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लोक देवता पाबूजी महाराज पाबूजी का विवाह अमरकोट के राजा सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सुप्यारदे से हुआ था। पाबूजी के बहनोई नागौर के राजा जिंदराव खींची था। पाबूजी व जिंदराव खींची की आपस में बनती नहीं थे। जब इनका विवाह हो रहा था तब उनके बहनोई जिंदराव खींची ने विवाह में विघ्न डाला। . पाबूजी के घोङी का नाम केसर कालमी था यह घोङी पाबूजी को प्राणों से भी प्रिय थी और वे उसे सदैव ही अपने साथ रखते थे। . गौरक्षा हेतु बलिदान:- पाबूजी बरात लेकर अमरकोट के लिए रवाना हुए तो पीछे से जिन्दराव खीची देवल देवी की गायों को घेर कर ले गया। देवल देवी विलाप करती हुए बूढ़ो जी के पास गई किन्तु उसे उनकी कोई सहायता नहीं मिली। उधर अग्नि के समक्ष पाबूजी और सुपियारदे के फेरे पड़ रहे थे कि अचानक बाहर खड़ी काळवी हिनहिनाहट करने लगी। वह अपने बंधनों को तुड़ाने का प्रयास करने लगी। पाबूजी ने चंवरी में बैठे ही घोड़ी की पुकार सुन ली और उठ खड़े हुए। अभी तक तीन फेरे हुए थे और चैथा फेरा चल रहा था। पाबूजी ने सुपियारदे सोढी से हथलेवा छुड़ा कर गठजोड़ की गांठ तलवार से काट दी और पाबूजी तत्काल चांदा और ढेमा को साथ लेकर चल पड़े। . . उन्होंने जिन्दराव का पीछा किया और उसे युद्ध में पराजित कर गायों को कब्जे से छुड़ा कर देवल देवी को सौंपने के लिए चल पडे़। . . जिंदराव द्वारा हरण की गई गायें तीन दिन की भूखी-प्यासी थी। पाबूजी उन गायों को पानी पिलाने कुए पर ले गए। इधर मौका देखकर जिन्दराव अपने मामा भाटी की फौज लेकर पुनः पाबूजी पर हमला करने चल पड़ा। पाबूजी व उनके साथी प्यास से व्याकुल गायों को कुए से पानी निकाल कर पिला रहे थे तभी जिन्दराव ने धावा बोल दिया और वहां दोनों सेनाओं में घमासन युद्ध हुआ। इस युद्ध में कई सैनिकों के साथ पाबूजी के आजीवन साथी चंदा व ढेमा भी काम आये। गायों की रक्षार्थ युद्ध करते हुए पाबूजी भी वीरगति को प्राप्त हुए।