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लखनऊ में गोमती के किनारे नजफ अशरफ का बेनजीर नजारा "इमामबाड़ा शाहनजफ"| Imambara Shah Najaf | Lucknow | 5 лет назад


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लखनऊ में गोमती के किनारे नजफ अशरफ का बेनजीर नजारा "इमामबाड़ा शाहनजफ"| Imambara Shah Najaf | Lucknow |

Channel- Sunil Batta Films Documentary- Imambara Shah Najaf , Lucknow Produced & Directed by Sunil Batta, Voice- S H Mehndi, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Production- Dhruv Prakesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla, Synopsis of the Film- लखनऊ के सिकन्दरबाग के नजदीक कदम रसूल के बगल में गोमती के किनारे नजफ अशरफ का बेनजीर नजारा है। अवध के प्रथम बादशाह गाजीउद्दीन हैदर ने इस मसनुई तीर्थ को बनवाया था। लखनऊ के सारे नवाब इमामिया मजहब से वाबस्ता थे। शिया मुसलमान पैगम्बर साहब के दामाद हजरत अली के रौजे और इमाम साहब के रौजे की जियारत के लिए करबला जाते हैं। नजफ का कब्रिस्तान इसलिए मशहूर है कि वहां की मिट्टी नसीब होना हर शिया का पहला और आखिरी अरमान होता है। गाजीउद्दीन हैदर जानते थे कि नजफ का दीदार हर एक के बस की बात नहीं, इसलिए उन्होंने उसकी नकल पर यहां एक शाहनजफ तैयार कर लिया। इस सुन्दर भवन में एक ऊँचे चबूतरे पर चांदी का चैकोर रौजा हू-ब-हू नजफ की नकल पर बना हुआ है। शाहनजफ के दूसरे फाटक पर लटकने वाली लोहे की पवित्र जंजीर को चूमना ओर चैखट पर सजदा करना हर शिया अपना फर्ज मानता है। बेजोड़ स्थापत्य वाली चांदनी की तरह झिलमिलाती शाहनजफ की इमारत का व्यक्तित्व अनूठा है। यहां आदमकद सुनहरे फ्रेम के बेगमाती आईनों और बिल्लौरी फानूसों की भरमार है। इसमें खूबसूरत तैलचित्र लगे हैं और इमाम ताजिये भी रखे हैं। अवध के हुकमरां चूंकि शीआ थे और शीओं में मुहर्रम की बड़ी फज़ीलतो अहमियत हासिल है। इस लिए उनके दौरे इक़तिदार में उस की मक़बूलियत अपने उरूज में थी। इस मौको पर हर मज़हबो मिल्लत के लोग बड़ी तादात में अकी़दत के साथ बराबर के शरीक होते थे। इस अक़ादतों फजी़लत को मद्देनज़र इमामबाड़ों की तामीर कसीर तादात में की गयीं। उन इमामबाड़ों में से कुछ इमामबाड़े तारीख़ी एतिबार से बहुत अहमियत के हासिल हैं और कुछ अलिमी पैमाने पर नवाबीने अवध और लखनऊ की अज़मत और शानो शौकत के निशानें इम्जियाज़ हैं। यइ इमामबाड़ा अवध के पहले ख़ुद मुख़तार बादशाह ग़ाज़ियुद्दीन हैदर का तामीरी शाहकार है। जिसे क़ब्ल एलान बादशाहत सन् 1816 ईस्वी से 1897 ईस्वी के दरमियान बनवाया था जो इराक़ के शहर नजफ में वाके़ हज़रत अली के रौज़ए अक़दस की हू बहू नक़ल तामीर कराई ताकि लाखों अक़ीदतमंद यहीं से अपने अक़ीदतमंद की तिशनगी मिटा सकें। यह बादशाह की गरीब नवाज़ी की दलील है। इस शानदार इमारत को देखने और मुनअक़िद मजलिसों में बिला तफरीक़ मज़हबो मिल्लत शरीक होने के लिए हज़ारों लाखों लोग यहां आते हैं और मज़लूमीने करबला को अपना खि़राजे अक़ीदत पेश करते हैं। इमाम बाड़े के अंदर दाखि़ल होते ही दीवार पर फरेम की हुई बादशाह ग़ाजियुद्दीन हैदर, नवाब मुहसिनुद्दौला और नवाब मुम्ताजुद्दौला की रौग़नी तसवीर नज़र आती हैं। जो मसनर जापलंग की बनाई हुयी हैं। रौज़ा के मग़रिबी जानिब एक छोटी मस्जिद है जो गुल व बूटों से आराइश की गयी है। जो निहायत खूबसूरत है। शाहाने अवध मज़हब और अक़ीदे के बहुत पाबंद होते थे। उस लिए जहां भी कोई इमारत तामीर की जाती थी साथ में मस्जिद की तामीर भी ज़रूर की जाती थी। तारीख़ी एतिबार 1857 ईस्वी में यह इमामबाड़ा जंगे आज़ादी के मतवालों का मरकज़ था। यहां पर अंगे्रजी़ फौज और वतन के मतवालों में जबरदस्त मुक़ाबिला हुआ लेकिन अंग्रेज़ अपने नापाक इरादों में कामियाब नहीं हो सके। यह इमामबाड़ा आज भी शाहने अवध की अज़मत फैयाजी़ और लखनऊ की शानो शौकत का ज़ामिन और मज़हर है। #Lucknow #ImambaraShahNajaf #LucknowBaraImambara #AsafiImambara #BhoolBhulaiyaLucknow #LucknowKeImambare

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