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Mohalla Company Sarai 9th Muharram | Adda Road | Sasaram Mirror | Rohtas Bihar | Sasaram Muharram 2 года назад


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Mohalla Company Sarai 9th Muharram | Adda Road | Sasaram Mirror | Rohtas Bihar | Sasaram Muharram

सासाराम: मुहर्रम यानी ताजिया का त्योहार. सासाराम में ताजिया का मतलब क्या होता है, यह उस इलाके के लोग जानते हैं. मुरादाबाद, कुम्हऊ, बाराडीह और भी न जाने कितने गांवों के भव्य ताजिया पहुंचते हैं सासाराम में पहलाम होने. गजब की सजावट वाले. मोतियों की लड़ी के बीच झूलती लाइट से चमकदार ताजियाओं का हुजूम जुटता है. शाम से ही सासाराम में कड़वर कत्ता-कड़वरकत्ता की धुन के साथ तासे की आवाज, गदका का आपस में टकराना, लाठी की भंजाहट माहौल को बदल देता है और पूरी रात अलग ही माहौल में रहता है सासाराम. न जाने कितने गांव से, कितनी भारी संख्या में जुलूस लिये पहुंचते हैं लोग. तभी तो ताजियों के झलक से ही लोकाचार में आज भी ‘रामनगर की रामलीला, डोल डुमरांव, कोचस का कंसलीला व ताजिया सासाराम की कहावत मशहूर है. एक समय था जब सासाराम के अगल-बगल के एक-एक गांव से दर्जनों ताजिया निकलते थे. मलीदा वाला जो तबर्रूक (प्रसाद) जैसा होता है, वह हिंदुओं के घर में पहुंचता था. आज भी यहाँ के कई ऐसे गांव है जहां मोहर्रम मुसलमानों का त्योहार भर नहीं, गांव की प्रतिष्ठा की बात है. पूरे गांव का सामूहिक पर्व है. पूरे गांव के लोग जुलूस की चिंता करते हैं, इंतजाम करते हैं. जानकार बताते हैं कि 333 वर्ष पूर्व शाह घोसा साहब ने सबसे पहले यहां ताजिये की परंपरा शुरू की थी. क्षेत्र के विस्तार के साथ ताजिये की संख्या बढ़ती गयी. यहां की ख्याति प्राप्त ताजिया के निर्माण में अब मोतियों के साथ-साथ चाइनिज इलेक्ट्रीक लाइट, शीशा सहित कई कीमती सामाग्रियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. कारिगरों की माने तो ताजिया निर्माण में लाखों का खर्च किया जाता है. बता दें कि, सासाराम में मुहर्रम के साथ नाल साहेब का भी इतिहास जुड़ा हुआ है. जानकार बताते हैं कि कर्बला की लड़ाई में घोड़े के नाल के टुकड़े सूफी संत अपने साथ लाए थे. उन्हीं टुकड़ों से नाल साहब की परंपरा का संबंध है. शहर में आधा दर्जन नाल साहब हैं. इनमें दो नाल साहेब मुहल्ला शाहजुमा, दो काले खां, एक शहजलालपीर व एक सासाराम के कर्बला में हैं. मुहर्रम की सातवीं तारीख को नाल साहब खड़े किए जाते हैं. नौवीं-दसवीं तारीख को ताजिये के साथ इनका गश्त होता है. कर्बला के नाल साहब को छोड़ शेष पांचों नाल साहब का गश्त होता है. गश्त के पीछे मान्यता है कि हुसैन की सवारी का प्रतीक है. कहा जाता है कि शुरू में नाल साहब को बक्से में रखा जाता था. मुहर्रम के समय बक्शा रखने वालों को ये सपना आने लगा कि इन्हें खड़ा कर इनकी गश्त करायी जाये तभी से ये परंपरा शुरू हुई.

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