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पाबूजी की पड़ । 05 । Shishpal ji Bhopa & Dulari Devi । Nosriya wale । rajasthani bhajan

अमरकोट रियासत के सोढा राजपूतों से एक दिन पाबूजी राठौड़ के सगाई का नारियल आता है फिर तय निश्चित तिथि को पाबूजी राठौड़ अपने सगे सम्बन्धियों बाल सखा मित्रों एवं कुटुंबजनों के साथ अपनी बारात धूमधाम से अमरकोट ले के जाते हैं किन्तु उनका नाराज़ बहनोई जिन्दराव खींची जो कुटिल स्वभाव का भी होता है, वह विवाह में शामिल नहीं होता है जिन्दराव एक योजना बनाता है अपने भाइयों के कुटुंब कबिले के साथ मिल के अपने बड़े साले बुढोजी पे आक्रमण की बुढोजी छोटे भाई पाबूजी की बारात में ना जाकर अपने रावळे मे ही रुकते हैं, पहले महिनों बाद बारात लौटती थी तो कई पुरूष अपने परिवार की रक्षार्थ घर पर ही रूकते थे जिन्दराव अपने भाइयों और सेना के साथ पाबूजी के गांव की और प्रस्थान करता है एवं वहां पहुंचकर सीमा पे अपनी सेना का पड़ाव डालता है योजना बनती है कि जिंदराव पहले अकेला जा के अपने बड़े साले बुढोजी को युद्ध के लिए ललकरेगा और घोड़ी (जिसका नाम केशर कालवी होता है वो) देने की मांग करेगा जिन्दराव अपने ससुराल पहुंचकर अपने बड़े साले बुढोजी से झगड़ा करता है और उनको युद्ध के लिए ललकारता है। बुढोजी की पत्नी डोड गैहली जो डीडवाना की *डोड कुल की बेटी थी अपने घर की छत के मालिये (कमरे) से घर के आंगन में ये नज़ारा देख रही होती है क्षत्राणी छत से नीचे आती है और कटार निकाल के अपने ननदोई जिन्दराव को युद्ध के लिए ललकारती है बोलती है मेरे पति को एक शब्द कहा तो कटार सीने में उतार दूंगी अपने पति की रक्षार्थ अपने सगे ननदोई को ललकारने वाली उस वीर क्षत्राणी का रौद्र रूप देख के जिन्दराव वहां से उल्टे पांव भाग खड़ा होता है जिन्दराव अपने डेरे में आकर अपने भाइयों को पूरी बात बताता है जिन्दराव के भाई कहते हैं अब हम खाली हाथ जायल (नागौर) वापसे लौटे तो हमारी बेइज्जती होगी तो क्यों न हम कुछ ऐसा जतन कर के जायें की पाबूजी खुद अपनी घोड़ी (केशर काळमी) को हमारे पास छोड़ के जाये -योजना बनती है - रात को जिन्दराव अपनी सेना और भाइयों के साथ देवल चारणी की गौशाला पे हमला करता है गौशाला में देवल बाईसा का पति और उनके 24 भाई वीरतापूर्वक मुकाबला करते हुए रणखेत हो जाते है भीष्ण रण में जिन्दराव देवल चारणी के पति और उनके 24 चारण भाइयों को मार के सारी की सारी गायें हांककर ले जाता है, लूट के अपने साथ ले जाता है तड़के (जल्द सवेरे) देवल बाई दुहारी करने (दूध दूहने) अपनी गौशाला बाड़े में आती है तो वहां का नज़ारा देख के विस्मित हो जाती है अपने पति की और कुटुंब की लाशें देख के देवल बाईसा रोते रोते बेसुध हो जाती है देवल बाई पाबूजी के रावळे जा के रोते हुए मदद की गुहार लगाती है अंदर से पाबूजी के बड़े भाई राव बुढोजी आते हैं और देवल बाई को रोते-बिलखते देख के कहते हैं .... हे बाई क्या हुआ ? इतनी भोर में आप इस हालत में मेरे द्वारे क्यों ? देवल बाई बुढोजी को पूरी बात बताते हुए कहती है । भाईसा मेरा भाई पाबू जी कठै है ? उसने मुझे मेरी रक्षा का वचन दिया था, वो वचन कहाँ है ? बुढोजी कहते हैं -बाईसा पाबू तो अपनी जान (बारात) ले कर अमरकोट परणीजने (ब्याहने) गया है अब बारात तो वापस एक दो महीने बाद आयेगी । अमरकोट के गढ़ में उस वक़्त पाबूजी चँवरी (लग्न मंडप) में फेरे ले रहे होते हैं । देवल चारणी की घोड़ी काळमी को अनहोनी और अपनी पूर्व मालकिन की पुकार का आभास होता है तो वो ज़ोर ज़ोर से चिंघाड़ते हुए अपने पैर पछाड़ने लगती है । पाबूजी के 2 अभिन्न मित्र चांदोजी राठौड़ और डेमोजी राठौड़ भी उस वक़्त मंडप में मौजूद रहते हैं । पाबूजी का साला चांदोजी से जा के कहता है आपकी प्रिय घोड़ी केशर काळमी को क्या हुआ ? ज़ोर ज़ोर से पछाड़ें क्यों लगा रही है ? चांदोजी और अपने साले का संवाद फेरे लेते पाबूजी के कानों में पड़ता है और देवल चारणी को दिये वचन भी दष्टांत होता है । पाबूजी उस वक़्त 3 फेरे ले चुके होते हैं और चौथे फेरे के लिए पांव आगे बढ़ाते हैं । लेकिन अपनी बहन देवल बाई पर संकट देख के पाबूजी चौथा फेरा पूरा नहीं लेते । अपनी तलवार से वो गठजोड़ा (दुल्हन की चुनड़ी और दूल्हे के साफे का बंधन) तोड़ के अपनी घोड़ी कालवी की पीठ पे सवार हो जाते हैं । (सम्पूर्ण राजस्थान में तब से ही विवाह के वक़्त सिर्फ 4 फेरे लेने की प्रथा है । पाबूजी के साले साली ससुराल पक्ष के लोग उनके पांव पकड़ लेते हैं । पाबूजी कहते हैं मेरी धर्म की बहन देवल बाई संकट में है मुझे जाना ही होगा मैंने देवी पुत्री उस चारणी माता को विपत्ति में रक्षा का वचन दे रखा है, और उसी शर्त पर उसने मुझे यह घोड़ी सौंपी थी । मैं जीवता (जिंदा) रहा तो शादी फिर हो जाएगी वापस आ के शेष फेरे ले लूंगा आपकी बाई से । पाबूजी जी फेरे शादी बीच मे छोड़ के घर लौटते हैं और अपने बहनोई जिन्दराव को सबक सिखाने की ठानते हैं ।तभी उनकी मां कमला दे उनसे कहती है देख पाबू वो तेरी बहन का सुहाग है तू कुछ ऐसा काम मत करना जिससे तेरी बहन के सुहाग पे आंच आये । पाबूजी मां को कहते हैं ठीक है लेकिन मैं उसे सबक जरूर सिखाऊंगा । मां को वचन दे कर पाबूजी रणभूमि में निकलते हैं । एक तरफ जायल (नागौर) के जिन्दराव की सेना और कुटुंब दूजी तरफ पाबूजी और साथ मे उनके दो अभिन्न मित्र चांदोजी और डेमोजी युद्ध शुरू होता है और देखते देखते पाबूजी रणभूमि में त्राहिमाम मचा देते हैं चारों तरफ खून की नदी बहने लगती है लाशों के अंबार लगता है अंत मे नंबर आता है जिनराव का जिन्दराव सामने मृत्यु देख के अपने साले पाबूजी जी जान की भीख मांगता है । पाबूजी बहनोई जिन्दराव को माफ कर के जैसे ही पीछे मुड़ते हैं घायल जिनराव एक तलवार लपक के तलवार का भरपूर वार पाबूजी की गर्दन पर करता है पाबूजी वहीं रणखेत हो जाते हैं धड़ और गर्दन अलग अलग हो जाती है । पाबूजी के रावळे में जब खबर पहुंचती है कि अपनी बहन देवल को दिए वचन की खातिर गौ रक्षा करते हुए पाबूजी शहीद हो गए तो उनके बड़े भाई राव बुढोजी रणभूमि की और बढ़ते हैं राव बुढोजी भी युद्ध में बहनोई जिन्दराव के हाथों शहीद हो जाते हैं ।

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