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विद्युत धारा कक्षा 10 Mvvi topic /Class 10 science chapter 11 notes /Electricity Notes Class 10 6 дней назад


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विद्युत धारा कक्षा 10 Mvvi topic /Class 10 science chapter 11 notes /Electricity Notes Class 10

विद्युत धारा कक्षा 10 Mvvi topic /Class 10 science chapter 11 notes /Electricity Notes Class 10 विद्युत धारा कक्षा 10 नोट्स Class 10 science chapter 12 notes in hindi विद्युत धारा कक्षा 10 नोट्स Class 10 science chapter 11 notes in hindi Electricity Notes Class 10 by @rajansir6345 विद्युत धारा कक्षा 10 नोट्स Class 10 science chapter 12 notes in hindi विद्युत प्रवाह ओम का नियम प्रतिरोधकता  कारक जिन पर किसी चालक का प्रतिरोध निर्भर करता है   प्रतिरोधकों का श्रेणी क्रम संयोजन विधुत धारा का तापीय प्रभाव current current electricity magnetic effect of electric current electric current and drift velocity alternating current why electron flow opposite to current flow magnetic effect of electric current one shot class 10 magnetic effect of electric current class 10 hindi medium electrical safety current electricity class 10th physics neet iit jee physics current electricity electric fire electric generator direct current unit of current electrical accident विद्युत ऊर्जा विद्युत परिपथ  आवेश विधुत धारा विधुत धारा का मापन विधुत विभव विभवांतर 1 वोल्ट :-. 🔹 1 वोल्ट :- जब 1  सेल :-. 🔹 यह एक सरल युक्ति है जो विभवांतर को बनाए रखती है । विद्युत धारा हमेशा उच्च विभवांतर से निम्न विभवांतर की तरफ प्रवाहित होती है ।. ❇️ ओम का नियम :-. 🔹 किसी विद्युत परिपथ में धातु के तार के दो सिरों के बीच विभवांतर उसमें प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के समानुपाती होता है परन्तु तार का तापमान समान रहना चाहिए । इसे ओम का नियम कहते हैं । दूसरे शब्दों में :-. V × R . V = IR. R एक नियतांक है जिसे तार का प्रतिरोध कहते हैं ।. ❇️ प्रतिरोध :-. 🔹 यह चालक का वह गुण है जिसके कारण वह प्रवाहित होने वाली धारा का विरोध करता है । . 🔹 प्रतिरोध का SI मात्रक ओम है । इसे ग्रीक भाषा के शब्द Ω से निरूपित करते हैं । ओम के नियम के अनुसार :- R = V/I. 1 ओम = 1 वोल्ट / 1 एम्पियर. 🔹 जब परिपथ में से 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही हो तथा विभवांतर एक वोल्ट का हो तो प्रतिरोध 1 ओम कहलाता है । . ❇️ परिवर्ती प्रतिरोध :-. 🔹 स्रोत की वोल्टता में बिना कोई परिवर्तन किए परिपथ की विद्युत धारा को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अवयव को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं ।. ❇️ धारा नियंत्रक :-. 🔹 परिपथ में प्रतिरोध को परिवर्तित करने के लिए जिस युक्ति का उपयोग किया जाता है उसे धारा नियंत्रक कहते हैं ।. ❇️ वे कारक जिन पर एक चालक का प्रतिरोध निर्भर करता है :- . चालक की लम्बाई के समानुपाती होता है । . अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है ।  . तापमान के समानुपाती होता है ।. पदार्थ की प्रकृति पर भी निर्भर करता है ।. ❇️ प्रतिरोधता :-. 🔹 1 मीटर भुजा वाले घन के विपरीत फलकों में से धारा गुजरने पर जो प्रतिरोध उत्पन्न होता है वह प्रतिरोधता कहलाता है ।. 🔹 प्रतिरोधकता का SI मात्रक Ωm है । . प्रतिरोधकता चालक की लम्बाई व अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के साथ नहीं बदलती परन्तु तापमान के साथ परिवर्तित होती है ।  प्रतिरोधकों का श्रेणी क्रम संयोजन :- . 🔶 श्रेणीक्रम संयोजन :- जब दो या तीन प्रतिरोधकों को एक सिरे से दूसरा सिरा मिलाकर जोड़ा जाता है तो संयोजन श्रेणीक्रम संयोजन कहलाता है ।. 🔶 श्रेणीक्रम में कुल प्रभावित प्रतिरोध :-.  RS = R₁ + R₂ + R₃. 🔹 प्रत्येक प्रतिरोधक में से एक समान धारा प्रवाहित होती है । . 🔹 तथा कुल विभवांतर = व्यष्टिगत प्रतिरोधकों के विभवांतर का योग है । . V = V₁ + V₂ + V₃. V₁ = IR₁ V₂ = IR₂ V₃ = IR₃. V₁ + V₂ + V₃ = IR₁ + IR₂ + IR₃. V = I(R₁ + R₂ + R₃) (V₁ + V₂ + V₃ = V) . IR = I(R₁ + R₂ + R₃) . R = R₁ + R₂ + R₃ . 🔹 अत : एकल तुल्य प्रतिरोध सबसे बड़े व्यक्तिगत प्रतिरोध से बड़ा है ।. ❇️ पार्श्वक्रम में संयोजित प्रतिरोधक :-. 🔶 पार्श्वक्रम संयोजन :- जब तीन प्रतिरोधकों को एक साथ बिंदुओं X तथा Y के बीच संयोजित किया जाता है तो संयोजन पार्श्वक्रम संयोजन कहलाता है । . 🔹 पार्श्वक्रम में प्रत्येक प्रतिरोधक के सिरों पर विभवांतर उपयोग किए गए विभवांतर के बराबर होता है । तथा कुल धारा प्रत्येक व्यष्टिगत प्रतिरोधक में से गुजरने वाली धाराओं के योग के बराबर होती है । . I = I₁ + I₂ + I₃. एकल तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम प्रथक । . प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है ।. ❇️ श्रेणीक्रम संयोजन की तुलना में पार्यक्रम संयोजन के लाभ :-. श्रेणीक्रम संयोजन में जब एक अवयव खराब हो जाता है तो परिपथ टूट जाता है तथा कोई भी अवयव काम नहीं करता । . अलग – अलग अवयवों में अलग – अलग धारा की जरूरत होती है , यह गुण श्रेणी क्रम में उपयुक्त नहीं होता है क्योंकि श्रेणीक्रम में धारा एक जैसी रहती है । . पार्श्वक्रम संयोजन में प्रतिरोध कम होता है ।. ❇️ विधुत धारा का तापीय प्रभाव :-. 🔹 यदि एक विद्युत् परिपथ विशुद्ध रूप से प्रतिरोधक है तो स्रोत की ऊर्जा पूर्ण रूप से ऊष्मा के रूप में क्षयित होती है , इसे विद्युत् धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं ।. ऊर्जा = शक्ति x समय . H = P × t . H = VIt।       P = VI. H = I²Rt       V = IR .                      H = ऊष्मा ऊर्जा . अत : उत्पन्न ऊर्जा ( ऊष्मा ) = I²Rt . 🔶 जूल का विद्युत् धारा का तापन नियम : इस नियम के अनुसार :-. किसी प्रतिरोध में तत्पन्न उष्मा विद्युत् धारा के वर्ग के समानुपाती होती है । . प्रतिरोध के समानुपाती होती है ।.

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