.ru
Studio Sangeeta Presents:- Story of Sakhubai. Album:-Sakhubai Ki Bhakti Loksahityakar:-Bhikhudan Gadhvi Music Label:-Studio Sangeeta भगवान की प्रिय भक्त सखुबाई जिन्होंने अपने को सब प्रकार से प्रियतम परमात्मा के चरणों में अर्पण कर दिया है, उनकी महिमा अपार है। ऐसे लोग ही सच्चे भक्त हैं और ऐसे भक्तों की संभाल करने के लिए ही भगवान् को अनेकों लीलायें करनी पड़ती हैं। अपने प्रिय भक्तों के लिए वे नीच से नीच कार्य करने के लिए भी तैयार रहते हैं। महाराष्ट्र में कृष्णा नदी के किनारे करहाड़ नामक एक स्थान है, वहाँ एक ब्राह्मण रहता था उसके घर में चार प्राणी थे- ब्राह्मण, उसकी स्त्री, पुत्र और साध्वी पुत्रवधू। ब्राह्मण की पुत्रवधू का नाम था ‘सखूबाई’। सखूबाई जितनी अधिक भक्त, आज्ञाकारिणी, सुशील, नम्र और सरल हृदय थी उसकी सास उतनी ही अधिक दुष्टा, अभिमानी, कुटिला और कठोर हृदय थी। पति व पुत्र भी उसी के स्वभाव का अनुसरण करते थे। सखूबाई सुबह से लेकर रात तक बिना थके-हारे घर केे सारे काम करती थी। शरीर की शक्ति से अधिक कार्य करने के कारण अस्वस्थ रहती, फिर भी वह आलस्य का अनुभव न करके इसे ही अपना कत्र्तव्य समझती। मन ही मन भगवान् के त्रिभुवन स्वरूप का अखण्ड ध्यान और केशव, विठ्ठल, कृष्ण गोविन्द नामों का स्मरण करती रहती। दिन भर काम करने के बाद भी उसे सास की गालियाँ और लात-घूंसे सहन करने पड़ते। पति के सामने दो बूँद आँसू निकालकर हृदय को शीतल करना उसके नसीब में ही नहीं था। कभी-कभी बिना कुसूर के मार गालियों की बौछार उसके हृदय में शूल की तरह चुभती थी, परन्तु अपने शील स्वभाव के कारण वह सब बातें पल में ही भूल जाती। इतना होने पर भी वह इस दुःख को भगवान् का आशीर्वाद समझकर प्रसन्न रहती और सदा कृतज्ञता प्रकट करती कि मेरे प्रभु की मुझ पर विशेष कृपा है जो मुझे ऐसा परिवार दिया वरना सुखों के बीच में रहकर मैं उन्हें भूल जाती और मोह वश माया जाल में फँस जाती। एक दिन एक पड़ोसिन ने उसकी ऐसी दशा को देखकर कहा- ‘‘क्या तेरे नेहर में कोई नहीं है जो तेरी खोज ख़बर ले’। उसने कहा ‘‘मेरा नेहर पण्ढ़रपुर है, मेरे माँ-बाप रुक्मिणी-कृष्ण हैं। एक दिन वे मुझे अपने पास बुलाकर मेरा दुःख दूर करेंगे।’’ सखूबाई घर के काम ख़त्म कर कृष्णा नदी से पानी भरने गयी, तभी उसने देखा कि भक्तों के दल नाम-संकीर्तन करते हुए पण्ढ़रपुर जा रहे हैं। एकादशी के दिन वहाँ बड़ा भारी मेला लगता है। उसकी भी पण्ढ़रपुर जाने की प्रबल इच्छा हुई पर घरवालों से आज्ञा का मिलना असम्भव जानकर वह इस संत मण्डली के साथ चल दी। यह बात एक पड़ोसिन ने उसकी सास को बता दी। माँ के कहने पर पुत्र घसीटते हुए सखू को घर ले आया और उसे रस्सी से बाँध दिया, परन्तु सखू का मन तो प्रभु के चरणों में ही लगा रहा। वह प्रभु से रो-रोकर दिन-रात प्रार्थना करती रही, क्या मेरे नेत्र आपके दर्शन के बिना ही रह जायेंगे? कृपा करो नाथ!, मैंने अपने को तुम्हारे चरणों