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Katha 57 | Karmo Ka Fal Nahi Bhogna Padega | Guru Ki Takat | SSDN | 19 July | Satsang | 2 месяца назад


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Katha 57 | Karmo Ka Fal Nahi Bhogna Padega | Guru Ki Takat | SSDN | 19 July | Satsang |

Katha 57 Ab Karmo Ka Fal Nahi Bhogna Padega कहते भी है जीवों के कल्याण हित प्रभु जग में प्रकट आए श्री परमहंस के रूप में प्रभु धरा पर आए .. के जीवों की करुण पुकार को सुन कर के जीवों को दुखों में देख करके पूर्ण पारब्रह्म परमेश्वर से सहन नहीं हुआ और जीवों को सुखी रखने के लिए उन्हें दुखों से छुटकारा दिलाने के लिए व परम पिता परमात्मा श्री परमहंस दयाल जी महाराज जी के रूप में धरा धाम पर अवतार धारण करके आए और वही रूप आज हमारे सन्मुख विराजमान होकर के हमें अपने पावन श्री चरणों में बिठा कर के पावन श्री दर्शनों से और शुभ आशीर्वाद से निहाल कर रहे हैं जीवों का कल्याण करना वोह भी सारी सृष्टि के यह महापुरुषों का कितना विशाल मकसद होता है संसार के अंदर हम देखते हैं हर इंसान का कोई ना कोई लक्ष्य कोई ना कोई मकसद अवश्य होता है और उस मकसद को पाने के लिए वह जी जान लगाता है पूरी कोशिश करता है मेहनत करता है तभी जाकर के वह अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त कर सकता है अगर संसारी लक्ष्य को पाने के लिए पूरी मेहनत करनी पड़ती है तो महापुरुषों का लक्ष्य तो कितना विशाल है सारे जगत के जीवों की आत्मा का कल्याण करना तो महापुरुषों को कितनी मेहनत मशक्कत करनी पड़ती है सुनते तो थे लेकिन आज हम अपनी आंखों से देख रहे हैं महापुरुषों को ना दिन में चैन होता है ना रात में आराम मिलता है मकसद हमेशा उनका सामने होता है और उसी मकसद को पूरा करने के लिए चौबीसों घंटे प्रयत्नशील रहते हैं महापुरुषों का जीवन आदर्श जीवन होता है वैसे तो महापुरुष कर्मों से रहित होते हैं वह चाहे कोई भी कर्म ना करें उनके लिए कोई जरूरी नहीं है लेकिन वह भी कर्म करते हैं जीवों के सामने आदर्श स्थापित करने के लिए कि जब हम पूर्ण पारब्रह्म परमेश्वर होते हुए भी कर्म करते हैं तो जीवों को तो अवश्य कर्म करना चाहिए अब इंसान को मानुष चोला तो प्राप्त हुआ उस मालिक की कृपा से लेकिन इंसान कर्म करने के लिए स्वतंत्र है कर्म अच्छा करना है या बुरा करना है यह इंसान के ऊपर निर्भर करता है जो इंसान के अंदर जन्मों जन्मों से संस्कार होते हैं इंसान उसी के कारण ही जन्म के अंदर कर्म करता रहता है अगर कर्म बुरा करता है तो उसका फल बुरा ही मिलता है अगर कर्म अच्छा करता है तो उसका फल भी अच्छा ही प्राप्त होता है लेकिन जो गुरमुख जन होते हैं जो महापुरुषों की आज्ञा और मौज में चलते हैं वह हमेशा कर्म अच्छे ही करते रहते हैं , क्योंकि महापुरुषों के उपदेश महापुरुष के सत्संग हमेशा जीवों को यह प्रेरणा देते हैं कि अच्छा कर्म करो यह मानुष चोला जो मिला है यह बार-बार मिलने वाला नहीं है इसी जन्म के