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पंजिया दाई के गोंडवाना खंड के कोयामुरी दीप में जन्म लेने वाले गोंड आदिवासी समाज के महान विद्वान, चिन्तक भाषाविद डॉ०मोतीरावण कंगाली पूरी दुनिया के एक मात्र ऐसे हस्ती थे, जिन्होंने हडप्पा कालीन सैंधवी चित्रात्मक लिपि को गोंडी में पढ़ कर बताये थे । डॉ० कंगाली जी कई भाषाओ के जानकार थे, उन्होंने गोंडी भाषा की पुन : खोज, सवर्धन और विकास में जो भूमिका निभाई वो अतुलनीय है । इस हडप्पा कालीन लिपि के गोंडी में उदवाचन ने पूरे वैश्विक जगत के इतिहास, पुरातत्व धर्म, दर्शन विज्ञान में नए सिरे से ज्ञान का रास्ता खोल दिया गया । इस लिपि के ज्ञान से दुनिया के महान सभ्यता – संस्कृति का ऐतिहासिक पुनर्लेखन का कार्य करने में पुनः मदद मिलेगी । दुनिया के महान इतिहास, संस्कृति इस हडप्पा सभ्यता के केंद्र में दबा है । मूल इतिहास से जुड़े दबे रहस्य से पर्दा उठाने का ठोस कार्य डॉ. मोतीरावण कंगाली जी ने किया है । दुनिया भर के इतिहासकार मोहन जोदड़ो – हडप्पा कालीन चित्र लिपि को पढने का जी तोड़ प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिल पाया था । जिसे गोंडवाना के लाल ने आदिवासियों की गोंडी भाषा के माध्यम से पढ़कर नए कीर्तिमान स्थापित किए । लेकिन दुर्भाग्य रहा दुनिया के भाषा वैज्ञानिको का ध्यान अपनी इस महत्वपूर्ण खोज की तरफ आकर्षित करने में असफल रहे । आज भी उनकी इस महान उपलब्धि को भारत सरकार साहित्य विश्व के तमाम भाषा वैज्ञानिक कोई तब्बजो नहीं दे रहे है । जीवन परिचय जन्म व पारिवारिक स्थिति:– एम०ए०, एल०एल०बी० तथा पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त डॉक्टर मोतीरावण कंगाली का जन्म 02 फरवरी 1949 को महारष्ट्र (विदर्भ) के नागपुर जिले के रामटेक तहसील में स्थित दुलारा नामक ग्राम के टीरकाजी कंगाली परिवार में हुआ था । पिता का नाम छतीराम और माता जी का नाम रायतार थी । पाँच भाई-बहनों में से मोतीराम सबसे बड़े थे । आपके दो छोटे भाई और दो बहनें भी थीं । दोनों भाई अभी भी गाँव में रहते हैं और खेती-बारी का काम करते हैं । इनकी पत्नी का नाम चित्रलेखा कंगाली है, कंगाली जी के तीन पुत्रियाँ है,बड़ी बेटी में श्रृंखला जो कि (आईएएस) अफसर है, मंझली बेटी वेरूंजली ने भी मराठी साहित्य में एमफिल किया है और वर्तमान में ये नागपुर में रहकर जॉब कर रही है और माँ के कार्यों में हाथ बटाती हैंऔर सबसे छोटी डॉ०विनीती नेत्र विशेषज्ञ चिकित्सक है । शिक्षा :– बालक मोतीराम की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के निकट ही प्राथमिक पाठशाला करवाही में हुई, जहां पर उन्होंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की । आपकी माध्यमिक शिक्षा (5वीं से 8वीं तक) आंग्ल पूर्व माध्यमिक विद्यालय बोथिया पालोरा से हुई जो आपके गाँव दुलारा से लगभग18 किलोमीटर दूर था, इसलिए वहीं से हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करना शुरू की । आपने आठवीं की बोर्ड परीक्षा1966 में उत्तीर्ण की तथा इसके बाद 9वीं की पढ़ाई करने वे रामटेक तहसील गए । उसके बाद नागपुर के हड्स