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हर की पौड़ी और मां गंगा का दुर्लभ दर्शन( हरिद्वार) उत्तराखंड। #haridwar # uttarakhand #1हरिद्वार में हर की पौड़ी का क्या महत्व है? मान्यता हर की पौड़ी या ब्रह्मकुण्ड पवित्र नगरी हरिद्वार का मुख्य घाट है। ये माना गया है कि यही वह स्थान है जहाँ से गंगा नदी पहाड़ों को छोड़ मैदानी क्षेत्रों की दिशा पकड़ती है। इस स्थान पर नदी में पापों को धो डालने की शक्ति है और यहाँ एक पत्थर में श्रीहरि के पदचिह्न इस बात का समर्थन करते हैं। #हर की पौड़ी का अर्थ क्या है? हर की पौड़ी , जिसका अर्थ है भगवान विष्णु (हरि) के पैर, गंगा नदी के तट पर एक घाट है और भारतीय राज्य उत्तराखंड में हिंदू पवित्र शहर हरिद्वार का मील का पत्थर है #हरिद्वार का क्या महत्व है? हरिद्वार को भगवान श्रीहरि (बद्रीनाथ) का द्वार माना जाता है, जो गंगा के तट पर स्थित है। इसे गंगा द्वार और पुराणों में इसे मायापुरी क्षेत्र कहा जाता है। हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम 'माया' या 'मायापुरी' है, जिसकी सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में गणना की जाती थी #हर की पौड़ी हरिद्वार का निर्माण किसने करवाया था? हर की पौड़ी हरिद्वार में गंगा के तट पर स्थित प्रमुख और लोकप्रिय घाट है। इसका निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। #हर की पौड़ी में गंगा कितनी गहरी है? हरिद्वार में हरि की पौड़ी पर जल स्तर बहुत कम यानि लगभग 4 फीट है, क्योंकि किसी भी उम्र के लोग पवित्र जल में डुबकी लगाने का लाभ उठा सकते हैं। #हर की पौड़ी में क्या हुआ था? ऐसा कहा जाता है कि अमृत की कुछ बूंदें हर की पौड़ी के ब्रह्मकुंड में गिरी थीं , इसलिए इस विशेष दिन ब्रह्मकुंड में डुबकी लगाना बहुत शुभ माना जाता है और जब बृहस्पति कुंभ राशि में आता है तो हर बारह साल में एक बार हरिद्वार में महाकुंभ मेला मनाया जाता है। #हरिद्वार का पुराना नाम क्या है? हरिद्वार को 'देवताओं का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है, इसे मायापुरी, कपिला, गंगाद्वार के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव (हर) के अनुयायी और भगवान विष्णु (हरि) के अनुयायी इस स्थान को क्रमशः हरिद्वार और हरद्वार कहते हैं, जैसा कि कुछ लोगों ने बताया है। #हरिद्वार एक पवित्र स्थान क्यों है? कहा जाता है कि पौराणिक राजा भगीरथ अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करने के लिए गंगा नदी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए थे। यह भी कहा जाता है कि हरिद्वार तीन देवताओं; ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उपस्थिति से पवित्र है। #हर की पौड़ी नाम कैसे पड़ा? ऐसा इसलिए है क्योंकि इस जगह को लेकर मान्यता है कि जब असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन हुआ तब लड़ाई के बीच में असुर अमृत का कलश लेकर भागने लगे। तभी उस कलश में से 4 बूंदें गिर गई। इनमें से एक बूंद हरीद्वार में गिरी। माना जाता है कि ये बूंद हर की पौड़ी/पैड़ी पर ही गिरी थी। #हरिद्वार के 5 तीर्थ कौन से हैं? 'पंच तीर्थ' या हरिद्वार की परिधि के भीतर स्थित पांच तीर्थस्थल हैं, गंगाद्वार (हर की पौड़ी), कुशवर्त (घाट), कनखल, बिलवा तीर्थ (मनसा देवी मंदिर) और नील पर्वत (चंडी देवी)। #हरिद्वार की कहानी क्या है? हरिद्वार में हर की पौड़ी को तीर्थ स्थान कहा जाता है, तो वही हरिद्वार को भोलेनाथ की नगरी भी कहा जाता है. जहां महादेव ने समुद्र मंथन से निकला विष पीया था, वह स्थान भी हरिद्वार में है. जहां श्रद्धालु देश-विदेश से अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं. हरिद्वार में स्थित नीलेश्वर महादेव मंदिर का सनातन धर्म में विशेष स्थान है. #हरिद्वार में कितने घाट हैं? हरिद्वार में गंगा के किनारे कई घाट हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना अनूठा इतिहास और महत्व है। हालाँकि इनकी सटीक संख्या अलग-अलग हो सकती है, लेकिन हरिद्वार में लगभग 20 प्रमुख घाट हैं, जिनमें हर की पौड़ी, गऊ घाट, कुशावर्त घाट और अन्य शामिल हैं। #2गंगा आरती क्यों प्रसिद्ध है? इसका उद्देश्य गंगा नदी की महिमा और धार्मिक महत्व को बढ़ाना था. गंगा आरती एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें गंगा नदी की पूजा और आराधना की जाती है. यह आरती हर शाम सूर्यास्त के समय होती है और इसमें भव्य दीपों, मंत्रों और संगीत का विशेष योगदान होता है. #हरिद्वार में गंगा आरती के लिए कौन सा घाट प्रसिद्ध है? गंगा आरती एक धार्मिक प्रार्थना है जो हरिद्वार में हर की पौड़ी घाट पर पवित्र गंगा नदी के तट पर होती है। दुनिया भर से पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करने वाली यह एक प्रकाश और ध्वनि की रस्म है, जिसमें पुजारी अग्नि के कटोरे और मंदिर की घंटियाँ बजाकर प्रार्थना करते हैं। #गंगा आरती क्यों प्रसिद्ध है? गंगा आरती समारोह एक सुंदर दृश्य से कहीं अधिक एक गहन आध्यात्मिक आयोजन है । पवित्र गंगा नदी का सम्मान करना, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह पापों को धोती है और आध्यात्मिक शुद्धता प्रदान करती है, सम्मान का प्रतीक है। #गंगा किसका अवतार है? मां गंगा को शिव की जटाओं में स्थान दिया तब एक शिखा से मां गंगा का धरती पर अवतार हुआ। भगीरथ ने रसातल में जाकर अपने पितरों को उद्धार किया। जब गंगा नदी में राजा सगर के पुत्रों की अस्थि मिली, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।