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एक और द्रोणाचार्य (डॉ शंकर शेष) सारांश Ek aur dronacharya drama summary (RCU BBA 4th sem hindi) 1 год назад


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एक और द्रोणाचार्य (डॉ शंकर शेष) सारांश Ek aur dronacharya drama summary (RCU BBA 4th sem hindi)

एक और द्रोणाचार्य (नाटक) : डॉ. शंकर शेष आधुनिक हिंदी के प्रमुख नाटककार डॉ शंकर शेष ने महाकवि व्यास द्वारा रचित 'महाभारत' के एक पात्र द्रोणाचार्य के जीवन प्रसंगों को आधार बनाकर 'एक और द्रोणाचार्य' इस नाटक की रचना की है, जिसमें आधुनिक जीवन की समस्याओं का चित्रण किया गया है| इस नाटक में दो समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है- शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त अनाचार और अध्यापक के अस्तित्व की समस्या। कथानक : कथानक को दो भागों में विभक्त किया गया है - पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध | दोनों भागों में वर्तमान की कथा और महाभारत की कथा दोनों समानांतर चलती हैं| पूर्वार्ध के आरंभ में अरविंद की कथा है| अरविंद आदर्श और सिद्धांतों पर चलनेवाला एक मध्यवर्गीय प्राध्यापक है| उस पर अपनी कैंसरग्रस्त माँ और विधवा बहन की जिंदगी निर्भर है, लड़का मेडिकल कॉलेज में भरती होनेवाला है| फिर भी वह घरेलु बातों से बेखबर है, इसलिए अरविंद की पत्नी लीला उसे ताने देती है, उसकी अपमानित करती है| अरविंद के कॉलेज की संस्था का प्रेसिडेंट एक व्यापारी तथा राजनीतिज्ञ है| एक दिन प्रेसिडेंट के बेटे राजकुमार को परीक्षा में छुरा सामने रखकर नक़ल करते समय अरविंद पकड़ता है और उसकी रिपोर्ट भी करता है| अरविंद की पत्नी लीला तथा सहयोगी प्राध्यापक यदू दोनों समझाते हैं कि रिपोर्ट वापस लो| यदू याद दिलाता है कि विमलेंदु के साथ क्या हुआ था| विमलेंदु एक आदर्शवादी प्राध्यापक था| उसने अपने आदर्शों के साथ समझौता नहीं किया इसलिए उसे जान गँवानी पड़ गयी थी। अरविंद की अनुपस्थिति में प्रिंसिपल उसके घर आते हैं और उसकी पत्नी लीला पर दबाव डालते हैं| खुद प्रेसिडेंट अरविंद के घर आकर उसे प्रिंसिपल बनाने का लालच देता है और धमकाता भी है। अंत में विवश होकर अरविंद रिपोर्ट वापस लेता है| यहाँ से महाभारत कथा प्रारंभ होती है| राजा द्रुपद द्रोणाचार्य का बालसखा था, और उसने राजा बनने पर द्रोणाचार्य को आधा राज्य देने का वचन दिया था| परंतु कालांतर में अपने वचन से मुकर गया| पत्नी कृपी के बहुत कहने पर दारिद्र्य अवस्था में जीवन बिता रहे द्रोणाचार्य राजा द्रुपद से मदद माँगने जाते हैं, पर द्रुपद द्रोणाचार्य का अपमान करता है| निराश अवस्था में घर वापस आते हैं, तब देखते हैं कि पुत्र अश्वत्थामा दूध पिलाने का हठ कर माता के सामने रो रहा है| घर में दूध नहीं है, इसलिए कृपी उसे पानी में आटा मिलाकर पिलाती है और अश्वत्थामा उसे दूध समझकर पी जाता है| यह देख द्रोणाचार्य को दुःख होता है| जब द्रोणाचार्य द्रुपद से अपमान का बदला लेने की बात करता है, तब पत्नी कृपी कहती है - "अपने इकलौते बेटे के लिए जो दूध की एक बूँद नहीं जुटा सकता उसके मुँह से बदले की भाषा वाचालता है|" द्रोणाचार्य कृपी की बात मान अपने तत्वों के विपरीत कौरव-पांडव