अंदर ही जन्म मरण से छुटकारा प्राप्त करना है आवागमन के चक्कर को छोड़ना है यह मानुष जन्म इस बार मिला तो है दोबारा मिले या ना मिले इसकी कोई गारंटी नहीं है लेकिन आम संसारी जीव वह समझता नहीं है वह धन दौलत कमाने के लिए दुनिया के पदार्थ इकट्ठे करने के लिए चाहे बुरे से बुरा कर्म क्यों ना पड़े वह करने के लिए हमेशा तैयार रहता है लेकिन गुरमुखजन हमेशा बुरा कर्म करने से डरते हैं क्योंकि वह जानते हैं अगर बुरा कर्म किया तो उसका फल भी बुरा होगा और इसी कारण हमेशा जन्म मरण के चक्कर में पड़े रहेंगे इसलिए गुरुमुख जन हमेशा अच्छा कर्म करते हुए भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होते रहते हैं जो गुरमुख जन दरबार के पांचों नियमों की श्रद्धा से पालना करते हैं उनका सपने में भी बुरा कर्म कभी नहीं होता इसी प्रकार वह अच्छा कर्म करते हुए महापुरुषों की पूरी पूरी प्रसन्नता को प्राप्त करते हैं जब महापुरुषों के कृपा से उनकी शरणसंगति प्राप्त हो गई है महापुरुषों ने कृपा करके ऐसे आलीशान दरबार की रचना की है, तो गुरुमुख का भी यह कर्तव्य बन जाता है महापुरुषों की आज्ञा को हमेशा शिरोधार्य करें आज भी श्री सतगुरु दाता दयाल महाराज जी ने अपने पावन श्री वचनों में फरमाया – की गुरुमुख का परम कर्तव्य यही है कि महापुरुषों की आज्ञा में चले अगर वह आज्ञा के बाहर कर्म करता है तो माया के अधीन हो जाता है जब मन और माया के अधीन इंसान हो जाया करता है फिर वह जन्म मरण के चक्कर में पड़ जाता है इसी बंधन से छुटकारा दिलाने के लिए यही महापुरुषों ने फरमाया है कि हमेशा उनकी आज्ञा और मौज के अंदर अपने जीवन को व्यतीत करो अगर गुरमुख खुशी चाहता है आनंद चाहता है तो केवल एक ही रास्ता है अपने जीवन को महापुरुषों की आज्ञा में ढाले अगर गुरमुख ऐसा कर जाता है तो ऐसे आनंद को प्राप्त करता है जिस आनंद को पाने के लिए सारा संसार मारा मारा फिरता है आम इंसान को वो आनंद प्राप्त नहीं होता वो आनंद महापुरुषों की कृपा से गुरुमुख को सहज ही प्राप्त हो जाता है और गुरुमुख को भी तभी प्राप्त होता है जब वह महापुरुषों की आज्ञा में चलता है तो महापुरुषों ने दरबार के कितने सरल नियम बनाए हैं और सारे के सारे सुख जितने संसार के अंदर है वो इन पावन नियमों के अंदर समाए हुए हैं महापुरुषों का आशीर्वाद भी इन नियमों में समाया हुआ है हम देखते हैं श्री चरणों में आकर के गुरुमुख प्रेमी कितनी विनय करते हैं चाहे सांसारिक दिक्कतें कितनी आती हैं चाहे कितनी ही मन के अंदर चाहना है महापुरुष यही फरमाते हैं कि दरबार के नियमों की श्रद्धा से पालना करो और दो घंटे का ध्यान करो जो आप चाहते हो वही आपको प्राप्त हो जाएगा जब महापुरुषों के चरणों से हर चीज की प्राप्ति होती है संसार के सुखों की भी प्राप्ति होती है और लोक परलोक भी सुहेला हो जाता है तो गुरुमुख को भी चाहिए कि महापुरुषों की आज्ञा को हमेशा अपने सिर के ऊपर धारण करें जब भी यह कदम उठाए तो यह सोचे

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