У нас вы можете посмотреть бесплатно Lakhnauti Azadari-2023 | लखनौती अज़ादारी-2023 | Recorded By आज़ाद खान लखनौती...✍️ или скачать в максимальном доступном качестве, которое было загружено на ютуб. Для скачивания выберите вариант из формы ниже:
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#आज़ादखान #azadkhan #Azadarilakhnauti #LakhnautiAzadari #Azadarilakhnauti2023 #LakhnautiAzadari2023 संवाददाता, आज़ाद खान गंगोह। क्षेत्र के ग्राम लखनौती में प्रतिवर्ष की भाँति नो दिनो तक गमों की मजलिसो के बाद नवासा-ए-रसूल एवं शहीद-ए-करबला की याद में 9 मोहर्रम की देर शाम(शब-ए-आसूरा) को अज़ादारों ने आग पर चलकर मातम किया और पूरी रात ग़म-ए-हुसैन में डूबे रहे। देर रात(शब-ए-आसूरा) को करीब 2 बजे मातमी जुलूस शुरू होकर सभी इमामबारगाहों में पहुँचा। तथा अपनी मान्यताओं के अनुसार अनेक मानकों पुरा करते हुए जंजीरी मातम के बाद सौहार्दपूर्ण तरीके से मंगलवार की शाम को क्षेत्र की कर्बला में पहुँचकर समाप्त हुआ। जुलूस में या हुसैन-या हुसैन, या अब्बास-या अब्बास की सदाएं बुलंद हो रही थी। नोहे और मर्सिये पढ़ते हुए जुलूस आगे बढ़ रहा था। मिर्ज़ा शुबेब अली, मिर्ज़ा शान अली, मिर्ज़ा अबु समामा, मिर्ज़ा रुशेद अली, मिर्ज़ा तहज़ीब, मिर्ज़ा ग़ालिब आदि मर्सियो में कर्बला की दास्ताँ व मंजर को बयां करते हुए आगे बढ़ते रहे। इस दौरान सोगवार फूट-फूट कर रो रहे थे। प्रति वर्ष की भाँति शब-ए-आसूरा की रात करीब 2 बजे मातमी जुलूस निर्धारित मार्गों द्वारा मुन्नो बेगम इमामबारगाह से शुरू होकर इमामबारगाह हिंगो बेगम, इमामबारगाह तफज्जुल हुसैन, इमामबारगाह निज़ाम बेग, इमामबारगाह फातिमा तु जेहरा, इमामबारगाह हमज़ा अली (मकबरा), जामा मस्जिद से होते हुए इमामबारगाह बैठक, इमामबारगाह दरबार हुसैनी (जोगियान), तत्पश्चात मौहल्ला कुरैशीयान, मुख्य बाज़ार से होते हुए पीरपुर में स्थित इमामबारगाह अबु तालिब में पहुँचा वहाँ से इमामबारगाह मुन्नो बेगम में आकर सुबह करीब 10 बजे रुका। वहाँ मोलाना शबाब हैदर हैदराबादी के द्वारा मजलिस में इमाम हुसैन के मसाईब बयान किए गए। मजलिस के बाद पुनः करीब 4 बजे जुलूस वहाँ से शुरू होकर नंबरदार चौक पर पहुँचा और वहाँ शहीद-ए-कर्बला मर्सीये पढे गए। सोगवार फूट-फूट कर रोने लगे और या हुसैन या हुसैन की सदाओ के बीच ज़ुलजना व अलम बरामद किया गया। और आजादारों ने जंजीरी मातम करके खुद को लहू लुहान कर लिया। जिसके बाद जुलूस वहाँ से चलकर शकरपुर साकरोर में स्थित क्षेत्र की कर्बला में जाकर समाप्त हुआ। जुलूस का संचालन मिर्जा फरजंद अली,मिर्ज़ा शाह हसन,मिर्ज़ा मौहम्मद कुमेल, मिर्ज़ा शोज़िब,मिर्ज़ा सदर अब्बास उर्फ सम्मी,सहकार हुसैन,इकरार हुसैन, मौलाना रज़ा शाह, मिर्ज़ा नबील, मिर्ज़ा अरसलान,वजाहत अली, जव्वाद अली आदि ने मुख्य रूप से किया तथा जुलूस में सैकड़ो स्थानीय अज़ादारों सहित दूर-दराज़ से आए हुए ज़ायरीन शामिल हुए। वहीं सुरक्षा की दृष्टि से भारी पुलिस बल मौजूद रहा। गौरतलब है कि कर्बला की जंग और हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। इस्लामिक कल्चर में मातम का दिन भी कहा जाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिए निकालते हैं, मर्सिया पढ़ते हैं। मुहर्रम के महीने को गम का महीना कहा जाता है इसी दिन इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान कुर्बान की थी इसलिए मुहर्रम इस्लाम की रक्षा और हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी का प्रतीक है। