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हमारे समय में बुद्ध के दर्शन और संदेश के महत्व पर विचार करने से पहले उनके विचारों पर एक नजर डालना अपेक्षित है. बुद्ध स्वयं को इसी संसार के व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं जिसने अपनी अंतर्दृष्टि से बुद्धत्व की प्राप्ति की है. किसी प्रकार के दैवत्व या उनके व्यक्तित्व और व्यवहार में कोई दैवीय तत्व के होने का उनका कोई दावा नहीं है. वे अपने अनुयायियों से भी जीवन के सत्य की अनुभूति करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. बुद्ध मनुष्य को सामाजिक प्राणी के रूप में देखते हैं, जिसके दुखों का निवारण संभव है. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का समुच्चय है. बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है. बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के आग्रही हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की कसौटी पर परखने के लिए कहते हैं. बुद्ध के लिए जीवन की तात्कालिक चिंताएं महत्वपूर्ण हैं. इस बात को उनके तीर वाले उद्धरण से समझा जा सकता है अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो. यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा. बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है.