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• बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुम... बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - • दर्शन दो भगवान | Darshan Do Bhagwaan ... Watch the film ''Rukmani Haran'' now! Subscribe to Tilak for more devotional contents - https://bit.ly/SubscribeTilak नारद मुनि जी श्री कृष्ण जी के पास द्वारिका पहुँचते हैं और कहते हैं की माता लक्ष्मी ने आपकी सेवा करने के लिए रुक्मणी के रूप में जनम लिया है। रुक्मिणी के पिता भिषमत ने रुक्मिणी के स्वयंवर को अपने पुत्र रुकमी के भय के कारण कराने से मना कर दी है। राजकुमार रुकमी अपनी बहन रुक्मणी का विवाह शिशुपाल के साथ कराने की सोच रखी है। जिसे सुन नारद दुखी हो कर श्री कृष्ण से विनती करते हैं की जल्दी ही माता रुक्मणी से मिलकर उन्हें अपना ले। रुक्मणी गौरी माँ के मंदिर में आकर उनकी पूजा अर्चना करके उनसे श्री कृष्ण को पाने का आशीर्वाद माँगती हैं। रुकमी अपने पिता भिषमत के सामने रुक्मिणी के विवाह शिशुपाल के साथ करवाने की बात रखता है। जिस पर भिषमत के पुत्रों में विवाद होता है जिसे उनकी माता रोक कर रुकमी को अपनी बहन के मन की बात सुनने को कहती है लेकिन रूकमी नहीं मानता और अपनी माता को ही रुक्मिणी को समझाने को कह देता है और ये भी कहता है की मैं शिशुपाल को जल्द से जल्द बारात लाने के लिए कहता हूँ। रुक्मिणी की माँ जब उसे ये सब बताती है तो वह रुक्मिणी को बहुत दुःख पहुँचता है। रूकमी अपने दूत को शिशुपाल के पास भेजता है और जरासंध से कहने के लिए कहता है की बारात में श्री कृष्ण के सभी दुशमन राजाओं को अपनी सेनाओं के साथ लाए यदि यादवों ने कुछ भी करना चाहा तो उनसे युद्ध करके यही समाप्त कर देंगे। रूकमी अपनी बहन रुक्मिणी को बताता है की शिशुपाल ने रुक्मिणी से विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। जरासंध ने शिशुपाल को गोद ले लिया था इसलिए जरासंध शिशुपाल को बारात के साथ लेकर चल पड़ता है। रुक्मिणी अपनी दासी के साथ रात्रि में ऋषि सदानंद के पास जाती है। रुक्मिणी ऋषि सदानंद को अपने भाई द्वारा उनका विवाह शिशुपाल के साथ उनकी इच्छा के बिना तय कर दी है। रुक्मिणी गुरु सदानंद को उनकी सहायता कि लिए कहती है। ऋषि सदानंद रुक्मिणी की सहायता करने के लिए तैयार हो जाते हैं। रुक्मिणी उन्हें श्री कृष्ण को अपना पत्र देने के लिए भी कहती है। ऋषि सदानंद रुक्मिणी का पत्र लेकर श्री कृष्ण के पास चले जाते हैं और उनके पास पहुँच कर उन्हें दे देते हैं। ऋषि सदानंद श्री कृष्ण को रुक्मिणी को ले जाने के लिए गौरी मंदिर पर पहुँचने के लिए कहते हैं। श्री कृष्ण अपने रथ पर ऋषि सदानंद को लेकर तभी निकल पड़ते हैं। बलराम श्री कृष्ण के रातों रात द्वारिका से बाहर चले जाने की बात सुन परेशान हो जाते हैं। बलराम जब श्री कृष्ण के कक्ष में जाते हैं तो वहाँ रखे रुक्मिणी के पत्र को पाता है उसे पढ़ने के बाद सब समझ जाता है और अपनी सेना को लेकर श्री कृष्ण की सहायता करने के लिए कुंडिनपुर की ओर चल पड़ता है। शिशुपाल अपने पिता जरासंध के साथ बारात लेकर कुंडिनपुर पहुँच जाता है। श्री कृष्ण के पीछे पीछे बलराम बड़ी तेज़ी से उनके पास पहुँच जाता है। ऋषि सदानंद राजा भिषमत के महल पहुँच जाते हैं। ऋषि सदानंद रुक्मिणी से मिलने आते हैं और उन्हें बताती है की श्री कृष्ण उनके साथ तुम्हें लेने आए हैं और वो तुम्हें लेने के लिए गौरी मंदिर के पास इंतज़ार कर रहें हैं। रुक्मिणी को गुरु देव मंदिर जाने के लिए कहते है और उन्हें बताते हैं की उन्हें श्री कृष्ण वहीं से अपने साथ ले जाएँगे। रुक्मिणी गौरी मंदिर चली जाती है। रूकमी का गुप्तचर उन्हें बताता है की श्री कृष्ण और बलराम अपनी सेना के साथ नगर के पास पहुँचने हाई वाले हैं जिसे सुन शिशुपाल जरासंध के साथ अपनी सेना लेकर श्री कृष्ण की और निकल पड़ते हैं। रुक्मिणी के गौरी मंदिर जाने की बात शिशुपाल को पता चलती है तो वह और क्रोधित हो उठता है। शिशुपाल जरासंध और राजा शैलय अपनी सेना के साथ भवानी मंदिर की ओर चल पड़ते हैं। बलराम शिशुपाल और रूकमी की सेना से लड़ने के लिए चल पड़ता है और श्री कृष्ण को रुक्मिणी के पास जाने को कह देता है। श्री कृष्ण रुक्मिणी के पास चले जाते हैं और उनके पास पहुँच कर उनसे पनिग्रहण कर लेते हैं। दोनो सेनाओं में युद्ध शुरू हो जाता है। श्री कृष्ण रुक्मिणी को लेकर द्वारिका की ओर निकल पड़ते हैं। रूकमी अपनी बहन रुक्मिणी का हरण श्री कृष्ण द्वारा कर लेने की बात सुन उनके पीछे चल पड़ता है। श्री कृष्ण के पास पहुँच कर रूकमी उन्हें रुक्मिणी को लौटाने को कहता है जिस पर दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है। शिशुपाल श्री कृष्ण पर ब्रह्मास्त्र से हमला करता है लेकिन ब्रह्मास्त्र उनको हानि नहीं पहुँचाता। श्री कृष्ण और रूकमी में गदा युध शुरू हो जाता है। श्री कृष्ण रूकमी को हरा देते हैं और उसका वध करने के लिए सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करने ही वाले थे तभी रुक्मिणी उन्हें रोक देती है और उनसे प्रार्थना करती हैं की रूकमी का वाध ना करे। जिस पर श्री कृष्ण रूकमी को जीवन दान दे देते हैं। श्री कृष्ण रुक्मिणी के साथ द्वारिका की ओर निकल पड़ते हैं। In association with Divo - our YouTube Partner #SriKrishna #SriKrishnaonYouTube