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है. इस महीने की 10 तारीख यानी आशूरा के दिन दुनियाभर में मुसलमान इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन की इराक के कर्बला में हुई शहादत की याद में ताजिया निकाल कर उन्हें याद करते हैं। इसी दिन जगह-जगह ताजिये निकालकर फातिहा और तिलावत-ए-कुरआन किया जाता है. मोहर्रम माह की 9 तारीख की देर शाम ताजियों को निकाला जाता है. अगले दिन 10 तारीख को क्षेत्र की कर्बला में सुपुर्दे ख़ाक किया जाता है.आलम-ए-इस्लाम की तारीख बन गई कर्बला की जंग ए कर्बला के मैदान में नवासा ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन और उनके कुनबे को यजीद के लश्कर ने 10 मोहर्रम को शहीद कर दिया था। शहादत पाने वालों में इमाम हुसैन का छह माह का बेटा अली असगर,18 साल का जवान अली अकबर, भाई अब्बास अलमदार, दो भांजे औनो मोहम्मद, भतीजा कासिम और दोस्त एहबाब शामिल थे. 10 मोहर्रम को हुसैन का पूरा घर लूट लिया गया था। खेमे हुसैनी में आग लगा दी गई थी। दरअसल वाक्या सन 680 (61 हिजरी) का है, तब इराक में यजीद नामक दुर्दांत बादशाह ने इमाम हुसैन को यातनाएं देना शुरू कर दिया था. उनके साथ परिवार, बच्चे, बूढ़े बुजुर्ग सहित कुल 72 लोग थे। वह कूफे शहर की ओर बढ़ रहे थे. तभी यजीद की सेना ने उन्हें बंदी बना लिया। कर्बला (इराक का प्रमुख शहर) ले गई. कर्बला में भी यजीद ने दबाव बनाया कि उसकी बात मान लें, लेकिन इमाम हुसैन ने जुल्म के आगे झुकने से साफ इनकार कर दिया. इसके बाद यजीद ने कर्बला के मैदान के पास बहती नहर से सातवें मुहर्रम को पानी लेने पर रोक लगा दी. हुसैन के काफिले में 6 माह तक के बच्चे भी थे, अधिकतर महिलाएं थीं, पानी नहीं मिलने से ये लोग प्यास से तड़पने लगे. इमाम हुसैन ने यजीद की सेना से पानी मांगा, लेकिन यजीद की सेना ने शर्त मानने की बात कही, यजीद को लगा कि हुसैन और उनके साथ परिवार, बच्चे व महिलाएं टूट जाएंगे और उसकी शरण में आ जाएंगे, लेकिन तब भी ऐसा नहीं हुआ। यजीद ने इमाम हुसैन के छह माह और 18 माह के बेटे को भी मारने का हुक्म दिया. इसके बाद बच्चों पर तीरों की बारिश कर दी गई. इमाम हुसैन पर भी तलवार से वार किए गए. इस तरह से हजारों यजीदी सिपाहियों ने मिलकर इमाम हुसैन सहित 72 लोगों को शहीद कर दिया। अपने हजारों फौजियों की ताकत के बावजूद यजीद, इमाम हुसैन और उनके साथियों को अपने सामने नहीं झुका सका. दीन के इन मतवालों ने झूठ के आगे सर झुकाने के बजाय अपने सर को कटाना बेहतर समझ. जिसके बाद यह लड़ाई आलम-ए-इस्लाम की एक तारीख बन गई. जंग के आखिर में हुसैन को भी शहादत हासिल हुई।इस्लामी इतिहास की इस बेमिसाल जंग ने पूरी दुनिया के मुसलमानों को एक सबक दिया कि हक की बात के लिए यदि खुद को भी कुर्बान करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए।