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साप काट कर पलट जाये मौत निश्चित ऐसा क्यों /Snake bite reason in India About video in Hindi : बचाये जा सकते हैं वे भी काल के ग्रास बन जाते हैं। क्योंकि पालीवैलेन्ट एन्टीस्नेक वेनम सीरम जो सर्पदंश का शर्तिया इलाज है की उपलब्धता के बावजूद भी अंधविश्वास के चलते पीड़ित को पहले लोग झाड़ फूंक या जड़ी बूटी बिरई देने/पिलाने वालों के पास लेकर भागते हैं और जब दंश पीड़ित मौत की दहलीज पर पहुंच चुका होता है तो अस्पताल लेकर पहुंचते हैं। जबकि सांप काटने के बाद झाड़फूंक में गंवाया समय ही निर्णायक होता है जीवन रक्षा के लिए। उत्तर प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में प्रमुखतः कोबरा और करैत ही विषैले सांप हैं। हां अयोध्या बस्ती सोनभद्र के कुछ हिस्सों से रसेल वाइपर के मिलने की भी खबरें हैं। कोबरा करैत में न्यूरोटाक्सिक जहर होता है जो स्नायुतंत्र को लकवाग्रस्त कर पीड़ित की जान लेता है जबकि रसेल वाईपर का जहर खून के थक्के जमाता है। इन दोनों तरह के सांपों का दंश घातक है।ऐन्टीवेनम चिकित्सा समय से शुरु नहीं हुई तो मृत्यु तय है। बच तभी सकते हैं यदि दंश ठीक से नहीं हुआ या सांप ने दंश पर विष न छोड़ा हो जिसे ड्राई बाईट कहते हैं। बरसात के दिनों में सांपों की सक्रियता बढ़ जाती है। ये रात्रिचर प्राणी हैं। अपने भोजन के तलाश में चूहों मेढकों के पीछे ये मकानों में आ घुसते हैं और पैर पड़ने या सोते समय बिस्तर पर करवट बदलने या फिर अंधेरे में कोई चीज हांथ से उठाते वक्त स्पर्श पर काट लेते हैं। सर्पदंश पर बिना समय गंवाये दंश स्थल पैर या हाथ में पूरी लंबाई तक लगाकर /सटाकर एक मजबूत डंडा, बांस की फल्टी तीन चार जगह ऐसा बांधे कि पूरा पैर या हाथ जोड़ सहित स्थिर निश्चल हो जाय। और कुछ भी न करें। न दंश स्थल को काटें, न विष खींचे। कठोरता से तो बिल्कुल भी न बांधे। दरअसल ज्यादातर विष लसिका द्रव (लिम्फैटिक सिस्टम) के जरिये आगे बढ़ता है जिस पर कितना भी कसाव देकर बांधे कोई असर नहीं पड़ता। लसिका द्रव हिलने डुलने से आगे बढ़ता है जिसमें विष मिल जाता है। गहरा बन्धन रक्त परिवहन रोककर अलग मुसीबत उत्पन्न करता है। यह एक बड़ी गलतफहमी है कि केवल रक्त के जरिये विष फैलता है। विष को फैलाने में लसिका ग्रन्थियां ज्यादा मददगार हैं। प्राथमिक उपचार में बस केवल दंशित स्थल को निश्चल कर दें और सीधे वैसे ही निश्चल अंग को संभालते हुये जिला अस्पताल पहुंचें। प्रत्येक सर्पदंश काल ( मई - सितंबर) तक जिला अस्पताल में प्रशासन को रोस्टर पद्धति से योग्य चिकित्सकों की पालीवार ड्यूटी लगानी चाहिए और सर्पदंश चिकित्सा के लिये उनका नियमित अनुश्रवण और जिम्मेदारी नियत होनी चाहिए। दुर्भाग्य से ऐसी व्यवस्था अभी तक नहीं हुई है। इसलिए जिला अस्पताल पहुंच कर भी पीड़ित दम तोड़ देता है। जिस तत्परता से सर्पदंश को हैंडल करना चाहिए वह नहीं दिखती। करईत ज्यादा खतरनाक है। इसका विष कोब्रा की तुलना में अधिक विषाक्त होता है और काटने के लक्षण जैसे दोनों विषदंत के स्पष्ट निशान, सूजन आदि भी स्पष्ट दिखती नहीं है जबकि कोब्रा दंश के पंद्रह बीस मिनट के भीतर ही काटे स्थल और आस पास सूजन और दो सूजे से किये जैसे छिद्र स्पष्ट दिखते हैं।