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एही नदी के तीर a song from औघड़ | ft. Nilotpal Mrinal | Full Song | folk song | Daydreamers 5 лет назад


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एही नदी के तीर a song from औघड़ | ft. Nilotpal Mrinal | Full Song | folk song | Daydreamers

"औघड़" उपन्यास में कहानी का सार समेटे लिखा गया ये गीत ले के आपके बीच हैं। BUY DARK HORSE : https://amzn.to/3iodPXe BUY AUGHAD : https://amzn.to/3ir5jGR Buy COMBO : https://amzn.to/2VOkS3O Flipkart : https://bit.ly/2HKNeEO iTunes - https://apple.co/3dmsdyu Apple Music - https://apple.co/2OCOoG8 Hungama - https://bit.ly/2N4Kt4L Wynk - https://bit.ly/2ZlZ1zp Spotify - https://spoti.fi/3dkIO5v JioSaavn - https://bit.ly/2ZnOLqf Kkbox - https://bit.ly/2NzErcc Amazon Prime - https://amzn.to/3dkQYer Song Credits : Song: Yhi Nadi Ke Teer Singer: Nilotpal_Mrinal Music: Nilotpal Mrinal, Suraj Murmu, Rituraj Kashyap Lyrics: Nilotpal Mrinal from his book औघड़ Recorded at: Santosh Studio, Dumka, Jharkhand Video Credits: Camera : Anurag Pathak and Manoj Kumar Bhandari Editing: Anurag Pathak, Manoj Kumar Bhandari, Rituraj Kashyap Cinematography: Nilotpal Mrinal, Anurag Pathak, Rituraj Kashyap Daydreamers Email id: [email protected] Contact: +919110158041 Spot Management : daydreamers team Saurabh Sinha Shiva Arya Kumar Gourav Deepak Kapri Anurag Pathak Manoj Kr. Bhandari and Nickolesh Murmu Special Thanks : Suraj Ji Krishna Ji keywords - folk songs, nilotpal Mrinal, day dreamers, Aughad, Novel, nirgun About the novel ‘औघड़’ भारतीय ग्रामीण जीवन और परिवेश की जटिलता पर लिखा गया उपन्यास है जिसमें अपने समय के भारतीय ग्रामीण-कस्बाई समाज और राजनीति की गहरी पड़ताल की गई है। एक युवा लेखक द्वारा इसमें उन पहलुओं पर बहुत बेबाकी से कलम चलाया गया है जिन पर पिछले दशक के लेखन में युवाओं की ओर से कम ही लिखा गया। ‘औघड़’ नई सदी के गाँव को नई पीढ़ी के नजरिये से देखने का गहरा प्रयास है। महानगरों में निवासते हुए ग्रामीण जीवन की ऊपरी सतह को उभारने और भदेस का छौंका मारकर लिखने की चालू शैली से अलग, ‘औघड़’ गाँव पर गाँव में रहकर, गाँव का होकर लिखा गया उपन्यास है। ग्रामीण जीवन की कई परतों की तह उघाड़ता यह उपन्यास पाठकों के समक्ष कई विमर्श भी प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में भारतीय ग्राम्य व्यवस्था के सामाजिक-राजनितिक ढाँचे की विसंगतियों को बेहद ह तरीके से उजागर किया गया है। ‘औघड़’ धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, महिला की दशा, राजनीति, अपराध और प्रसाशन के त्रियक गठजोड़, सामाजिक व्यवस्था की सड़न, संस्कृति की टूटन, ग्रामीण मध्य वर्ग की चेतना के उलझन इत्यादि विषयों से गुरेज करने के बजाय, इनपर बहुत ठहरकर विचारता और प्रचार करता चलता है। व्यंग्य और गंभीर संवेदना के संतुलन को साधने की अपनी चिर-परिचित शैली में नीलोत्पल मृणाल ने इस उपन्यास को लिखते हुए हिंदी साहित्य की चलती आ रही सामाजिक सरोकार वाली लेखन को थोड़ा और आगे बढ़ाया है।

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