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एमआईटी में हुई एक पैनल चर्चा में, सद्गुरु दिमाग और चेतना से जुड़े एक प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं। वे बताते हैं कि योग विज्ञान के अनुसार मन की चार परतें होती हैं, मनस, यानि यादों का भण्डार; तार्किक बुद्धि; अहंकार, यानि हमारी पहचान; और चित्त, यानि एक बुद्धि या प्रज्ञा जिसकी कोई सीमा नहीं है। English video: • Mind: A Yogic Perspective – Sadhguru ... एक योगी, युगदृष्टा, मानवतावादी, सद्गुरु एक आधुनिक गुरु हैं, जिनको योग के प्राचीन विज्ञान पर पूर्ण अधिकार है। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोडों लोगों को एक नई दिशा मिली है। दुनिया भर में लाखों लोगों को आनंद के मार्ग में दीक्षित किया गया है। सद्गुरु एप्प डाउनलोड करें 📲 http://onelink.to/sadhguru__app ईशा फाउंडेशन हिंदी ब्लॉग http://isha.sadhguru.org/hindi सद्गुरु का ओफ़िशिअल हिंदी फेसबुक चैनल / sadhguruhindi सद्गुरु का ओफ़िशिअल हिंदी Helo प्रोफाइल Helo id:437831063 सद्गुरु का ओफ़िशिअल हिंदी Sharechat प्रोफाइल https://sharechat.com/profile/sadhguru सद्गुरु का ओफ़िशिअल हिंदी Telegram ग्रुप जॉइन करें https://t.me/joinchat/Md1ldBSkRhCIANV... सद्गुरु का नि:शुल्क ध्यान ईशा क्रिया सीखने के लिए: http://hindi.ishakriya.com देखें: http://isha.sadhguru.org Transcript: प्रश्नकर्ता : आधुनिक विज्ञान और आधुनिक चिकित्सा में एक रुझान है कि वे मन, चेतना और दिमाग को इस तरह पहचानते हैं, कि मन को दिमाग की गतिविधि माना जाता है, चेतना को मन की गतिविधि माना जाता है और उनका रासायनिक उपचार करके, उन्हें रासायनिक रूप से बदला जाता है, और ये भी कि खुशहाली, दिमाग की अच्छी केमिस्ट्री है, ऊँची चेतना भी दिमाग की अच्छी केमिस्ट्री है, दुख दिमाग की बुरी केमिस्ट्री है, इसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं है, लेकिन इसे बेहतर बनाने के लिए हमें इसकी केमिस्ट्री को बदलना होगा। अब योग विज्ञान के अनुसार दिमाग, मन और चेतना तीन अलग-अलग चीज़ें हैं लेकिन वे एक खास स्तर पर सम्बंधित हैं। तो मैं सद्गुरुजी से यह जानना चाहता हूँ कि दिमाग, मन और चेतना की क्या प्रकृति है और हम दिमाग और मन में फंसे बिना, उनका उचित तरीके से कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? और उस चिकित्सा-मॉडल के बारे में भी जो दिमाग की केमिस्ट्री से ज्यादा चेतना पर जोर देता हो। सद्गुरु : योग विज्ञान में दिमाग जैसा कुछ नहीं होता, दिमाग सिर्फ शरीर है। जैसे दिल है, जैसे जिगर है वैसे ही दिमाग है, ये भी बस शरीर है। मुझे लगता है कि दिमाग को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर इसलिए प्रस्तुत किया जा रहा है, क्योंकि जैसा कि मैंने सुबह भी कहा था, हमारी शिक्षा प्रणालियाँ पूरी तरह से तर्क पर आधारित हो गई है। हमें लगता है तर्क ही सबकुछ है। अब मैं.. इसे बहुत ही कम शब्दों में कहने की कोशिश करूंगा, जब किसी बहुत ही जटिल चीज़ को कम शब्दों में कहा जाता है तो.. उसमें कुछ कमियाँ रह जाती हैं, अगर आपको कमी नज़र आए तो मुझे बताना, वरना.. ठीक है। तो योग विज्ञान के अनुसार मन के 16 हिस्से हैं। और ये 16 हिस्से, चार श्रेणियों में आते हैं। पहली है बुद्धि, बुद्धि मतलब तर्क। मैं आपसे पूछता हूँ, आपको बुद्धि तेज़ चाहिए या मंद? आप सब चुनिए, मैं आपको आशीर्वाद देने वाला हूँ। आपको तेज़ चाहिए! तो बुद्धि एक चाकू की तरह है। चाकू का इस्तेमाल चीज़ों के दो टुकड़े करने के लिए होता है, यही बुद्धि की प्रकृति है। आप जो भी देंगे वो उसके दो टुकड़े करेगी। पूरा आधुनिक विज्ञान मनुष्य की बुद्धि से पैदा हुआ है, इसलिए सारा काम चीरफाड़ से होता है। अगर आप एक वैज्ञानिक को फूल देंगे तो वे इसके टुकड़े करके देखेंगे। अगर आप इसके टुकड़े करके देखेंगे तो आपको फूल के बारे में कई जानकारियाँ ज़रूर मिल जाएंगी, पर आपको उसके बाद फूल नहीं मिलेगा। अगर अब आपको कुछ वाकई जानना है, मान लीजिये आपको आपकी माँ के बारे में जानना है, कृपया उनके टुकड़े मत करना। यह ऐसे काम नहीं करता क्योंकि जो चीज़ आप चीरफाड़ से जान सकते हैं वो जीवन का भौतिक पहलू है। आप जीवन को चीरफाड़ से नहीं जान सकते। सिर्फ भौतिक चीज़ों की चीरफाड़ की जा सकती है। पर अब हम हर चीज़ जानने के लिए तर्क का इस्तेमाल कर रहे हैं। तो हम दो टुकड़े करने की कोशिश करते हैं। हम दुनिया को एक करने की, समानता और आत्मज्ञान की बातें करते हैं – और सबकुछ तर्क से करना चाहते हैं। ये ऐसा है, जैसे चाकू का सिलाई के लिए इस्तेमाल करना। अगर आप चाकू से कुछ सिलेंगे तो आप उसके टुकड़े कर देंगे। तो हम ये देख रहे हैं, कि हम किसी चीज़ के बारे में जितना ज्यादा ज्ञान इकट्ठा करते हैं, ग़लतफहमी और सत्य से दूरी उतनी ही बढ़ती जाती है। इसलिए नहीं कि, जानकारी बुरी है, पर इसलिए क्योंकि हम चाक़ू से सिलने की कोशिश कर रहे हैं। तो तर्क, एक चाक़ू की तरह है, इसे तेज़ होना चाहिए, ये जीवित रहने का औजार है। अगर आपमें चीज़ों में फर्क करने का तर्क नहीं होता, तो आप इस धरती पर जिन्दा नहीं रह पाते। ये बहुत ही ज़रूरी है। लेकिन ये सिर्फ आपको जिन्दा रख सकता है। पर ये तब तक काम नहीं कर सकता, जब तक कुछ मात्रा में याद्दाश्त न हो। अगर आपकी सारी याददाश्त मिटा दी जाए, तो इससे फर्क नहीं पड़ता कि आपका बौधिक स्तर कितना है, अगर आपकी सारी याददाश्त चली जाए, तो आप अचानक मूर्ख लगने लगेंगे। आप शायद तब भी बुद्धिमान हों, पर आप मूर्ख लगने लगेंगे।