गांवों में सर्पदंश की घटना पर सांप के विषहीन या विषैले होने की पहचान को लेकर समय बर्बाद करने के बजाय कुशल चिकित्सक तक या जिला अस्पताल पहुंचना चाहिए। कहा तो यह जाता है कि ज्यादातर लोग विषहीन सांप के काटने से दहशत में दिल की धड़कन बन्द होने से मरते हैं मगर मेरा अनुभव ऐसा नहीं मानता। लोग अक्सर विषैले सांपों के काटने से ही मरते हैं। रसेल वाईपर से तो बचने पर भी अंग भंग के मामले ज्यादा होते हैं। हाथ पैर के सड़ने की आशंका (गैंगरीन) से उन्हें काटना पड़ता है। करईत तो मुख्यतः रात में ही काटता है। पेशेन्ट की हालत तेजी से बिगड़ती है और एन्टीस्नेक वेनम का इंजेक्शन न मिलने पर सूर्योदय के समय तक मौत निश्चित हो जाती है। इसलिये रात के समय सांप काटे पेशेन्ट के मामले में समय का प्रबन्ध जीवन मृत्यु का सवाल है। जबकि प्रायः अन्धविश्वास के चलते आरंभिक समय लोग झाड़ फूंक में बर्बाद कर देते हैं जो पेशेन्ट की जान बचाने में निर्णायक होता। जिला प्रशासन या सीएमओ पता नहीं क्यों हर साल इन मौतों को असंवेदनशील होकर अनदेखा कर देते हैं जबकि उन्हें ऐसे नीमहकीमों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो सर्पदंश के शर्तिया इलाज की झूठी सांत्वना देते हैं। हर जिले में ऐसे छल छद्म चिकित्सकों की एक सूची बनाकर उन पर आपराधिक कृत्य में लिप्त होने की कार्रवाई होनी चाहिए। यह बहुत जरुरी है क्योंकि इनके चलते ही कितनी जाने हर वर्ष असमय ही चली जाती हैं। इन पर कार्यवाही के लिये कोई एनजीओ सामने आये जो माननीय उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल करे जिसमें राज्य सरकारों को झूठे सर्पदंश चिकित्सकों पर कार्रवाई के निर्देश हों। इन धोखेबाजों को यह पता होता है कि वे विषैले सांप का उपचार करने में असमर्थ हैं फिर भी कीमती समय बर्बाद कराते हैं।जैसे जौनपुर शहर में एक अटाला मस्जिद के पास और बनारस में बंगाली टोले के नाम से कुख्यात जगहें ऐसे ही नीम हकीमी अपराधियों की हैं। इन पर और अन्य जिलों में भी ऐसी जगहों का पता कर जिला प्रशासन कड़ी कार्रवाई कर सकता है जिससे झाड़ फूंक की इस कुप्रथा का अन्त किया जा सके। एक प्रबल जनविरोध ही सर्पदंश के उपचार के इन रोड़ों को हटा सकता है। प्रशासन की मुस्तैदी अपेक्षित है। #सर्पदंशप्रबंध #snakebite #nagpanchami Snake Antivenom Snake Rescue Snake Catcher Venomous Snake Non Venom Snake Cobra Snake