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1.श्रृंगार धराते समय (राग विभास) गोवरधन गिरि सघन कंदरा रैन निवास कियौ पियप्यारी॥ उठचले भोर सुरत रंग भीने नंदनंदन वृषभान दुलारी ॥ इत विगलित कचमाल मरगजी अटपटे भूषण रगमगी सारी उतही अधर मिस पाग रही धस दुहू दिश छवि वाढी अति भारी ॥ घूमत आवत रति रण जीते करिणि संग गज गिरिवरधारी।। चतुर्भुजदास निरख दंपतिसुख तन मन धन कीनों बलिहारी।। 2. श्रृंगार धराते समय (राग बिलावल) सुभग शृंगार निरख मोहन कौ लै दर्पण कर पियहि दिखावै आपन नैंक निहारिये बल जाऊं आज की छबि कछू कहत न आवै ॥ भूषण वसन रहे फबि ठांई ठांई अंग अंग छबि चितहि चुरावै रोम रोम प्रफुल्लित व्रजसुंदरि फूलन रचि रचि माल बनावै॥अंचल वार करत न्योंछाबर तन मन अति अभिलाष बढावै।। चतुर्भुजप्रभु गिरिधर कौ स्वरूप सुधा पीवत नयन पुट तृप्ति न पावै। 3. श्रृंगार दर्शन(राग बिलावल) नंदभवन कौ भूपणमाई।॥ यशुदा कौ लाल वीर हलधर को राधारमण सदासुखदाई । इंद्र कौ इंद्र देव देवन कौ ब्रह्म कौ ब्रह्म अधिक अधिकाई ।। काल कौ काल ईश ईशन कौ वरण कौ वरण महा वरदाई ॥शिव कौ धन संतन कौ सर्वस्व महिमा वेद पुराणन गाई ॥ नंददास कौ जीवन गिरिधर गोकुल मंडन कुंवर कन्हाई ॥ 4. राजभोग आये छाक के पद (राग सारंग) हरिकों टेरत फिरत गुवारी ॥ आन लेहौ तुम छाक आपनी बालक बल बनवारी ।। आज कलेऊ कियौ प्रात ही वछरा लेवन धाये ।। मेवा मोदक मैया यशोमति मेरे हाथ पठाये॥ जब यह वानी सुनी मनोहर चल आये तहां पास ।। कीनी भली भूख जब लागी बलपरमानंददास ।। 5. राजभोग आये छाक के पद (राग सारंग) हरिजूको ग्वालिन भोजन लाई॥ वृंदा विपिन विशद यमुनातट सुन ज्यों नार बनाई । सानसान दधिभात लियो है सुखद सखनके हेत ॥ मध्यगोपाल मंडली मोहन छाक विहंसि मुख देत ॥ २॥ देवलोक देखत सब कौतुक बाल केलि अनुरागे ।। गावत सुनत सुखद अति मानो सूर दुरत दुःखभागे।॥३॥ 6. राजभोग सरे अचवन कौ पद (राग सारंग) भोजन करजो ऊठे पीय प्यारी।। कंचन नगन जराय कि झारी जमुनोदक लाई ललता री॥ मुख परवार बिरीले ब्रजपत हित सों कुंज बिहारी।। छीतस्वामी नव कुंज सदन में विहरत लाल बिहारी॥ 7. राजभोगसरे बीरी कौ पद (राग सारंग) हरिकों बीरी खवावत बाला ।। अतिसुगंध बहुविधि सों सँवारी लीजे हो नंदलाला॥ खासा कौ कटि धर्यो पिछोरा उर राजत वनमाला।। मुरारीदास प्रभुकी छबि निरखत मग्न होत व्रजबाला॥ 8. राजभोग दर्शन (राग नूर सारंग) चलौ किन देखन कुंज कुटी । मदनगोपाल जहां मध्यनायक मन्मथ फौजलुटी ।। सुरत समर में लरत सखी की मुक्तामाल टुटी॥ उरज तें जु कंचुकी चुरकुट भई कटि पट ग्रंथि छुटी ।। रसिक शिरोमणि सूर नंदसुत दीनी अधर घुटी ॥ परमानंद गोविंद ग्वालिन की नीकी जोट जुटी ॥ 9. राजभोग दर्शन (राग नूर सारंग) चलो सखी कुंज गोपाल जहां ॥ तेरी सों मदनमोहन पै चल लै जाऊं तहां ॥ आछे कुसुम मंद मलयानिल तरु कदंबकी छांह ।। तहां निवास कियौ नंदनंदन चित तेरे मन मांह। ऐसीरी बात सुनत व्रजसुंदर तोहि रह्यो क्यों भावे । परमानंदस्वामी मनमोहन भाग्य बडे ते पावे।। 10. राजभोग दर्शन (राग वृन्दावनी सारंग) वृंदावन सघन कुंज माधुरी लतान तर यमुना पुलिन में मधुर बाजी बांसुरी ॥ जब तें ध्वनि सुनी कान मानो लागे मदन बाण प्राणन हू की कहा कहूं पीर होत पांसुरी ॥ व्याप्यौ जो अनंग ताते अंग सुधि भूल गई कोऊ निंदौ कोऊ वंदौ करौ उपहास री ॥ ऐसे व्रजाधीशजी सूं प्रीति नई रीत वाढी जाके हृदय गड रही प्रेम पुंज गांसरी ॥ डॉ भगवान दास कीर्तनकार, कामवन (अष्टछाप के श्रीगोविंदस्वामीजी के वंशज) ડૉ ભગવાન દાસ કીર્તનકાર, કામવન (અષ્ટછાપ કે શ્રીગોવિંદસ્વામીજી કે વંશજ) सम्पर्क 9828737151 #keertan #ushnakal #kunj #bhagwan_das_keertankar #grishmakal #kunjke keertan #hawelisangeet #pratkalkeypad #pratkal #vallabh #pushtimarg #pushtimargkeertan #pushtikirtan #keertan #shrangarkepad #rajbhogkepad #mahaprabhu #kirtan #havelisangeet #pushtimarg_pad #srigokulenduprabhu #keertanbhajan #keertankeertan #keertanvideo #keertansong #vibhas #keertanpranalika #nityasevakeertan