Русские видео

Сейчас в тренде

Иностранные видео


Скачать с ютуб गणगौर कॉमेडी в хорошем качестве

गणगौर कॉमेडी 3 года назад


Если кнопки скачивания не загрузились НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу страницы.
Спасибо за использование сервиса savevideohd.ru



गणगौर कॉमेडी

भुवाणा क्षेत्र का गणगौर त्यौहार हमारे क्षेत्र के लिए एक बहुत ही सुहाना पल होता है प्रारंभिक कोरोना काल 2021 मैं भी उसी उत्साह और उमंग के साथ प्रथम माह इसे मनाया गया द्वितीय महा गंभीर स्थिति के कारण स्थगित किया गया यह केवल चेत्र और वैशाख 2 माह में मनाया जाता है मानव दिन पावनी आती है नवोदय जवारे बोए जाते हैं सेवा में सेवा करती है जिसे कोई पंडित मंदिर की रखवाली करता है एवं गवरनी बाई द्वारा और परिवार के सभी लोगों द्वारा मां गणगौर की आरती पूजा चार समय की जाती है बहुत ही मनमोहक त्यौहार होता है गणगौर आमतौर पर कार्यक्रम के चलते अगर कार्यक्रम दूर-दूर होता है तो यहां लगभग 10,000 पब्लिक भी प्रति दिवस में हो जाती है कभी-कभी पर अब इस चकाचौंध के और आधुनिक युग में मोबाइल और टेलीविजन के माध्यम से प्रचार हो चुका है तो अब इतनी जनता की रूचि कभी-कभी ही बनती है लोग जाते हैं परंतु कम समय दे पाते हैं यह त्यौहार पहले पूर्ण रात्रि झालर नृत्य एवं चुटकुले के माध्यम से रात्रि भर चलता था अपने अपने क्षेत्र के अपने समय के कलाकार गायन एवं नृत्य वादन हास्य कला में परिपूर्ण खेती किसानी एवं नौकरी चाकरी गरीबी अमीरी डॉक्टर वकील बीमारी सास बहू डोर चराना बखरन एवं बोनी पर चुटकुले होते हैं बहुत ही मार्मिक प्रसंग हुआ करता था आज से लगभग 10 से 15 वर्ष पहले गणगौर का त्योहार क्षेत्रीय है यह वर्ष भर में मनाया जाता है भारत के संपूर्ण देशों में अलग-अलग रूप में इसे देखा जाता है वैसे इसका प्रचलन केवल खंडवा जिले एवं हरदा बड़वानी निमाड़ राजस्थान गुजरात मैं मुख्य रूप से जानकारी में है पर इसकी मनाने की प्रथा अलग-अलग है सब जगह अपनी अपनी रूचि के अनुसार मनाते हैं आठवें दिन मां का मंडप एवं लग्न का कार्यक्रम होता है और दूसरे दिन विदाई जो भी इन्हें 9 दिन पानी बुलाता है वह बेटी के रूप में और बहन के रूप में बुलाता है धनियर जी के साथ नौवे दिन विदाई होती है मां के रथ अनेकानेक वस्त्रों और श्रृंगार के आभूषणों मुखोटे के द्वारा दोनों धनिया राजा रनु बाई की मूर्ति बनाई जाती है और इन्हें पूर्ण ग्राम में घुमाया जाता है और सभी देवी देवताओं से से मिलाने के पश्चात जबआरो का विसर्जन किया जाता है और पश्चात में प्रसादी वितरण और आयोजक परिवार के मामा पक्ष प्रेम से इन्हें नव वस्त्र प्रदान करते हैं और वे इन्हें स्वीकार भी करते हैं संपूर्ण 9 दिन के कार्यक्रम में बहुत ही परिश्रम और त्याग के साथ संपूर्ण संयम के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है आयोजक परिवार नंगे पैर रहकर एक समय फलाहार कर मां की उपासना करता है संपूर्ण परिवार मर्यादित होकर संयमित होकर मां की प्रार्थना उपासना में लगा रहता है महिला मंडल दोपहर में मां को कलश में विराजित कर उसे सुंदर वस्त्र पहनाकर अमराही में जहां आम के दो से अधिक बगीचे के रूप में पेड़ हो जहां छांव में बहन बेटियां मां के साथ झाल रे भजन कीर्तन और अलग-अलग खेल खिलौनों से मां को रीजाति है आसपास के महिला मंडलों द्वारा चुटकुले से दर्शकों केवल महिला दर्शकों को हंसाया गुदगुदाया जाता है बाद में आम के बाग से से घर आकर चाय नाश्ता कर वापस शाम की तैयारी की जाती है श्याम के पहर में 8:00 बजे से महिलाओं के झालर नृत्य करने का पंडाल जो आप वीडियो में देख रहे थे देख देखेंगे वहां महिलाओं के झाल रे होते हैं तत्पश्चात पुरुष वर्ग द्वारा भजनों और नृत्यों से मनोरंजन किया जाता है 15 से 18 वर्षों से इसमें नाचने वाले लड़के कुछ सुंदर लड़के लड़कियों की कपड़े पहन कर जोड़ा बना लेते हैं और प्रेम पूर्वक नृत्य करते हैं नित्य भी इतना सुंदर की मन को मोह लेते हैं इसमें मुख्य रूप से प्रसादी वितरण मैं बोर एवं मक्का ज्वार माता को धानी के रूप में फोड़ा जाता है आज जिसे नए युग में पॉप कारण कहते हैं यह पुराना प्रसाद है प्रतिदिन कम से कम आयोजक परिवार 300 से 200 लोगों का भोजन बनाता है सवेरे 200 शाम को 300 ऐसा लगभग क्रम चलता है बड़े और आयोजन में यह ज्यादा भी होता था था 10 से लेकर सौ 200 किलोमीटर तक के प्रस्तुति मंडल भुवाणा क्षेत्र में कार्यक्रम देने आते हैं मंडलों के साथ सुंदर वाद्य यंत्रों का भी तालमेल अब जुड़ चुका है वैसे गणगौर में पुराने भजनों का महत्व ज्यादा है मुख्य रूप से गुर्जर समाज सबसे ज्यादा आयोजनों में हिस्सा लेता है फिर राजपूत ...गौर कुशवाहा... माली ब्राह्मण दर्जी.. सुतार सभी सामाजिक बंधु हिल मिल के आपस में दर्शन के लिए जाते हैं और मां का त्योहार मनाते हैं मां प्रतिवर्ष चैत्र माह की अष्टमी और वैशाख माह की नवमी को पधारते और प्रथम चैत्र की दूज एवं वैशाख आप की तीज को विसर्जन विदाई के रूप में अपने देश चले जाते हैं जैसे मां दुर्गा का विसर्जन होता है कुछ इसी तरह केवल जवारो विसर्जन किया जाता है

Comments