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जय राम रमा रमनं समनं | श्री रामभद्राचार्य जी | संपादक- अतुल कृष्ण | Jai Ram Ram Ramanam Shamanam 4 года назад


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जय राम रमा रमनं समनं | श्री रामभद्राचार्य जी | संपादक- अतुल कृष्ण | Jai Ram Ram Ramanam Shamanam

जब भगवान् श्रीराम जी का राजतिलक हो रहा था। सभी देवतागण अयोध्या उपस्थित हुए। तभी भगवान् शिव जी भैरवी में यह छन्द: द्वारा श्रीराम जी की स्तुति करने लगे। यह छन्द: रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड से लिया गया है। इसे अवश्य सुने आपके सभी दुःख दूर हो जायेंगे। जय राम रमा रमनं समनं | श्री रामभद्राचार्य जी का भजन | संपादक- अतुल कृष्ण Jai Ram Rama Raman Samman Bhajan of Shri Rambhadracharya Ji | Editor- Singer Atul Krishan ॥ छन्द: ॥ जय राम रमा रमनं समनं । भव ताप भयाकुल पाहि जनम ॥ अवधेस सुरेस रमेस बिभो । सरनागत मागत पाहि प्रभो ॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ दससीस बिनासन बीस भुजा । कृत दूरी महा महि भूरी रुजा ॥ रजनीचर बृंद पतंग रहे । सर पावक तेज प्रचंड दहे ॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ महि मंडल मंडन चारुतरं । धृत सायक चाप निषंग बरं ॥ मद मोह महा ममता रजनी । तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ मनजात किरात निपात किए । मृग लोग कुभोग सरेन हिए ॥ हति नाथ अनाथनि पाहि हरे । बिषया बन पावँर भूली परे ॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ बहु रोग बियोगन्हि लोग हए । भवदंघ्री निरादर के फल ए ॥ भव सिन्धु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ अति दीन मलीन दुखी नितहीं । जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं ॥ अवलंब भवंत कथा जिन्ह के । प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के ॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ नहीं राग न लोभ न मान मदा । तिन्ह के सम बैभव वा बिपदा ॥ एहि ते तव सेवक होत मुदा । मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ । पड़ पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ॥ सम मानि निरादर आदरही । सब संत सुखी बिचरंति मही ॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ मुनि मानस पंकज भृंग भजे । रघुबीर महा रंधीर अजे ॥ तव नाम जपामि नमामि हरी । भव रोग महागद मान अरी ॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ गुण सील कृपा परमायतनं । प्रणमामि निरंतर श्रीरमनं ॥ रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं । महिपाल बिलोकय दीन जनं ॥ राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम ॥ ॥ दोहा: ॥ बार बार बर मागऊँ हरषी देहु श्रीरंग। पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग॥

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