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आज मुलाक़ात कार्यक्रम के इस अंक में हम आपके लिए लाये हैं कबूतरी देवी से भूपेन सिंह की बात-चीत. कबूतरी ने 1970 और 80 के दशक में आकाशवाणी नजीबाबाद, रामपुर, लखनऊ और मुंबई के विभिन्न भाषा के कार्यक्रमों में गायन किया. लखनऊ दूरदर्शन केंद्र से भी उनके गायन का प्रसारण हुआ. उनकी दर्जन भर से ज्यादा रिकॉर्डिंग ऑल इंडिया रेडियो के पास हैं. इसके अलावा उन्होंने क्षेत्रीय त्योहारों, रामलीलाओं, उत्तरायणी पर्वों जैसे कई मंचों पर भी गायन किया, जिसे शायद ही संरक्षित किया गया हो. पति की मृत्यु के बाद उन्होंने सामाजिक जीवन से दूरी बना ली और वह उत्तराखंड के सीमांत जिले- पिथौरागढ़ के अपने घर में रहकर मजदूरी करके अपने परिवार को पालने लगीं. बुलंद आवाज की मलिका कबूतरी देवी ने संगीत की औपचारिक दीक्षा नहीं ली. वह ऋतुरैण (मौसम के गीत), चौती, न्योली, छपेली, धुस्का के साथ ही अपने अंदाज में गीत, गजल और ठुमरी भी गाती थीं. उन्हें उत्तराखंड की तीजनबाई या पहाड़ की बेगम अख्तर भी कहा जाता है.