हाई स्कूल में दाखिला लिया और वहीं से वर्ष 1968 में आपने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की । वर्ष 1972 में धरमपेठ महाविद्यालय, नागपुर से स्नातक की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए । अगले कुछ वर्षों में आपने पोस्ट ग्रेजुएट टीचिंग डिपार्टमेंट नागपुर से अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और भाषाशास्त्र में परास्नातक (एमए) परीक्षा उत्तीर्ण की । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से सन 2000 में आपको पीएचडी की उपाधि मिली । जिसका विषय था “द फ़िलासाफिकल बेस ऑफ ट्राइबल कल्चरल वैल्यूज पर्टिकुलरली इन रेस्पेक्ट ऑफ गोंड ट्राइब ऑफ सेंट्रल इंडिया”। इस शोध कार्य को संशोधन कर लिपिबद्ध किया है । नौकरी :– वर्ष 1976 में 27 वर्ष की उम्र में आपका चयन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नागपुर टकसाल में ‘नोट एंड करेंसी’ एक्ज़ामिनर के पद पर हुआ । सेवानिवृत्त होकर,गोंडवाना के लिए अपना कलम चलाया । साहित्य लेखन में योगदान :– डॉ० मोतीरावण कंगाली गोंडी संस्कृति के मूल्यों के दार्शनिक महत्त्व को रेखांकित करने का अद्भुद काम उन्होंने किया है । उनकी प्रकाशित प्रसिद्ध पुस्तके हैं, o कोराडीगढ़ की तिलका दाई (पारी कुपार लिंगो प्रकाशन, नागपुर, 1983) o डोंगरगढ़ की बमलाई दाई , (पारी कुपार लिंगो प्रकाशन, नागपुर, 1983) o गोंडों का मूल निवास स्थल (1983 में प्रथम संस्करण पारी कुपार लिंगो प्रकाशन द्वारा प्रकाशित, दूसरा संस्करण 2011 में चंद्रलेखा कंगाली द्वारा प्रकाशित) o कुँवारा भीमाल पेन ता इतिहास (पारी कुपार लिंगो प्रकाशन, नागपुर] 1984) o गोंडवाना का सांस्कृतिक इतिहास (पारी कुमार लिंगो प्रकाशन, नागपुर, 1984 ) o गोंडी श्लोक, गोंडी लिपि परिचय (पारी कुपार लिंगो प्रकाशन, नागपुर] 1984) o गोंडी वाणी का पूर्वोतिहास (पारी कुपार लिंगो प्रकाशन, नागपुर] 1984) o गोंडी नृत्य का पूर्वेतिहास (पारी कुपार लिंगो प्रकाशन, नागपुर] 1984) o कोया भिड़ी ता गोंड सगा विडार ना कोया पुनेम (पारी कुपार लिंगो प्रकाशन, नागपुर] 1984) o गोंडी लम्क पुंदान (1989 ) o गोंडी भाषा शब्द कोश भाग 1(1989) o गोंडी भाषा शब्द कोश भाग 2 (1989) o गोंडी भाषा सीखिये (1989) o कोया पुनेम ता सार (प्रथम संस्करण, 1938, लेखक – रंगेल सिंह भल्लावी, प्रकाशक मंगोल प्रिंटिंग प्रेस, सिवनी। इसका हिंदी अनुवाद 1989 में डॉ. मोतीरावण कंगाली द्वारा इसी शीर्षक से प्रकाशित किया गया। प्रकाशक – चंद्रलेखा कंगाली) o पारी कुपार लिंगो कोया पुनेम दर्शन ( 1989, वर्ष 1994 में दूसरा संस्करण चंद्रलेखा कंगाली द्वारा प्रकाशित) o गोंडी लिपि परिचय (1991) o गोंडवाना गढ़ दर्शन (1992) o गोंडी व्याकरण (1994) o गोंडवाना कोट दर्शन ( 2000) o सैंधवी लिपि का गोंडी में उदवाचन (2002) o मुंडारा हीरो गंगा (2005) o तापी नदी की पौराणिक गाथा (2005) o वृहत हिन्दी–गोंडी शब्द कोश (2011) o चांदागढ़ की महाकाली काली कंकाली (2011) o बस्तर गढ़ की दांतेवाडीन वेनदाई दंतेश्वरी (2011) o मराठी –गोंडी शब्द कोश ( 2012) o गोंडी व्युत्पत्तिमूलक शब्दकोश