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घर पर बनाएं बुराँश का जूस , tasty and healthy, 7 месяцев назад


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घर पर बनाएं बुराँश का जूस , tasty and healthy,

बुरांश के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। हिमालयी राज्यों में 12 माह प्रकृति की अनुपम छटा बिखरी रहती है। पर बसंत ऋतु की बात ही कुछ और है, इस ऋतु के आने पर पहाड़ो की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। माघ, फागुन, चैत्र, बैशाख के महीनों में यहां मौसमी फलों, फूलों आदि की प्रचूरता बढ़ जाती है। इन्हीं महीनों में खिलने वाला एक मौसमी फूल "बुरांश" है। मार्च और अप्रैल के महीनों में पहाड़ इसके फूलों के रंग से सराबोर हो जाते हैं। बुरांश उत्तराखंड का राजकीय वृक्ष है, जबकि यह हिमाचल और नागालैंड का राजकीय पुष्प भी है। एनवायर्नमेंटल इनफार्मेशन सिस्टम (ईएनवीआईएस) रिसोर्स पार्टनर ऑन बायोडायवर्सिटी के मुताबिक बुरांश का वानस्पतिक नाम रोडोडेंड्रोन अर्बोरियम एसएम है। बुरांश को अंग्रेज़ी में रोडोडेंड्रोन और संस्कृत में कुर्वाक के नाम से भी जाना जाता है। 'रोडोडेंड्रोन' दो ग्रीक शब्दों से लिया गया है, 'रोड' का अर्थ है 'गुलाबी लाल' और 'डेंड्रोन' का अर्थ है 'पेड़' में खिलने वाले गुलाबी लाल फूलों से है। मार्च-अप्रैल के महीनों में बुरांश के फूलने का समय है। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में बुरांश की आर. आर्पोरियम नामक प्रजाति पाई जाती है। यह प्रजाति कुमाऊं और गढ़वाल के हिमालयी क्षेत्र में बहुत अधिक पाई जाती है। बुरांश एक सदाबहार पेड़ है जो समुद्र तल से 1500-3600 मीटर की ऊंचाई पर उगता है, यह 20 मीटर तक ऊंचा होता है, जिसमें खुरदरी और गुलाबी भूरी छाल होती है। पत्तियां शाखाओं के सिरे की ओर भरी हुई, तिरछी-लांसोलेट और सिरों पर संकुचित, 7.5 से 15 × 2.5 - 5 सेमी, ऊपर चमकदार, नीचे सफेद या जंग के सामान भूरे रंग के होते हैं। फूल कई हिस्सों में, बड़े, गोलाकार, गहरे लाल या गुलाबी रंग के होते हैं। किन-किन देशों में पाया जाता है बुरांश बुरांश मूल रूप से भारतीय है, यह पूरे हिमालयी इलाकों में फैला हुआ है। यह भूटान, चीन, नेपाल और पाकिस्तान, थाईलैंड और श्रीलंका में भी पाया जाता है। बुरांश का आर्थिक महत्व बुरांश के पेड़ की लकड़ी का उपयोग ईंधन के रूप में और लकड़ी का कोयला बनाने के लिए किया जाता है। लकड़ी का उपयोग टूल-हैंडल्स, बॉक्स, पैक-सैडल्स, पोस्ट, प्लाईवुड बनाने के लिए किया जाता है। बुरांश का उपयोग खाने के रूप में उत्तराखंड में पारंपरिक उपयोग के तौर पर बुरांश के फूल की पंखुड़ियों का उपयोग खाने में किया जाता है। इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है। लगभग सभी धार्मिक कार्यों में देवताओं को बुरांश के फूल चढ़ाए जाते हैं। हवा को शुद्ध करने के लिए अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग और तवांग जिलों में पवित्र माने जाने वाले धुएं को बनाने और हवा को शुद्ध करने में मदद करने के लिए जुनिपर / थूजा / पीनस की प्रजातियों की पत्तियों के साथ इसकी ताजी पत्तियों को जलाया जाता है। बुरांश का औषधीय उपयोग बुरांश के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इन पंखुड़ियों का उपयोग सर्दी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और बुखार को दूर करने के लिए किया जाता है। स्थानीय लोग इसका इस्तेमाल स्क्वैश और जैम बनाने में करते हैं। साथ ही इसकी चटनी को आज भी ग्रामीण इलाकों में पसंद किया जाता है। बुरांश के औषधीय उपयोग में सिर दर्द का कम करने के लिए कोमल पत्तियों को माथे पर लगाया जाता है। फूल और छाल का उपयोग पाचन और श्वसन संबंधी विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है। बुरांश के बारे में क्या कहता है आईआईटी का अध्ययन हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (आईसीजीईबी) के शोधकर्ताओं ने हिमालय की पहाड़ियों में पाए जाने वाले बुरांश के पेड़ से कोरोना का इलाज ढूंढने का दावा किया है। भविष्य में इससे कोरोना की दवा बनाई जा सकती है। बुरांश के फूल में पाया जाने वाला केमिकल संक्रमण को मात देने में अहम भूमिका निभा सकता है।

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