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चलिए, प्रीसेशन यानी पूर्वगमन को एक सरल मॉडल की सहायता से समझें। पृथ्वी 4 तरह से गति करती है। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। इसके साथ-साथ पृथ्वी अपनी धुरी पर भी घूमती है। यह अपनी धुरी पर लगभग 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है, जिससे दिन और रात बनते हैं। शेष दो गतियाँ पृथ्वी की धुरी से संबंधित हैं। डगमगाना और धुरी के झुकाव के कोण में परिवर्तन। लट्टू की तरह, पृथ्वी का अक्ष भी डगमगाता है। आइए तीसरे प्रकार की गति को एक मॉडल की मदद से समझते हैं। यह पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध है, और यह दक्षिणी गोलार्ध है। इन दोनों गोलार्द्धों को विभाजित करने वाली काल्पनिक रेखा भूमध्य रेखा कहलाती है। यह पृथ्वी की धुरी है, जिसके चारों ओर वह घूमती है। मैं इसे हाथ से इस तरह घुमा सकता हूं। हम इसे बनाए गए प्लैटफ़ॉर्म पर रखेंगे। यह उत्तरी ध्रुव है और यदि हम इसे और आगे बढ़ाएँ तो इस ऐक्सल यानी धुरी के सिरे को आकाशीय उत्तरी ध्रुव माना जा सकता है। यहीं कहीं पर आकाशीय दक्षिणी ध्रुव होगा। आइए इस छेद में इस ऐक्सल यानी धुरी को डालें। आइए इस डिस्क को दोनों गोलार्धों के बीच रखें। यह पृथ्वी के भूमध्यरेखीय तल को दर्शाता है। पृथ्वी के भूमध्यरेखीय तल का फैलाव आकाशीय भूमध्य रेखा को परिभाषित करता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर अब साढ़े 23 के कोण पर झुकी है। परन्तु यह किस अक्ष के सन्दर्भ में झुकी हुई है? आइए सेटअप में एक और डिस्क जोड़ें। यह डिस्क क्रांतिवृत्त तल यानी पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर परिक्रमा का तल है। इस तल पर पृथ्वी एक वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करती है। हमारे मॉडल में, पृथ्वी के संबंध में, सूर्य इस तल पर होगा। आइए हम भूमध्यरेखीय तल पर चार प्रमुख बिंदुओं की भी पहचान करें। ऐसे दो बिंदु हैं जहां भूमध्यरेखीय तल और क्रांतिवृत्त तल एक दूसरे से मिलते हैं। ये वे बिंदु हैं जहां इक्विनॉक्स यानी विषुव होता है। इन दिनों में दिन और रात बराबर लंबाई के होते हैं। अन्य दो बिंदु ग्रीष्म संक्रांति और शीतकालीन संक्रांति हैं। यह वसंत विषुव का बिंदु है। यहां से 180 डिग्री पर शरद विषुव होता है। हम इसे इस डायल की मदद से बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। आइए इसे भूमध्यरेखीय तल पर रखें। डायल पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ चार प्रमुख बिंदु अंकित हैं। इससे बाद में हमें मदद मिलेगी। ऐक्सल होल्डर को इस तरह घुमाने से हमें तीसरी गति का पता लगाने में मदद मिलती है। पृथ्वी की धुरी का डगमगाना। पृथ्वी की धुरी दूसरी धुरी यानी क्रांतिवृत्त तल की धुरी पर घूम रही है। इसे पृथ्वी की धुरी का precession यानी पूर्वगमन कहते हैं। यह पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा के द्वारा लगाए गए गुरुत्वाकर्षण बल के कारण होता है। पृथ्वी लगभग 26,000 वर्षों में या हर 72 वर्षों में 1 डिग्री एक पूर्ण प्रीसेशन यानी पूर्वगमन चक्र से गुजरती है। यह बहुत ही धीमी गति है। आप रोजमर्रा की जिंदगी में इसका पता नहीं लगा सकते। आइए दूसरे डायल को एक्लिप्टिक तल यानी क्रांतिवृत्त तल पर रखें। यह सभी तारों और तारामंडलों की स्थिति को दर्शाता है। हम कुल 12 तारामंडलों और 27 नक्षत्रों के बारे में जानते हैं। यद्यपि एक वर्ष में प्रीसेशन यानी पूर्वगमन गति की मात्रा बहुत कम होती है, गति एक ही दिशा में होने के कारण, विषुव की स्थिति एक लंबे समय के बाद पर्याप्त रूप से बदलती रहती है। विषुव बिंदुओं की स्थिती में होने वाले बदलाव को प्रीसेशन ऑफ़ द इक्विनॉक्स यानी विषुव का पूर्वगमन कहा जाता है। अभी वसंत विषुव मेष राशि के निकट होता है, और लगभग 1000 वर्षों में यह किसी अन्य राशि में होगा। इस गति के कारण एक और महत्वपूर्ण बदलाव होता है। आइए यह देखने के लिए असेंबली को धीरे-धीरे घुमाएं कि आकाशीय उत्तरी ध्रुव का ओरिएंटेशन यानी दिशा समय के साथ कैसे बदलती है। आइए इस पारदर्शी डिस्क को शीर्ष पर रखें। छोटा लाल मनका क्रांतिवृत्त उत्तरी ध्रुव को दर्शाता है। आकाशीय उत्तरी ध्रुव भी वर्ष में पूर्वगमन के कारण घूमता है। जैसा कि पृथ्वी से देखा जाता है, पूर्वगमन ध्रुव तारे को बदल देता है। [आकाशीय उत्तरी ध्रुव के निकट कहीं स्थित सबसे चमकीला तारा ध्रुव तारा माना जाता है] अभी पोलेरिस हमारा ध्रुव तारा है। लगभग 8000 वर्षों के बाद, डेनेब ध्रुव तारा होगा। अगले 4000 वर्षों में, वेगा नया ध्रुव तारा होगा। अगले 5000 वर्ष बाद, थुबान ध्रुव तारा होगा। चौथी गति पृथ्वी का धुरी पर झुकाव है। यह 22.5 डिग्री से 24 डिग्री के बीच चलता है। सूर्य के चारों ओर घूमते समय पृथ्वी की घूर्णन धुरी जिस कोण पर झुकती है उसे उसका अक्षीय झुकाव कहा जाता है। यह झुकाव ही वह कारण है जिसके कारण पृथ्वी पर ऋतुएँ होती हैं। पिछले दस लाख वर्षों में, पृथ्वी के कक्षीय तल के संबंध में यह 22.1 और 24.5 डिग्री के बीच बदलता रहा है। अगले वीडियो में, हम पूर्वगमन और दो प्रकार के कैलेंडर, उष्णकटिबंधीय और नाक्षत्र के बीच संबंध का पता लगाएंगे।