राजकुमारों के आचार्य बन जाते हैं| एक दिन जंगल में वे एकलव्य की धनुर्विद्या का कौशल देखते हैं| एकलव्य की जाति के कारन द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य स्वीकार नहीं किया था, परंतु एकलव्य ने द्रोणाचार्य को गुरु मानकर उनकी मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या का स्वयंअभ्यास किया था| अर्जुन यह द्रोणाचार्य का प्रिय शिष्य था और वे नहीं चाहते थे कि दुनिया में अर्जुन से श्रेष्ठ कोई धनुर्धर हो| वे यह भी नहीं चाहते थे कि शूद्र धनुर्विद्या में निपुण हो, इसलिए गुरुदक्षिणा के रूप में एकलव्य से उसका दाहिना अंगूठा माँगते हैं और एकलव्य अपना अंगूठा काट कर दे देता है | अर्जुन को भी गुरु का यह षड्यंत्र अच्छा नहीं लगता| कहता है "जब भी प्रतिभा को जाति और व्यवस्था के नाम पर कुचला जाएगा, तो लोग आपको ही याद करेंगे | इतिहास आपको कभी क्षमा नहीं करेगा|" यहाँ पूर्वार्ध समाप्त होता है| उत्तरार्ध : पूर्वार्ध की घटना के बाद तीन साल बीत चुके हैं| विवश होकर सत्ता के आगे झुक कर अरविंद ने रिपोर्ट वापस ली है और अब प्रिंसिपल बना है, पर हमेशा तनावपूर्ण स्थिति में रहता है जिसके कारण वो चिड़चिड़ा हो जाता है। एक दिन प्रेसिडेंट का बेटा राजकुमार कॉलेज की छात्रा अनुराधा पर बलात्कार करने की कोशिश करता है। संयोग से उस समय अरविंद वहाँ पहुँचता है तब राजकुमार वहाँ से भाग जाता है। अनुराधा राजकुमार के विरुद्ध अरविंद के पास शिकायत करती है| अरविंद उसे न्याय देने का आश्वासन भी देता है, परंतु जब प्रेसिडेंट फोन पर धमकी देता है कि अरविंद ने अनुराधा का साथ दिया तो वह 15000 रुपयों के गबन के आरोप में फँसाकर अरविंद को जेल भेजेगा, तब घबराकर हार मान लेता है| अरविंद में आये इस परिवर्तन को देखकर निराश अनुराधा निकल जाती है, तब बौखलाकर अरविंद खुद के बारे में कहता है- "समझौते के फंदे पर अपने आपको पच्चीसों बार लटकानेवाला मैं..... दूसरों का नक़ाब उतारने की कोशिश में खुद नंगा हो जानेवाला मैं.... मुझ पर थूको|” कुछ देर बाद ट्रक दुर्घटना में अनुराधा के मर जाने की खबर आती है| अरविंद लीला से कहता है "मेरी बुज़दिली ने मार डाला उसे|" आगे चलकर कहानी एक नया मोड़ लेती है| प्रेसिडेंट बीमार पड़ जाता है। ब्लडप्रेशर की तकलीफ से निस्तार पाने के लिए वह डॉक्टर की सलाह से सुबह-शाम घूमने जाता है| एक शाम एक बड़े क्लिफ से गिर कर मर जाता है| उस समय अरविंद भी उसके साथ घूमने गया था, इसलिए उसकी हत्या के आरोप में अरविंद जेल की कोठरी में है| उस घटना का एकमात्र दर्शक अरविंद का छात्र और अनुराधा का प्रेमी चन्दू है जो अनुराधा की मृत्यु से आहत होकर आत्महत्या करने वहाँ गया था| वह जानता है कि अरविंद ने प्रेसिडेंट की हत्या नहीं की, पर वह साफ़ साफ़ नहीं बताता| अदालत में जब पूछा जाता है कि " क्या अरविन्द ने प्रेसिडेंट को धकेला था?” चन्दू कहता है, "हो सकता है" अंत में जेल की कोठरी में अचेतन में अरविंद तथा विमलेंदु का संवाद है| विमलेंदु इन सभी शोकांतिकाओं के लिए झूठ बोलने के लिए मज़बूर करनेवाली व्यवस्था को दोषी ठहरता है | अरविंद को वह व्यवस्था और सत्ता के कोड़ों से पिटा हुआ द्रोणाचार्य, एक और द्रोणाचार्य कहता है|

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