У нас вы можете посмотреть бесплатно म.प्र. के प्रमुख राजवंश || गुर्जर प्रतीहार || त्रिगुट संघर्ष || सांस्कृतिक राजधानी ग्वालियर || или скачать в максимальном доступном качестве, которое было загружено на ютуб. Для скачивания выберите вариант из формы ниже:
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HIND ACADEMY app Link - https://play.google.com/store/apps/de... HIND ACADEMY telegram Link- https://t.me/hindacademyformppsc HIND ACADEMY mobile No.- 6264323307 गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन एवं मध्यकालीन दौर के संक्रमण काल में साम्राज्य स्थापित करने वाला एक राजवंश था जिसके शासकों ने मध्य-उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर मध्य-८वीं सदी से ११वीं सदी के बीच शासन किया। इस राजवंश का संस्थापक प्रथम नागभट्ट था, जिनके वंशजों ने पहले उज्जैन और बाद में कन्नौज को राजधानी बनाते हुए एक विस्तृत भूभाग पर शासन किया।[1] नागभट्ट द्वारा ७२५ ईसवी में साम्राज्य की स्थापना से पूर्व भी गुर्जर-प्रतिहारों द्वारा मंडोर, मारवाड़ इत्यादि इलाकों में सामंतों के रूप में ६ठीं से ९वीं सदी के बीच शासन किया गया किंतु एक संगठित साम्राज्य के रूप में इसे स्थापित करने का श्रेय नागभट्ट को जाता है। उमय्यद ख़िलाफ़त के नेतृत्व में होने वाले अरब आक्रमणों का नागभट्ट और परवर्ती शासकों ने प्रबल प्रतिकार किया। कुछ इतिहासकार भारत की ओर इस्लाम के विस्तार की गति के इस दौर में धीमी होने का श्रेय इस राजवंश की सबलता को देते हैं। दूसरे नागभट्ट के शासनकाल में यह राजवंश उत्तर भारत की सबसे प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गया था। मिहिर भोज और उसके परवर्ती महेन्द्रपाल प्रथम के शासन काल में यह साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा और इस समय इस साम्राज्य की सीमाएँ पश्चिम में सिंध से लेकर पूर्व में आधुनिक बंगाल तक और हिमालय की तलहटी से नर्मदा पार दक्षिण तक विस्तृत थीं। यह विस्तार मानों गुप्तकाल के अपने समय के सर्वाधिक राज्यक्षेत्र से स्पर्धा करता हुआ सा था। इस विस्तार ने तत्कालीन भारतीय उपमहाद्वीप में एक त्रिकोणीय संघर्ष को जन्म दिया जिसमें गुर्जर-प्रतिहारों के अलावा राष्ट्रकूट और पाल वंश शामिल थे। इसी दौरान इस राजवंश के राजाओं ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। The Gurjar-Pratihara dynasty was a dynasty that established an empire in the Indian subcontinent during the transition period between ancient and medieval times, whose rulers ruled over a large part of central-north India between the mid-8th century and the 11th century. The founder of this dynasty was Nagabhatta I, whose descendants ruled over a vast territory, first with Ujjain and later Kannauj as their capital. [1] Even before the establishment of the empire in 725 AD by Nagabhatta, the Gurjar-Pratiharas ruled as feudal lords in Mandore, Marwar, etc. between the 6th and 9th centuries, but the credit for establishing it as an organized empire goes to Nagabhatta. Nagabhatta and subsequent rulers strongly resisted the Arab invasions led by the Umayyad Caliphate. Some historians attribute the slow pace of Islam's expansion towards India during this period to the strength of this dynasty. During the reign of Nagabhatta the second, this dynasty became the most prominent political power in North India. During the reign of Mihir Bhoj and his successor Mahendrapal I, this empire reached its zenith and at this time the boundaries of this empire extended from Sindh in the west to modern Bengal in the east and from the foothills of the Himalayas to the south across the Narmada. This expansion was as if competing with the largest territory of the Gupta period. This expansion gave rise to a triangular conflict in the then Indian subcontinent in which apart from the Gurjar-Pratiharas, the Rashtrakuta and the Pala dynasty were involved. During this time the kings of this dynasty assumed the title of Maharajadhiraja.