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भक्त सूरदास जी - Bhagat Surdas Ji an Introduction 7 лет назад


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भक्त सूरदास जी - Bhagat Surdas Ji an Introduction

भक्त सूरदास जी विक्रमी सम्वत सोलहवीं सदी के अंत में एक महान कवि हुए हैं, जिन्होंने श्री कृष्ण जी की भक्ति में दीवाने हो कर महाकाव्य ‘सूर-सागर’ की रचना की| आप एक निर्धन पंडित के पुत्र थे तथा 1540 विक्रमी में आपका जन्म हुआ था| ऐसा अनुमान है कि आप आगरा के निकट हुए हैं| हिन्दी साहित्य में आपका श्रेष्ठ स्थान है| आपका जन्म से असली नाम मदन मोहन था| जन्म से सूरदास अन्धे नहीं थे| जवानी तक आपकी आंखें ठीक रहीं तथा विद्या ग्रहण की| विद्या के साथ-साथ राग सीखा| प्रकृति की तरफ से आप का गला लचकदार बनाया गया था तथा तन से बहुत सुन्दर स्वरूप था| बचपन में ही विद्या आरम्भ कर दी तथा चेतन बुद्धि के कारण आप को सफलता मिली| चाहे घर की आर्थिक हालत कोई पेश नहीं जाने देती थी| भारत में मुस्लिम राज आने के कारण फारसी पढ़ाई जाने लगी थी| संस्कृत तथा फारसी पढ़ना ही उच्च विद्या समझा जाता था| मदन मोहन ने भी दोनों भाषाएं पढ़ीं तथा राग के सहारे नई कविताएं तथा गीत बना-बना कर पढ़ने लगा| उसके गले की लचक, रसीली आवाज़, जवानी, आंखों की चमक हर राह जाते तो मोहित करने लगी, उनका आदर होने लगा तथा उन्हें प्यार किया जाने लगा| हे भक्त जनो! जब किसी पुरुष के पास गुण तथा ज्ञान आ जाए, फिर उसको किसी बात की कमी नहीं रहती| गुण भी तो प्रभु की एक देन है, जिस पर प्रभु दयाल हुए उसी को ही ऐसी मेहर वरदान होती है| मदन मोहन कविताएं गाकर सुनाता तो लोग प्रेम से सुनते तथा उसको धन, वस्त्र तथा उत्तम वस्तुएं भी दे देते| इस तरह मदन मोहन की चर्चा तथा यश होने लगा, दिन बीतते गए| मदन मोहन कवि के नाम से पहचाना जाने लगा| सूरदास बनना मदन मोहन एक सुंदर नवयुवक था तथा हर रोज़ सरोवर के किनारे जा बैठता तथा गीत लिखता रहता| एक दिन ऐसा कौतुक हुआ, जिस ने उसके मन को मोह लिया| वह कौतुक यह था कि सरोवर के किनारे, एक सुन्दर नवयुवती, गुलाब की पत्तियों जैसा उसका तन था| पतली धोती बांध कर वह सरोवर पर कपड़े धो रही थी| उस समय मदन मोहन का ध्यान उसकी तरफ चला गया, जैसे कि आंखों का कर्म होता है, सुन्दर वस्तुओं को देखना| सुन्दरता हरेक को आकर्षित करती है| उस सुन्दर युवती की सुन्दरता ने मदन मोहन को ऐसा आकर्षित किया कि वह कविता लिखने से रुक गया तथा मनोवृति एकाग्र करके उसकी तरफ देखने लगा| उसको इस तरह लगता था जैसे यमुना किनारे राधिका स्नान करके बैठी हुई वस्त्र साफ करने के बहाने मोहन मुरली वाले का इंतजार कर रही थी, वह देखता गया| उस भाग्यशाली रूपवती ने भी मदन मोहन की तरफ देखा| कुछ लज्जा की, पर उठी तथा निकट हो कर कहने लगी – ‘आप मदन मोहन हैं? हां, मैं मदन मोहन कवि हूं| गीत लिखता हूं, गीत गाता हूं| यहां गीत लिखने आया था तो आप की तरफ देखा|’ ‘क्यों?’ ‘क्योंकि आपका सूप सुन्दर लगा| आप!’ ‘सुन्दर, बहुत सुन्दर-राधा प्रतीत हो रही हो| यमुना किनारे-मान सरोवर किनारे अप्सरा-जो जीवन दे| मेरी आंखों की तरफ देख सकोगे|’ ‘हां, देख रही हूं| ‘क्या दिखाई दे रहा है|’ ‘मुझे अपना चेहरा आपकी आंखों में दिखाई दे रहा है| मदन मोहन ने कहा, कल भी आओगी?’ ‘आ जाउंगी! जरूर आ जाउंगी! ऐसा कह कर वह पीछे मुड़ी तथा सरोवर में स्नान करके घर को चली गई| अगले दिन वह फिर आई| मदन मोहन ने उसके सौंदर्य पर कविता लिखी, गाई तथा सुनाई| वह भी प्यार करने लग पड़ी| प्यार का सिलसिला इतना बढ़ा कि बदनामी का कारण बन गया| मदन मोहन का पिता नाराज हुआ तो वह घर से निकल गया और बाहर मंदिर में आया, फिर भी मन संतुष्ट न हुआ| वह चलता-चलता मथुरा आ गया| वृंदावन में इस तरह घूमता रहा| मन में बेचैनी रही| वह नारी सौंदर्य को न भूला| एक दिन वह मंदिर में गया| मंदिर में एक सुन्दर स्त्री जो शादीशुदा थी, उसके चेहरे की पद्मनी सूरत देख कर मदन मोहन का मन मोहित हो गया| वह मंदिर में से निकल कर घर को गई तो मदन मोहन भी उसके पीछे-पीछे चल दिया| वह चलते-चलते-चलते उसके घर के आगे जा खड़ा हुआ| जब वह घर के अंदर गई तो मदन मोहन ने घर का दरवाज़ा खट-खटाया| उसका पति बाहर आया| उसने मदन मोहन को देखा और उसकी संतों वाली सूरत पर वह बोला, बताओ महात्मा जी! #spiritualtv

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