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|यात्रा स्वर्गारोहिणी सतोपंथ की || Satopnath Swargarohani Trek | जिवित स्वर्ग जाने का मार्ग Part-1 13 дней назад


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|यात्रा स्वर्गारोहिणी सतोपंथ की || Satopnath Swargarohani Trek | जिवित स्वर्ग जाने का मार्ग Part-1

#satopanth #trekking #uttrakhand #badrinath जिवित स्वर्ग जाने का मार्ग ||यात्रा स्वर्गारोहिणी सतोपंथ की || Satopnath Swargarohani Trek यात्रा सतोपंथ स्वर्गारोहिणी की। Part -1 (पांडवों के स्वर्ग जाने का मार्ग) फोटो देखकर आप हिमालय के देवदार के गहन वनों नदियों और श्वेत हिमधवल शिखरों के सौंदर्य, उनके रूप, उनके गंध का अनुभव नही कर सकते, उसी तरह यात्रा-कथाओं से आपको उस बूंद से भेंट नही हो सकती जो कि एक घुमक्कड़ को प्राप्त होती है। बहुत समय से मन में प्रबल इच्छा थी कि उस ऐतिहासिक महापंथ को देखने की जिसे पांडवों ने अपनी अनंत यात्रा के लिए चुना ।इच्छा अगर प्रबल इच्छा में ना बदले तो कोई भी कार्य संभव नहीं होता है आखिरकार नारायण की तरफ से बुलावा आया और मैं तैयार हो गया हिंदुस्तान की सबसे पवित्र पदयात्रा करने के लिए। ऋषिकेश से 300 किलोमीटर की सड़क मार्ग से दूरी तय करने के पश्चात जब शाम तक में भू बैकुंठ धाम बद्रीनाथ पहुंचा तो शाम की 6 बज चुकी थी। ऋषिकेश से वैसे मैं बहुत सुबह निकला था लेकिन रास्ते में फिर पांच प्रयागों के दर्शन करते हुए बद्रीनाथ पहुंचते पहुंचते शाम हो गई। और बद्रीनाथ पहुंचते ही मैं निकल पड़ा भू बैकुंठ धाम बद्रीनाथ जी की शरण में ।आरती का समय हो रहा था और जैसे मैं मंदिर परिसर में अंदर गया तो वहां की जो ऊर्जा थी उससे रास्ते की जो थकान थी एकदम गायब हो गई, पता नहीं एक अलग ही ऊर्जा बद्रीनाथ मंदिर में मुझे महसूस होती है ऐसा लगता है कि वास्तव में नारायण यहीं कहीं विराजमान है मंदिर परिसर में बहुत सारे भक्तगण भगवान बद्री विशाल के भजनों पर एकदम नृत्य कर रहे थे झूम रहे थे कुछ देर में यहां सब देखता रहा और नारायण के भजनों में खो गया ऐसा लग रहा था कि सभी नर से नारायण हो गए हों। कुछ लोग पीछे के दरवाजे से नारायण के दर्शन करने का प्रयास कर रहे थे लेकिन बार-बार नाकाम हो रहे थे। आखिर थक हारकर वह भी लाइन में सबसे पीछे खड़े हो गए और अपनी बारी का इंतजार करने लगे । कुछ देर बाद भीड़ बहुत कम हो गई थी और अब आराम से नारायण के दर्शन हो रहे थे मैं भी दो बार श्रीमन नारायण के दर्शन कर धन्य हो गया दर्शन कर वापस आया भोजन प्रसाद ग्रहण किया। वापस होटल आकर कल की ट्रैकिंग के लिए तैयारी में जुट गया एक बार फिर सोने से पहले पॉटर को कॉल किया और सुबह 7:00 निकालने के लिए बोला गया । सुबह में एकदम सुबह उठ गया क्योंकि मुझे नीलकंठ की छोटी पर सूर्योदय देखना था 5:30 प्रातः से मैं बिल्कुल एक ऐसे व्यू प्वाइंट पर गया जहां से नीलकंठ बहुत साफ दिखाई देता था मैंने अपना कैमरा फिक्स किया और नीलकंठ चोटी पर ठीक 6:00 बजे के करीब सूर्योदय हुआ और आधे घंटे तक मैं उसी को निहारता रहा ।