У нас вы можете посмотреть бесплатно ।।द्वि भाई रमोला आसन लेते हुए।। सिधवा विदवा द्वि भाई चाबुक लेते हुए पहली बार देखा ऐसा खतरका रूप ।। или скачать в максимальном доступном качестве, которое было загружено на ютуб. Для скачивания выберите вариант из формы ниже:
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गंगू के दो बेटे हुए – सिदुवा और बिदुवा. सिदुवा के बेटे का नाम खड़क सिंह था. गंगू रमौलीहाट में रहता था. उसकी जागीर दस ज्यूला के बराबर थी. उसकी पत्नी का नाम मैनावती था. गंगू की आयु सौ बरस की थी. उसके पास पत्थरों की संख्या जितनी संपत्ति और धूल के ढेरों जितना अनाज था. लेकिन उसके कोई औलाद न थी. गंगू विधर्मी था और ईश्वर पर विश्वास नहीं करता था. वह बहुत घमंडी था और किसी से भी दुआसलाम नहीं करता था. वह अपनी प्रजा द्वारा बलि दी जाने वाली बकरियों को जबरन उठा लेता था और अविवाहित लड़कियों और बाँझ भैंसों पर टैक्स वसूला करता था. भगवान कृष्ण उसे उसकी विधर्मिता का दंड देना चाहते थे. एक दिन कृष्ण ब्राह्मण का भेस धर कर रमौलीहाट गए. गंगू अपने दस बीसी रेवड़ को चराने के लिए हरियाली के जंगल गया हुआ था. उसकी रानी और रमौलीहाट के बाशिंदे ब्राहमण के दैवीय रूप से प्रकट हो जाने से अचंभित हुए. रानी द्वारा पूछे जाने पर ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि वह गंगू का कुलपुरोहित है और वह उसकी जन्मपत्री देख कर इस बात की तस्दीक करने आया है कि क्या नक्षत्रों की स्थिति इतनी शुभ है कि उसे बेटा प्राप्त हो सके. ब्राहमण ने गंगू की जन्मपत्री देखी और अचानक अंतर्धान हो गया. जल्दी ही गंगू वापस आया और उसे ब्राहमण के आगमन के बारे में सूचित किया गया. लेकिन गंगू ने अपनी रानी को फटकार लगाई क्योंकि वह ज्योतिष में विश्वास नहीं करता था. अचानक गंगू की पीठ में तेज़ दर्द होना शुरू हो गया. उसकी सारी संपत्ति धूल में बदल गयी और उसके गोदामों में रखा सारा अनाज चींटियाँ खा गईं. उसके पशु मरने लगे और फसलें नष्ट होने लगीं. गंगू ने अपनी पत्नी से पूछा कि उनके दुर्भाग्य का क्या कारण हो सकता है. रानी ने कहा की यह उसी ब्राह्मण के क्रोध के कारण हो रहा है जो कुछ दिन पहले आया था. गंगू का सारा परिवार भूख से मरने लगा लेकिन गंगू ने विधर्मी होना नहीं छोड़ा और न ही पश्चात्ताप किया. उसके बाद कलमा की पहाड़ी की चोटी से भगवान कृष्ण ने गंगू को आवाज़ लगाई. गंगू ने पूछा – “कौन है?” भगवान ने उत्तर दिया – “मैं तुम्हारे परिवार का देवता हूँ और मैं तुम्हारी सारी दौलत वापस ला सकता हूँ यदि तुम वारुणी सेम में मेरे लिए एक मंदिर स्थापित कर दो.” गंगू ने उत्तर दिया – “मैं तुम पर यकीन करने लगूंगा यदि तुम मेरी वंशबेल आगे बढ़ा सको!” भगवान ने तथास्तु कहा लेकिन अविश्वासी गंगू अब भी नहीं माना और बोला – “ऐसा शायद आपने दूसरों से सुन रखा होगा. मैं आपको अपने कुलदेवता की आवाज तब मानूंगा अगर आप पड़ोस में रहने वाली एक राक्षसी को मार गिराएं.” भगवान ने अपनी तुरही बजाई तो राक्षसी उनके सामने प्रकट हो गई. राक्षसी का नाम हेराम्बा था. ब्राहमण को देखते ही हेराम्बा ने खुश होते हुए कहा की वह बहुत दिनों की