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श्री गोवर्धन की शिखरतेहो बड़ी दान लीला श्री हरिरायजी कृत भाग १ तुक १ से २४ राग :बिलावल जत ताल:धमार स्वर श्री विठ्ठलदास बापोदरा वैशाली त्रिवेदी हवेली संगीत पुष्टिमार्गीय श्री गोवर्धन की शिखरतेहो मोहन दीनी टेर अंत रंगसो कहत हे सब अंत रंगसो कहत हे सब ग्वालिन राखो घेर अहो सब ग्वालिन राखो घेर नागरी दान दे तुम नंद महर के लाल अहो रानी जशोमती प्रान आधार अहो सखी देवनके प्रतिपाल अहो ढोटा काहेको बढ़ावत राग मोहन जान दे जान दे जान दे जान दे . तुम नंद महर के लाल मोहन जान दे ग्वालिन रोकी न रहे हे ग्वाल रहे पचहार अहो गिरिधारी दौरियो अहो गिरिधारी दौरियो सो कहयो न मानत गवार अहो सो कह्यो न मानत गवार नागरी दान दे ||२ || वृषभान नृपत की बाल अहो रानी कीर्ति प्राण आधार अहो सब सखियन की शीरधार अहो तेरे चंचल नयन विशाल अहो तेरो दानी श्री नंदकुमार नागरी दान दे दान दे दान दे दान दान दे दान दे दान दे ||वृषभान नृपत की बाल नागरी दान दे ||२|| चली जात गोरस मदमाती मानों सुनत नहीं कान दौरि आये मन भावसे सो दौरी आये मन भावसे सो रोकी अंचल तान अहो सो तो रोकी अंचल तान नागरी दान दे ||३ || एक भुजा कंकन गहै एक भुजा गही चीर ||दान लेन ठाडे भये हे .. दान लेन ठाडे भये हे गहवर कुंज कुटीर अहो प्यारे गहवर कुंज कुटीर . नागरी दान दे ||४ || बहुत दिना तुम बच गई हो दान हमारौ मार ||आज नई आज लैहों आपनो हो आज हों लैहों आपनोदिन दिन कौ दान संभारअहो दिन दिनकौ दान संभारनागरी दान दे ||५ || रसनिधान नव नागरी हो निरख बचन मृदु बोल क्यों मु रि ढाढ़ी होत है क्यों मु रि ढाढ़ी होत हैघूँघट पट मुख खोल अहो प्यारी घूँघट पट मुख खोल नागरी दान दे ||६ ||हरख हियें हरि करखिकें हो मुखतें नील निचोल ||पूरन प्रगट्यो देखिये हो पूरन प्रगट्यो देखिये पूरन प्रगट्यो देखिये मानो चंद घटाकी ओल अहो मानो चंद घटाकी ओल नागरी दान दे ||७|| ललित वचन समुदित भये नेति नेति यह बैन || उर आनंद..हां... उर आनंद अति ही बढ्यो सो चलती सुफल भये मिलि नैन अहो सुफल भये मिलि नैन नागरी दान देतुम नंद महर के बालअहो रानी जसुमति प्राण आधार || नागरी दान दे ||८|| गोपी :यह मारग हम नित गई हो कबहूँ सुन्यौ नहीं कान || आज नई यहहोत है लाला आज नई यह होत है लाला मांगत गोरस दान सुनो लाला मांगत गोरस दान मोहन जान दे ||९ || लाला: तुम नविन नव नागरी हो नूतन भूषण अंग || नयौ दान हम मांगनौ सो नयौ दान हम मांगनौ सो नयौ बन्यौ यह रंग अहो प्यारी नयौ बन्यौ यह रंग नागरी दान दे ||१० || गोपी:चंचल नयन निहारिये हो अति चंचल मृदु बैन || कर नहीं चंचल कीजिये कर कर नहीं चंचल किजिये तजी .. अंचल चंचल नैन अहो त जी अंचल चंचल नैन अंचल चंचल नैंन मोहन जान दे ||११ || लाला :सुन्दरता सब अंग की हो बसनन राखी गोय || निरख निरख छबी लाडिली निरख निरख छबी लाडिली मेरो मन आकर्षित होय अहो मेरो मन आकर्षित होय नागरी दान दे ||१२ || लाला :लै लकुटी लाई लकुटी ठाडे रहे जानि सांकरी खोर ||मुसकि ठगौरी लायकें हो मोसौं मुसकि ठगौरी लायकें हो मोसौं सकत न लई रति जोर अहो मोसों सकत न लई रति जोर नागरी दान दे ||१३ || गोपी नेंक दूरी ठाडे रहो कछू और सकुचाय कहा कियौ मन भांवते मेरे कहा कियौ मन भांवते मेरे अंचल पीक लगाय अहो मेरे अंचल पीक लगायमोहन जान दे ||१४ || लाला कहा भयौ अंचल लगी पीक हमारी जाय || याके बदलें ग्वालिनी मेरे याके बदलें ग्वालिनी मेरे नयनन पीक लगाय अहो मेरे नयनन पीक लगाय नागरी दान दे ||१५ || गोपीसुधे बचननमांगिये हो लालन गोरस दान || भ्रोंहन भेद जना य कें सो भ्रोंहन भेद जना य कें सो कहत आन की आन लाल कहत आन की आन मोहन जान दे ||१६ || लालाजेसे हम कछुकहतहैं ऐसी तुम कहि लेहु || मनमाने सो कीजिये हो मनमाने सो कीजिये पर दान हमारो देहु अहो प्यारी दान हमारो देहो नागरी दान दे ||१७ || गोपी :कहाभरेंहमजात हैंदान जो मांगत लाल || भईअवार घरजानदे सोभईअवार घर जान दे सो छांड अटपटी चाल अहो प्यारे छांड अटपटी चाल मोहन जान दे ||१८ || लाला :भरें जात हौ श्री फल कंचन कमल बसन सों ढांक || दान जो लागत ताहीको हो दान जो लागत ताहीकों सौं तुम देकर जाह निशांक अहो तुम देकर जाह निशांकनागरी दान दे ||१९ || गोपी :इतनीविनती मानिये मांगत ओली ओड || गोरसकौ रस चाखिये हो गोरसकौ रस चाखिये लालन अंचल छोड अहो लालन अंचल छोडमोहन जान दे ||२० || गोपी :संग की सखी सब फिर गई हो सुनि है कीरति माय || प्रीती हियमें राखिये सो प्रीती हियमें राखिये सो प्रगट कियें रस जाय अहो प्यारे प्रगट कियें रस जाय मोहन जान दे ||२१ || गोपी :काल्ह बहोरि हम आई है गोरस ले सब गवारि || नीकि भांति चखाई हों नीकि भांति चखाई हों मेरे जीवन हों बलिहारि अहो प्यारे मेरे जीवन हों बलिहारि मोहन जान दे ||२२ || लाला : सुनि राधे नवनागरी हो हम न करें विश्वास || करकौ अमृत छांडी कै अहो करकौ अमृत छांडी कै कों करे का लही की आस अहो प्यारी कों करे का लही की आस नागरी दान दे ||२३ || लाला :तेरो गोरस चाखिवे हो मेरो मन ललचाय || पूरन श शि कर पायकें हो पूरन श शि कर पायकें चकोरन धीर धराय . अहो चकोरन धीर धराय नागरी दान दे ||२४||