У нас вы можете посмотреть бесплатно भाद्रपद की अष्टमी को शिव के आगमन से पूर्ण हुए आर्धनारीश्वर्, गाँव में खुशियों का माहौल 🙏🤗 или скачать в максимальном доступном качестве, которое было загружено на ютуб. Для скачивания выберите вариант из формы ниже:
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Youtuber Suman कुमाऊं मंडल में हर घर में बिरुड़ पंचमी (Kumaon folk festival Birud Panchami) का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार बिरुड़ पंचमी आज पड़ रही है. स्थानीय भाषा में भाद्रपद महीने की पंचमी बिरुड़ पंचमी कहलाती है. इसको लेकर कुमाऊं मंडल में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. इस पर्व की शुरुआत बिरुड़े भिगो कर की जाती है. बिरुड़े का अर्थ उन पांच या सात तरह के भीगे हुए अंकुरित अनाजों से है जो लोकपर्व के लिये भाद्रपद महीने की पंचमी को भिगोये जाते हैं और लोगों को सातू आठू (Folk festival Satu aathu) में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. भाद्रपद महीने की पंचमी को बिरुड़-पंचमी कहते हैं. इस दिन एक साफ तांबे के बर्तन में पांच या सात अनाजों को भिगोकर मंदिर के समीप रखा जाता है. भिगो कर रखे जाने वाले अनाजों में मक्का, गेहूं, गहत, ग्रूस (गुरुस), चना, मटर व कलों होता है. सबसे पहले तांबे या पीतल का एक साफ बर्तन लिया जाता है. उसके चारों ओर गोबर से छोटी-छोटी नौ या ग्यारह आकृतियां बनाई जाती हैं, जिसके बीच में दूब की घास लगाई जाती है. जो घर मिट्टी के होते हैं वहां मंदिर के आस-पास सफाई कर लाल मिट्टी से लिपाई की जाती है और मंदिर के समीप ही बर्तन को रखा जाता है. दालों में मसूर की दाल अशुद्ध मानी जाती है, इसलिये कभी भी बिरुड़े में मसूर की दाल नहीं मिलायी जाती है. कुछ क्षेत्रों में जौ और सरसों एक पोटली में डालकर उस बर्तन में भिगो दिया जाता है, जिसमें बिरुड़े भिगोए जाते हैं. सातों के दिन बिरुड़ों से गमारा (गौरा) की पूजा की जाती है और आठों के दिन बिरुड़ों से महेश (शिव) की पूजा की जाती है. पूजा किये गये बिरुड़ों को सभी लोगों को आशीष के रूप में दिया जाता है और अन्य बचे हुये बिरुड़े प्रसाद के रूप में पकाकर खाये जाते हैं. बिरुड़-पंचमी का लोक-महत्व के साथ-साथ कृषि महत्व भी है. बिरुड़-पंचमी को लेकर बच्चों से लेकर बुजुर्गों में काफी उत्साह देखने को मिलता है. सातू के दिन महिलाएं बांह में डोर धारण करती हैं. जबकि आठू के दिन गले में दुबड़ा (लाल धागा) धारण करती हैं. इस पर्व को लेकर पौराणिक कथा प्रचलित है. सातू आठू सप्तमी व अष्टमी को मनाया जाता है. सातू-आठू में सप्तमी के दिन मां गौरा व अष्टमी को भगवान शिव की मूर्ति बनाई जाती है. मूर्ति बनाने के लिए मक्का, तिल, बाजरा आदि के पौधे का प्रयोग होता है, जिन्हें सुंदर वस्त्र पहनाकर पूजा की जाती है. वहीं झोड़ा-चाचरी गाते हुए गौरा-महेश के प्रतीकों को खूब नचाया जाता है. महिलाएं दोनों दिन उपवास रखती हैं. अष्टमी की सुबह गौरा-महेश को बिरुड़ चढ़ाए जाते हैं. प्रसाद स्वरूप इसे सभी में बांटा जाता है और गीत गाते हुए मां गौरा को ससुराल के लिए बिदा किया जाता है. मूर्तियों को स्थानीय मंदिर या नौले (प्राकृतिक जल स्रोत) के पास विसर्जित किया जाता है. 🙏🙏🙏♥️♥️ Pleease do like share and subscribe🙏🙏 ♥️♥️