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12th Class | Bhartiya Kala Ka itihas | Bangal Shaili |Bangal Shaili Ki Utpatti Evam Vikash 3 года назад


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12th Class | Bhartiya Kala Ka itihas | Bangal Shaili |Bangal Shaili Ki Utpatti Evam Vikash

1.For Rajasthani Shaili click here👇    • 12TH CLASS  RAJASTHANI LAGHUCHITRA SH...   2.For Pahadi Shaili click here👇    • 12TH CLASS  PAHADI LAGHUCHITRA SHAILI   3.For Mugal Kala Shaili click here👇    • 12TH CLASS  MUGAL LAGHUCHITRA SHAILI   4.For Dakkani Kala Shaili click here👇    • 12TH CLASS  DAKKANI LAGHUCHITRA SHAILI   5.For Bangal Kala Shaili click here👇    • 12TH CLASS      BANGAL SHAILI   6.For Adhunik Kala Shaili click here👇    • 12TH CLASS AADHUNIK KALA SHAILI   7.For Adhunik Chapa Chitra click here👇    • 12TH CLASS AADHUNIK CHAPA CHITRA   8.For Tiranga Jhanda Ka Itihas click here👇    • 12TH CLASS  TIRANGA JHANDA KA ITIHAS   9.For Adhunik Kalakaron Ki Murtiyan click here👇    • 12TH CLASS AADHUNIK KALAKARON KI MURT...   _ ((बंगाल शैली की उत्पत्ति एवं विकास)) _ जब मुगल साम्राज्य का अंत हो रहा था तब उसी समय ब्रिटिश भारत में व्यापार करने के लिए आए उन्होंने भारत में सन् 1805 में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की। उस समय भारत छोटे-छोटे राज्यों और सूबों में बंटा हुआ था उन्होंने देखा कि भारत में कोई ऐसा राजा नहीं है जो संपूर्ण भारत पर राज कर सके । इस बात का फायदा अंग्रेजों ने उठाया फूट डालो और शासन करो की नीति को अपनाया और भारत पर अपना साम्राज्य जमा लिया। राजस्थानी, पहाड़ी, मुगल कला के पतन के बाद कला दो राह पर खड़ी थी । इस स्थिति का फायदा यूरोपीय कला ने उठाया उन्होंने भारतीयों को यह विश्वास दिलाया कि भारतीय कला में कोई खूबी नहीं है औरउन्होंने अपनी शिक्षा देना शुरू कर दिया अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कुछ भारतीय युवा बिना कुछ सोचे समझे विदेशी कला को महत्व देने लगे। इसी दौरान ब्रिटिश शासकों ने मुंबई,मद्रास और कोलकाता में कला विद्यालय की स्थापना करवाया इन कला केंद्रों में स्वतंत्र शैली का निर्माण आधुनिक शैली के रूप में करने लगे।संकट की इस घड़ी में राजा रवि वर्मा,अबनींद्र नाथ टैगोर,गगेंद्र नाथ टैगोर ,रविंद्र नाथ टैगोर नंदलाल बोस ,जैमिनी रॉय उच्च कोटि के कलाकार सामने आए इन्होंने कला आंदोलन को एक नई दिशा दी। इन कलाकारों ने अपनी टैक्निक के अनुसार भारतीय कला के आतंक गौरव को पुनर्जीवित किया । उनके इन प्रयास में कोलकाता के सरकारी स्कूल के प्राचार्य प्रोफ़ेसर ईवी हैवेल ने उनका सहयोग दिया और भारतीय कला के महत्व को बताया यूरोपीय चित्रों की नकल करने के लिए मना कर दिया। 1904 ईसवी में विद्यालय की कला दीर्घा से यूरोपीय चित्रों को हटवा कर उनके स्थान पर अजंता और एलोरा राजपूत व मुगल शैली के चित्रों की प्रतिमाएं लगवाई। ईवी हैवेल ने अबनींद्र नाथ टैगोर को मुगल व राजपूत कला शैली के चित्रों का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया। और अपने विद्यालय में उनको उप प्राचार्य नियुक्त किया उन्होंने जापानी कलाकारों से जल रंग की वाश तकनीक को सीखा। राजा रवि वर्मा एक ऐसे चित्रकार थे जिन्होंने वाश तकनीक का सबसे पहले प्रयोग किया।रविंद्रनाथ टैगोर ने जो तकनीक अपनाई उसमें जापानी कला व चीनी कला का मिश्रण भारतीय शैली में किया इस प्रकार भारतीय कला का पुनर्जन्म बंगाल से देश के प्रत्येक भाग में हुआ ।जैसे दिल्ली, पंजाब ,गुजरात ,लखनऊ,जयपुर और हैदराबाद इन कला के केंद्रों का जन्म हुआ,‌ इस प्रकार बंगाल शैली का उदय हुआ। (बंगाल शैली के मुख्य चित्र एवं चित्रकार) 1.यात्रा का अंत - अबनींद्रनाथ टैगोर 2. शिव तथा सती - नंदलाल बोस 3. रासलीला - क्षितींद्रनाथ मजूमदार 4. राधिका - मोहम्मद अब्दुर्रहमान चुगताई 5. मेघदूत - रामगोपाल विजयवर्गीय

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