भूखी है और अंततः उसे अपना शिकार मिल गया है. कृष्ण ने उत्तर दिया – “इससे पहले की तुम मेरा भक्षण करो, चलो पहले बारी-बारी झूले में बैठ कर एक दूसरे की ताकत का अंदाजा लगा लें.” पहले कृष्ण झूले पर बैठे और उन्होंने हेराम्बा से उसे उठाने को कहा. उसने अपनी पूरी ताकत लगाई लेकिन उसे उठा न सकी. फिर भगवान उतरे और उन्होंने हेराम्बा से उस पर बैठने को कहा. उसके झूले पर बैठने पर कृष्ण ने झूले को ऐसा धक्का दिया कि वह झूलता हुआ बादलों तक पहुँच गया. हेराम्बा वहां से गिरी और नीचे गिरते ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए. उसका सिर मासी के जंगलों में जा गिरा. राक्षसी के नीचे गिरने से समूचा रमौलीहाट थर्रा उठा. गंगू ने दो गूंगों को देखने भेजा कि माजरा क्या है. कृष्ण के पास पहुँचते ही गूंगों की वाणी लौट आई. वे वापस घर लौटे और उन्होंने गंगू को बताया कि भगवान ने राक्षसी का संहार कर दिया है और उनकी वाणी उन्हें लौटा दी है. गंगू अब भी भगवान पर विश्वास करने को तैयार न था. उसने कहा कि राक्षसी किसी दुर्घटना के कारण मारी गयी होगी क्योंकि उस मार सकना किसी के बस की बात नहीं. भगवान कृष्ण गंगू के घर साधु का भेस धरकर गए और उन्होंने भिक्षा में दूध और दही माँगा. गंगू ने साधु को बाहर खदेड़ते हुए अपनी पत्नी से कहा कि साधु को दान में कुछ मोटा अनाज दे दे. लेकिन मैनावती ने साधु को अच्छे चावल दान दिए. साधु ने मैनावती को आशीर्वाद दिया और गंगू को श्राप देते हुए कहा कि उसे कोढ़ हो जाएगा. गंगू को अचानक कोढ़ हो गया और वह पीड़ा में कराहने लगा. लेकिन गंगू अब भी विधर्मी बना रहा. उसके बाद भगवान ने बारी-बारी से सर्प और बिच्छू का रूप धारा और गंगू के बिस्तर पर जाकर बैठ गए. लेकिन गंगू ने इस चेतावनी को नहीं समझा और दोनों को बाहर फेंक दिया. अंततः भगवान ने रमौलीहाट के सारे जलस्रोतों को सुखा दिया. लोग प्यास से मरने लगे. गंगू ने आदेश दिया कि गंगा से पानी लाया जाए. जैस ही गंगू ने गंगाजल को मुंह से लगाया वह रक्त में बदल गया. सारे रमौलीहाट में हाहाकार मच गया था. मैनावती ने गंगू से कहा कि वह ब्राहमणों से जाकर अपने दुर्भाग्य का कारण पूछे. अंततः गंगू ब्राह्मणों से सलाह लेने के लिए मान गया. जब वह ऐसा करने जा रहा था उसका रास्ता एक नौकर ने काट दिया. ब्राह्मणों ने उसे बताया कि उसे और उसके परिवार को भगवान कृष्ण के क्रोध की वजह से दुर्भाग्य का सामना करना पड़ रहा था और पश्चात्ताप करने के लिए उसने द्वारिका की तीर्थयात्रा कर भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए.अंततः गंगू को पछतावा हुआ और उसने द्वारिका की तीर्थयात्रा कर ईश्वर से प्रार्थना की कि वे उसे क्षमा कर दें. कृष्ण प्रसन्न हो गए और उन्होंने गंगू को आदेश दिया कि वह सेम नामक जगह पर उनके लिए एक मंदिर का निर्माण कराये. गंगू ने वापस जाकर सेम में मंदिर बनवाया लकिन बनते ही वह मंदिर अदृश्य हो गया. उसके बाद गंगू ने असीन सेम, बरसीन सेम, गुप्त सेम, लूका सेम, भूका सेम, मुखेम और प्रकट सेम में मंदिर बनवाये. इन मदिरों के निर्माण के बाद रमौलीहाट में सम्पन्नता वापस लौट गयी और गंगू को भी उसकी खोई हुई संपत्ति वापस मिल गयी