नीलकंठ पर जो सूर्योदय के दृश्य था शब्द कम थे,अद्भुत अद्वितीय अलौकिक निःशब्द था मैं ऐसे दृश्य देखकर। अब 7:15 होने वाले थे सोचा कि पॉटर को एक बार फोन कर दूँ, क्यों देर हो गयी होगी, पोर्टर को फोन लगाया तो पता चला उसने कहा कि 7:30 या 8:00 बज जाएगा। 1 घंटे का समय था इसलिए मैंने सोचा कि मैं सुबह नाश्ता कर लूं और मैं नाश्ता करने के लिए होटल में चल गया 8:00 बजे तक नाश्ता खत्म करने के पश्चात मैंने दुबारा उसको कॉल लगाया तो पता चला वह जल्दी ही होटल में पहुंचने वाला है वह 5 मिनट बाद जैसे होटल में पहुंचा तो मेरा बैग देखकर उसने आने से मना कर दिया। हिमालय की पदयात्राओं के दौरान इस प्रकार के अनुभव मेरे साथ कई बार पहले भी हो चुके थे इसलिए मैंने जल्दी से दुसरे पॉर्टर की व्यवस्था की और निकलते निकलते बद्रीनाथ से 9:00 बज गया। माना गांव के ठीक सामने से मैं 9:30 बजे यह ट्रैक शुरू किया कुछ ही दूरी पर आगे पहुंचा था कि तब तक याद आया कि पानी की बोतल ही गाड़ी में भूल गया। प्लास्टिक की खाली बोतल मिली तो उसको साफ कर पानी भरकर के बैग में रख दिया थोड़ा आगे पहुंचा था कि एक छोटा सा मंदिर दिखाई दिया, वह बद्रीनाथ जी की माता माता मूर्ति का मंदिर था माता मूर्ति के चरणों में नतमस्तक होकर इस पैदल यात्रा की शुभकामनाओं का आर्शीवाद लेकर आगे बढ़ चला। अब ट्रैक के दोनों तरफ बड़े-बड़े गगनचुंबी पहाड़ थे और उन दोनों पहाड़ों के बीच से अलकनंदा नदी बह रही थी। 2 किलोमीटर की दूरी तय करने के रास्ता एक जगह बिल्कुल नदी के तल तक चल गया रास्ते में बड़े-बड़े पत्थर किसी ग्लेशियर से टूट कर आए थे और अब रास्ता थोड़ा ऊबड़खाबड़ हो चला था वह इसी ऊबड़खाबड़ रास्ते से थोड़ा हल्की चढ़ाई चढ़कर जैसे ही मैं आगे पहुंचा आगे का दृश्य देखकर मन प्रफुल्लित हो गया अब सामने घास के बड़े-बड़े मखमली बुग्याल थे लेकिन अब ये बुग्गयाल धीरे-धीरे पीले होने शुरू हो गए थे सामने भेड़ बकरियों की अवाजें आ रही थी कोई गडरिया अपनी भीड़ बकरियों को चराने और पानी पिलाने के लिए नदी के तट पर ले जा रहा था। थोड़ी देर तक गडरिया के साथ बैठा उसे बातें की पता चला उसका नाम किसनू है और वह उत्तराखंड की किसी गांव का है और 6 माह के लिए इन्हीं बुग्गयालों में अपनी भीड़ बकरियों को चराने के लिए आता है। किसनू भाई ने मुझे बकरी के दूध की चाय पिलाई तो मन तृप्त हो गया और थकान गायब हो गई। बकरी के दूध से बनी चाय जीवन में पहली बार पी और पीकर एक नई ऊर्जा के अनुभव के साथ आगे पर चला तो सामने एक बड़ा सा झरना बह रहा था । ईतने में मेरा पोर्टर गोरख मिल गया । बोला कि साब ये झरना पापी आदमियों पर नहीं गिरता है । लेकिन अपनी बद्रीनाथ यात्राओं के दौरान मैं 2 बार इस झरने तक आ पहुंचा था अपने पाप और पूण्य की कसोटी पर उतरने के लिये। अब दोबारा फिर इस झरने के ठीक सामने आकर अतीत की यादें चलचित्र की तरह मेरे दिमाग में चलने लगी। थोड़ी देर वसुधारा का दृश्याअवलोकन करने के बाद में और गोरख आगे बढ़ते रहे। अब मैं 7 किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंच गया था एक बहुत बड़े बुग्याल में जिसका नाम था लक्ष्मीवन। बहुत दूर -दूर तक नजरें दौड़ाने के बाद भी यहां कहीं भी लक्ष्मी नजर नहीं आई और नहीं वन नजर आया, शायद किसी समय यहां वन रहा होगा ,

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