मे बाँधना चाहा था, परन्तु बीच में यह नया बंधन कैसे हो गया ? मुझे मरने का डर नहीं है पर सिर्फ़ एक बार आपके दर्शन की इच्छा है। मेरे तो माँ-बाप, भाई, इष्ट-मित्र सब कुछ आप ही हो, मैं भली-बुरी जैसी भी हूँ, तुम्हारी हूँ। सच्ची पुकार को भगवान् अवश्य सुनते हैं और नकली प्रार्थना का जवाब नहीं देते। असली पुकार चाहे धीमी हो, वह उनके कानों तक पहुँच जाती है। सखू की पुकार को सुनकर भगवान् एक स्त्री का रूप धारण कर उसके पास आकर बोले- मैं तेरी जगह बँध जाऊँगी, तू चिन्ता मत कर। यह कहकर उन्होंने सखू के बंधन खोल दिये और उसे पण्ढ़रपुर पहुँचा दिया। इधर सास-ससुर रोज़ उसके पास जाकर खरी-खोटी सुनाते, वे सब सह जाती। जिनके नाम स्मरण मात्र से माया के दृढ़ बन्धन टूट जाते हैं, वे भक्त के लिए सारे बंधन स्वीकार करते हैं। आज सखू बने भगवान् को बँधे दो हफ्ते हो गये। उसकी ऐसी दशा देखकर पति का हृदय पसीज गया। उसने सखू से क्षमा माँगी और स्नान कर भोजन के लिए कहा। आज प्रभु के हाथ का भेाजन कर सबके पाप धुल गये। उधर सखू यह भूल गयी कि उसकी जगह दूसरी स्त्री बँधी है। उसका मन वहाँ ऐसा लगा कि उसने प्रतिज्ञा की कि शरीर में जब तक प्राण हैं, वह पण्ढ़रपुर में ही रहेगी। प्रभु के ध्यान में उसकी समाधि लग गयी और शरीर अचेत हो ज़मीन पर गिर पड़ा। गाँव के लोगों ने उसे मृत समझकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया। इधर माता रुक्मिणी को चिन्ता हुई कि मेरे स्वामी सखू की जगह पर बंधे हुये हैं। वह शमशान पहुँची और सखू की अस्थियों को एकत्रित कर उसे जीवित कर सब स्मरण कराकर करहड़ जाने की आज्ञा दी। करहड़ पहुँचकर जब वह स्त्री बने प्रभु से मिली तो उसने क्षमा-याचना की। जब घर पहुँची तो सास-ससुर के स्वभाव में परिवर्तन देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। दूसरे दिन एक ब्राह्मण सखू के मरने का समाचार सुनाने करहड़ आया और सखू को काम करते देख उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सखू के ससुर से कहा- ‘‘तुम्हारी बहू तो पण्ढ़रपुर में मर चुकी थी। पति ने कहा- ’’सखू तो पण्ढ़रपुर गयी ही नहीं, तुम भूल से ऐसा कहते हो। जब सखू से पूछा तो उसने सारी घटना सुना दी। सभी को अपने कुकृत्यों पर पश्चाताप हुआ। अब सब कहने लगे कि निश्चित ही वे साक्षात् लक्ष्मीपति थे, हम बड़े ही नीच और भक्ति हीन हैं। हमने उनको न पहचानकर व्यर्थ ही बाँधे रखा और उन्हें न मालूम कितने क्लेश दिये। अब तीनों के हृदय शुद्ध हो चुके थे और उन्होंने सारा जीवन प्रभु भक्ति में लगा दिया। प्रभु अपने भक्तों के लिए क्या कुछ नहीं करते। For more videos subscribe to our channel.If u like the videos then share it with others. Our Link:- Subscribe us on Youtube:- / sangeetajukebox Like us on facebook:- / sangeetamediaandentertainment Follow us on twitter:- / sangeetamedia Managed By :- Sangeeta Media And Entertainment