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हमारा देश विश्व में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। विश्व में कपास की बढ़ती मांग के कारण कपास को सफेद सोने के नाम से जाना जाता है। इसकी बुवाई के लिए मई - जून का महीना सबसे उपयुक्त होता है। अगर आप कपास की खेती करना चाहते हैं तो खेती से पहले खेत की तैयारी की बारीकियां जानना आपके लिए बहुत जरूरी है। कपास की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। सबसे अधिक दक्षिण भारत और मध्य भारत में काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में कपास की उन्नत खेती की जाती है। इसकी खेती के लिए बुलाई मिट्टी, क्षारीय भूमि, और कंकड़ से भरी हुई मिट्टी वाले खेतों का चयन नहीं करना चाहिए। कपास के लिए खेत की तैयारी में सबसे महत्वपूर्ण है सिंचाई। खेत तैयार करते समय एक बार सिंचाई करने के बाद 1 से 2 बार गहरी जुताई करनी चाहिए। रबी फसलों की कटाई के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई की जाती है। गहरी जुताई से खेत में मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही वर्षा के जल का अधिक संचय भी होता है। इसके बाद हैरो से 3 से 4 बार हल्की जुताई की जाती है। आप चाहें तो देशी हल से भी खेत की हल्की जुताई कर सकते हैं। जुताई के समय खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद को मिलाना जरूरी है। गोबर की खाद मिलाने से खेत में कार्बनिक पदार्थों की कमी पूरी होती है और बेहतर फसल की प्राप्त होती है। जुताई के बाद मिट्टी को भुरभुरा कर खेत में पाटा लगा दें। पाटा लगाने से खेत समतल हो जाती है। अच्छी फसल के लिए खेत का समतल होना बहुत जरूरी है। समतल खेत में जल धारण और जल निकासी दोनों अच्छी रहती है। अगर खेत में खरपतवार की अधिक समस्या नहीं है तो गहरी जुताई के बिना भी कपास की खेती की जा सकती है। बीज उपचारित करने की विधि: ज्यादातर किसान हाइब्रिड किस्मों की खेती करते हैं। हाइब्रिड किस्म की बीच पहले से उपचारित होती है, इसलिए इसे उपचारित करने की आवश्यकता नहीं होती। देशी बीज या घर में तैयार की गई बीज की बुवाई से पहले बीज उपचारित करना आवश्यक है। जैविक विधि से बीज उपचार : यदि आप जैविक विधि से बीज उपचारित करना चाहते हैं तो आप ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास से बीज उपचारित कर सकते हैं। रासायनिक विधि से बीज उपचार : रासायनिक विधि से बीज उपचारित करने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेंडाजिम या कैप्टन से उपचारित करें। खाद की मात्रा: अच्छी फसल के लिए सही मात्रा में खाद का प्रयोग करना आवश्यक है। सिंचित क्षेत्रों में प्रति एकड़ खेत में 140 किलोग्राम यूरिया, 200 किलोग्राम एस.एस.पी. एवं 27 किलोग्राम एम.ओ.पी. की आवश्यकता होती है। यदि आप डी.ए.पी. का प्रयोग करना चाहते हैं तो आपको प्रति एकड़ भूमि में 70 किलोग्राम डी.ए.पी., 112 किलोग्राम यूरिया, एवं 28 किलोग्राम एम.ओ.पी. की आवश्यकता होगी। वहीं असिंचित क्षेत्रों में प्रति एकड़ खेत में 70 किलोग्राम यूरिया, 100 किलोग्राम एस.एस.पी. एवं 28 किलोग्राम एम.ओ.पी. की आवश्यकता होती है। यदि आप डी.ए.पी. खाद का प्रयोग करना चाहते हैं तो प्रति एकड़ खेत में 35 किलोग्राम डी.ए.पी., 56 किलोग्राम यूरिया एवं 28 किलोग्राम एम.ओ.पी. की आवश्यकता होगी। बुवाई से पहले यूरिया की आधी मात्रा एवं अन्य सभी खाद की पूरी मात्रा खेत में मिलाएं। बचे हुए यूरिया को 2 भागों में बांट कर खड़ी फसल में प्रयोग करें। यदि आपने 2 वर्षों से खेत में जिंक का प्रयोग नहीं किया है तो अच्छी फसल के लिए आप प्रति एकड़ खेत में 10 किलोग्राम जिंक की मात्रा भी मिला सकते हैं। रपड़ा की समस्या: वर्षा के बाद खेत की मिट्टी के ऊपर एक कठोर परत सी बन जाती है, इसे रपड़ा कहते हैं। यह समस्या मौसम यानी वर्षा के कारण उत्पन्न होती है। बीज अंकुरित होने से पहले यानी बुवाई के 2-3 दिन बाद अगर वर्षा हुई तो मिट्टी की ऊपरी परत कठोर एवं पपड़ी की तरह हो जाती है। जिससे अंकुरित पौधे बाहर नहीं निकल पाते हैं। इस समस्या से बचने के लिए बुवाई के समय का ध्यान रखें और वर्षा ऋतु शुरू होने से पहले बीज की बुवाई कर लें। इसके साथ ही बुवाई के बाद सिंचाई भी न करें। जानें अन्य फसलों के विषय में, जुडें लाखों किसानों से कृषि नेटवर्क ऐप पर एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड करें :👇 https://play.google.com/store/apps/de... . . फेसबुक पर- / krishinetwork टेलीग्राम पर- https://t.me/krishinetwork . . #CottonFarming #KisanSampark #KrishiNetwork #कपक_की_खेती #Kapas_Ki_Kheti #कपास_की_उन्नत_किस्में