У нас вы можете посмотреть бесплатно Etawah के इतिहास और मुगलों से जुड़ी यह घटना हैरान करने वाली है।| Chugalkhor ki Mazar| Sumer Singh или скачать в максимальном доступном качестве, которое было загружено на ютуб. Для скачивания выберите вариант из формы ниже:
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#SumerSingh #mohamdgori #chugalkhorkimazar #baiskhwaja #etawah #jaychand #kannoj #chandawar The News Guide Vikram Singh चुगलखोर की मजार से जुड़ी अन्य कहावतें।-- इटावा-फर्रुखाबाद रोड पर ग्राम दतावली के पास स्थित चुगलखोर की मजार ऐतिहासिक और वास्तुकला की दृष्टि से भले ही महत्वहीन है, पर लोक परंपराओं में वह एक ऐसी अद्भुत मिसाल है, जो शायद और कहीं देखने को न मिले। परंपरा के आधार पर यहां से गुजरने वाला प्रत्येक मुसाफिर इस मजार पर पांच जूते चप्पल मारता है, ऐसे करने से उसकी यात्रा सफल होती है। इसी किवंदती को निभाते हुए चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी भी इस मार्ग से गुजरते समय अपनी मनोकामना पूर्ण करने को लेकर मजार पर पांच जूते मारना नहीं भूल रहे हैं। सड़क के किनारे बनी इस मजार में कौन सा सख्स दफन किया गया है, स्थानीय परंपराओं से इतना अवश्य पता लगता है कि वह सख्स दतावली गांव का ही निवासी था। घटना को चुगलखोरी की दास्तान को अलग-अलग तीन ऐतिहासिक घटनाओं से जोड़ा जाता है। प्रथम दास्तान के अनुसार इटावा के राजा सुमेर सिंह चौहान जब जयचंद्र से मिलकर मुहम्मद गोरी के साथ युद्ध कर रहे थे, तो भोला सैय्यद नामक फकीर ने सुमेर सिंह के एक खास आदमी से किले और सुमेर सिंह के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियों को इकट्ठा करके गोरी को दी थी। परिणाम स्वरूप चंदावर के युद्ध में जयचंद्र और सुमेर शाह दोनों ही परास्त हो गये थे। फकीर के वेश में जासूस को जानकारियां देने वाला व्यक्ति इस दतावली गांव का एक मुंशी था जो सुमेर शाह के यहां नौकरी करता था। उसी मुंशी को सजाए मौत देकर यहां दफनाया गया था। दूसरी दास्तान के अनुसार सुमेर शाह के यहां एक प्रमुख मुस्लिम कर्मचारी था। वह एक निकटवर्ती राज्य अटेर (भिंड) में घूमने गया। इटावा के मध्य उस समय अच्छे राजनीतिक संबंध थे। उस व्यक्ति ने दोनों राज्यों के शासकों के मन में वैमनस्यता के बीज बो दिये। दोनों को ही कह दिया कि वे एक दूसरे पर आक्रमण करना चाहते हैं। परिणामस्वरूप दोनों राज्यों के मध्य युद्ध छिड़ गया और व्यापक जनहानि हुई। इस बीच दोनों पक्षों और समझदार लागों ने युद्ध के कारणों की समीक्षा की तो चुगलखोर की कारामात सामने आई। तीसरी दास्तान मुगल शासन में शाहजहां के काल की है। उस समय नवाब पुरादिल खां इटावा के आमिल थे। एक बार शाहजहां इटावा से होकर गुजर रहे थे तो चुगलखोर ने बादशाह के कान भर दिए कि आमिल शाहजहां के खिलाफ विद्रोह करना चाहते हैं। शाही फौजें स्थानीय सैनिकों पर टूट पड़ीं और बहुत से सैनिक मारे गये। इस तीनों घटनाओं के मूल में एक चुगलखोर है। कहा जाता है कि कुछ समय पहले तक इस मजार पर एक पत्थर की शिला लगी थी जिस पर लिखा था चुगलखोर की मजार। यह शिला तो वक्त की तलहटी में चली गयी। लेकिन जूते मारने की परंपरा अभी जारी है। सांस्कृतिक परंपराओं के स्मारक के रूप में इस जर्जर स्मारक का अपना निराला महत्व है। लोक रुचि के कारण यह जानमानस के आकर्षण का आज भी केंद्र है। तमाम नेता अपनी मनोकामनापूर्ण करने की कामना को लेकर आने से पूर्व 5 जूता मारना नहीं भूल रहे हैं।